गुरुवार, 14 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. निबंध
  4. climate change causes
Written By WD

हिन्दी निबंध : जलवायु परिवर्तन-क्या, क्यों और कैसे

हिन्दी निबंध : जलवायु परिवर्तन-क्या, क्यों और कैसे - climate change causes
हिन्दी निबंध : जलवायु परिवर्तन के घातक असर 

जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बांट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी। हरितगृह प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है। 

जलवायु परिवर्तन का मतलब मौसम में आने वाले व्यापक बदलाव से है। यह बदलाव ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में बेतहाशा वृद्धि के कारण हो रहा है। इसे ग्रीन हाउस इफेक्ट भी कहते हैं। ग्रीन हाउस इफेक्ट वह प्रक्रिया है जिसके तहत धरती का पर्यावरण सूर्य से हासिल होने वाली उर्जा के एक हिस्से को ग्रहण कर लेता है और इससे तापमान में इजाफा होता है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए मुख्य तौर पर कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैसों को जिम्मेदार माना जाता है। यह सभी वातावरण कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ा देते हैं। 
 
अगले पेज पर पढ़ें महत्वपूर्ण तथ्य- ताजा आंकड़े

महत्वपूर्ण तथ्य : 
 
* जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं।
 
* विश्व ने दो-तिहाई तक अपना कार्बन स्पेस इस्तेमाल कर लिया है, 35 फीसदी जीवाश्म ईंधन के भंडार की खपत एवं और वैश्विक जंगलों का एक तिहाई हिस्सा काट दिया है।

* 'कीप द क्लाइमेट, चेंज द इकोनोमी' के अनुसार 18वीं सदी के मध्य से औद्योगिक क्रांति के शुरू होने के बाद से, पारंपरिक जीवाश्म ईंधन भंडार के 1,700 GtCO2e का 35 फीसदी उपयोग करते हुए एवं वैश्विक जंगलों के 60 मिलियन वर्ग किमी का एक-तिहाई काटते हुए विश्व पहले से ही वातावरण से 2,000 GtCO2e बाहर निकाल चुका है।
 
* वर्ष 1750 के बाद से विकसित देशों ने  ऐतिहासिक उत्सर्जन का 65 फीसदी के आसपास उत्सर्जित किया है और उनकी ऐतिहासिक उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 1,200 टन है जोकि हरेक भारतीयों की तुलना में 40 गुना अधिक है। 
 
* इसी का परिणाम है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से तापमान में 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जो पहले से ही असामान्य मौसम, विभिन्न प्रजातियों के प्रवास और विलुप्त होने, खाद्य और जल सुरक्षा और संघर्ष के संदर्भ में लोगों एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
 
* वहीं 19वीं सदी के आरंभ से अभी तक वैश्विक तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पहले ही हो चुकी है। 
 
* इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का मानना है कि 2050 तक वैश्विक तापमान में 0.5 से 2.5 डिग्री सेल्सियस के बीच वृद्धि होगी, जबकि 2100 तक यह अनुमानित वृद्धि 1.4 से 5.8 डिग्री सेल्सियस के बीच हो जाएगी। 
 
* अध्ययन बताते हैं कि हर साल लगभग 10 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन हमारे वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है। 
 
* अनुमान है कि इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में लगभग 1.1 और 2.9 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ोत्तरी होगी।