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हिंदी - माथे की बिंदी
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मृणालिनी घुलेसंस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिंदी।बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिंदी।सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिंदी।पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,मैत्री को जोड़ने की साँकल है ये हिंदी।पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,साहित्य का असीम सागर है ये हिंदी।तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,कवि सूर के सागर की गागर है ये हिंदी।वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,निश्चय ही वंदनीय माँ-सम है ये हिंदी।अँग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिंदी।वैसे तो देश में कई भाषाएँ और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिंदी