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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 20 नवंबर 2025 (10:29 IST)

Jhalkari Bai: जयंती विशेष: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को धूल चटाने वाली वीरांगना झलकारी बाई का इतिहास

Jhalkari Bai Birth Anniversary
Veerangana Jhalkari Bai: वीरांगना झलकारी बाई का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, विशेषकर 1857 के विद्रोह के दौरान उनकी असाधारण बहादुरी और रानी लक्ष्मीबाई के प्रति उनके अटूट समर्पण से जुड़ा है। वह बुंदेलखंड की लोक नायिका और अदम्य साहस की प्रतीक मानी जाती हैं। रानी लक्ष्मीबाई के साथ ही उनकी अभिन्न सहयोगी और सेना की वीरांगना झलकारी बाई को याद करना आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है।ALSO READ: Rani Lakshmi Bai : रानी लक्ष्मी बाई के जन्म और मृत्यु का रहस्य क्या है?
 
उनकी जयंती के अवसर पर, हम उनके जीवन, संघर्ष और वीरता के बारे में जानेंगे, कि कैसे वह एक अद्वितीय वीरांगना बनीं, जो रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करती थीं।
 
1. प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि:
जन्म: झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर, 1830 को बुंदेलखंड के झांसी के पास भोजला नामक गांव में एक कोली परिवार में हुआ था।
 
प्रारंभिक शिक्षा: उन्हें पारंपरिक स्कूली शिक्षा नहीं मिली, लेकिन उनके पिता ने उन्हें घुड़सवारी और शस्त्र-प्रशिक्षण दिया था। वे बचपन से ही निडर और साहसी थीं।
 
वीरता का प्रदर्शन: एक लोक कथा के अनुसार, उन्होंने बचपन में ही जंगल में एक शेर का सामना किया था और उसे अपनी कुल्हाड़ी से मार गिराया था। एक अन्य घटना में, उन्होंने गांव के चरवाहों पर हमला करने वाले डाकुओं को अकेले ही खदेड़ दिया था।
 
2. झांसी की सेना में प्रवेश:
रानी से मुलाकात: उनकी असाधारण बहादुरी की खबरें जल्द ही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तक पहुंचीं।
 
समानता: जब झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई से मिलीं, तो रानी उनकी शारीरिक बनावट, चाल-ढाल और आवाज में अद्भुत समानता देखकर चकित रह गईं।
 
सैन्य प्रशिक्षण: रानी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपनी महिला सेना 'दुर्गा दल' में शामिल किया। झलकारी बाई को तोप चलाने, तलवार चलाने और घुड़सवारी का विशेष प्रशिक्षण दिया गया।
 
3. झांसी की घेराबंदी में सर्वोच्च बलिदान:
1858 में जब ब्रिटिश सेनापति सर ह्यू रोज ने झांसी के किले को घेर लिया, तब झलकारी बाई ने वह कार्य किया जिसके लिए उनका नाम इतिहास में अमर हो गया:
 
योजना: जब हार निश्चित लगने लगी, तो रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाई गई।
 
भूमिका: झलकारी बाई ने रानी के वेश में ब्रिटिश सेना का सामना करने का निर्णय लिया।
 
बलिदान: उन्होंने रानी के वस्त्र और शस्त्र धारण किए और घोड़े पर सवार होकर ब्रिटिश छावनी की ओर बढ़ीं। उनका उद्देश्य अंग्रेजों को भ्रमित करना था, ताकि रानी लक्ष्मीबाई को किले से भागने का पर्याप्त समय मिल जाए।
 
परिणाम: अंग्रेज भ्रमित हो गए और उन्हें रानी समझकर गिरफ्तार कर लिया। जब तक सर ह्यू रोज को वास्तविक स्थिति का पता चला, तब तक रानी लक्ष्मीबाई सफलतापूर्वक किले से निकल चुकी थीं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, अंग्रेजों द्वारा उन्हें पकड़ने के बाद उनकी मृत्यु हुई, जबकि कुछ मानते हैं कि वे अंग्रेजों के हाथों मरने से पहले वीरगति को प्राप्त हुईं।
 
बुंदेलखंड की वीरांगना का प्रेरक नारा: झलकारी बाई ने सीधे तौर पर कोई नारा नहीं दिया था, लेकिन उनके कृत्य और झांसी के प्रति समर्पण ही उनका सबसे बड़ा प्रेरक नारा बन गया। उनके बलिदान को बुंदेलखंडी लोकगीतों और कविताओं में अमर कर दिया गया है।
 
उनके जीवन से प्रेरित होकर जो प्रेरक भाव उभरता है, वह है:
'हार नहीं मानूंगी, रानी को बचाऊंगी; झांसी की आन, मैं जान देकर निभाऊंगी।'
 
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि उनका सबसे बड़ा संदेश साहस, कर्तव्यनिष्ठा और स्वामिभक्ति का है, जिसे उन्होंने अपने कर्मों से सिद्ध किया। झलकारी बाई का बलिदान हमें सिखाता है कि वीरता किसी पदवी या जाति की मोहताज नहीं होती, बल्कि यह अटूट निष्ठा और साहस से आती है।
 
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