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Last Modified: शनिवार, 13 सितम्बर 2014 (12:38 IST)

पौधों ने भी बनाया है हिन्दी को संपन्न

पौधों ने भी बनाया है हिन्दी को संपन्न - पौधों ने भी बनाया है हिन्दी को संपन्न
-प्रो.(डॉ.) श्रीकृष्ण महाजन  
 
भाषा की रचना हेतु मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग आवश्यक माना जाता है। ये दोनों भाषा को सजीव, प्रवाहपूर्ण एवं आकर्षक बनाने में पर्याप्त रूप से सहायक होते हैं। यही कारण है कि हिन्दी भाषा में विभिन्न मुहावरों एवं लोकोक्तियों का अक्सर प्रयोग होते हुए देखा गया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों की रचना में एक विशेष बात यह देखी गई है कि अक्सर उनमें पादपों के नामों, पादप-भागों या उनसे निर्मित वस्तुओं की मदद ली गई है। 


 

 
इस दृष्टि से एक सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि कुल मिलाकर 80 से अधिक मुहावरों और लोकोक्तियों के उदाहरण ऐसे हैं, जिनमें हिन्दी साहित्यकारों ने 30 से भी अधिक पादपों के नाम या उनके भागों आदि का उल्लेख किया है। इससे ज्ञात होता है कि पादपों ने न केवल मानव की रोटी, कपड़ा व मकान जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति की है। अपितु भावों या विचारों की अभिव्यक्ति के लिए बोलचाल की भाषा में भी कुछ अंश तक उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भाषा में पादपों की भूमिका के बारे में ऐसा अनूठा प्रयास या अध्ययन शायद ही किसी और ने किया हो। 
 
'मुहावरा' शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है- अभ्यास। मुहावरा अतिसंक्षिप्त रूप में होते हुए भी बड़े भाव या विचार को प्रकट करता है। जबकि 'लोकोक्तियों' को 'कहावतों' के नाम से भी जाना जाता है। साधारणतया लोक में प्रचलित उक्ति को लोकोक्ति नाम दिया जाता है। कुछ लोकोक्तियाँ अंतर्कथाओं से भी संबंध रखती हैं, जैसे भगीरथ प्रयास अर्थात जितना परिश्रम राजा भगीरथ को गंगा के अवतरण के लिए करना पड़ा, उतना ही कठिन परिश्रम करने से सफलता मिलती है। संक्षेप में कहा जाए तो मुहावरे वाक्यांश होते हैं, जिनका प्रयोग क्रिया के रूप में वाक्य के बीच में किया जाता है, जबकि लोकोक्तियाँ स्वतंत्र वाक्य होती हैं, जिनमें एक पूरा भाव छिपा रहता है। किसी भी महापुरुष के कथित शब्द लोकोक्ति ही कहे जाएँगे। 
 
सर्वेक्षण में जिन पादपों का मुहावरों एवं लोकोक्तियों में प्रयोग किया गया है, उनके सामान्य नाम और वैज्ञानिक नाम (कोष्टक में) क्रमशः इस प्रकार हैं- राई (ब्रासिका जुनसिया), सरसों (ब्रासिका कम्पेस्ट्रीस), तिल (सिसेमम इंडिकम), चना (साईसर एरेटिनम), करेला (मोमोरडिका चेरेन्शिया), नीम (मिलिया अजादिरेक्टा), जीरा (क्यूमिनम साईमिनम), खरबूजा (कुकुमिस मेलो), आम (मेंजिफेरा इंडिका), खजूर (फिनिक्स सिल्वेस्ट्रीस), गेहूँ (ट्रीटिकम वल्गेर), चावल (ओराईजा सटाइबा), मूली (रेफेनस सटाइबस), मसूर (इरवम लेंस), अरहर (केजेनस केजन), बबूल (एकेसिया अरेबिका), मूँग (फेसियोलस आरियस), ढाक (व्युटिया मोनोस्परमा), गूलर (फाइकस ग्लोमेरेटा), अनार (प्यूनिका ग्रेनेटम), बेर (झीझीपस जुजुबा), गाजर (डौकस केरोटा), बाँस (डेन्ड्रोकेलेमस स्ट्रीकट्स), बैंगन (सालेनम मेलोन्जीना), लौकी (लेजिनेरिया वल्गेरिस), मिर्च (केप्सीकम फ्रुटिसन्स), कपास (गासिपियम हरबेसियम) आदि।  
 
साथ ही कहीं-कहीं पर पादप भागों जैसे- जड़, डाल, पात एवं लकड़ी आदि शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। अन्यत्र स्थानों पर पादप उत्पादों जैसे आटा, रोटी, दाल, खीर, तेल, खिचड़ी, कागज, नाव, गाड़ी, लाठी, पगड़ी, बीन, खूँटा, झोपड़ी, टोपी, अस्तीन, महल आदि का प्रयोग भी किया गया है। 
 
चना, मूँग, मसूर, अरहर, बबूल, ढाक जैसे सदस्य वनस्पति जगत में फली वाले समूह अर्थात लेग्युमिनोसी कुल से संबंधित हैं। इसी प्रकार से गेहूँ, चावल, बाँस, धान समूह अर्थात ग्रेमिनी कुल से, सरसों, राई मूली कुल अर्थात क्रुसीफेरी और करेला, लौकी तथा खरबूजा कद्दू कुल अर्थात कुकुरबीटेसी से संबंधित हैं। 
 
इन तीनों पादप कुलों में तीन या तीन से अधिक पादप जातियों का प्रयोग मुहावरों एवं लोकोक्तियों में किया गया है। इसके अतिरिक्त गाजर एवं जीरा को धनिया कुल अर्थात अम्बेलीफरे एवं बैंगन तथा मिर्च को आलू कुल अर्थात सोलेनेसी कुल में रखा गया है, जबकि नीम, अनार, गूलर, आम, तिल, खजूर, बैर जैसे सदस्यों को क्रमशः मिलीएसी, प्यूनिकेसी, मोरेसी, एनाकार्डेसी, पेडालीयेसी, पामेसी एवं रेमनेसी कुलों में रखा गया है। 


 
विश्लेषण करने पर यह पाया गया है कि कुल मिलाकर जिन 30 पादप जातियों का उल्लेख मुहावरों एवं लोकोक्तियों में अभी तक किया गया है, वे वनस्पतियों की 13 कुलों एवं 29 प्रजातियों से संबंधित हैं। हिन्दी साहित्यकारों ने हिन्दी भाषा की रचना को प्रभावशाली बनाने में पेड़-पौधों की मदद भी पर्याप्त रूप से ली है। जो वास्तव में महत्वपूर्ण है और इसे वर्तमान परिपेक्ष्य में अनदेखा नहीं किया जा सकता।