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Written By ND

कविता से बचा उन्मेष कहानी में

कविता से बचा उन्मेष कहानी में -
- ओम ठाकुर

कहानी, जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। वह किसी भी रूप में सामने आए, उसे पाठक अवश्य मिल जाते हैं। कहानी पढ़ने की रुचि को उत्प्रेरित करने वाले तत्वों में जिज्ञासा और कुतूहल मुख्य हैं। -'समानांतर रेखाएँ' पचहत्तर वर्षीय कवि, विश्वेश्वर शर्मा का पहला कहानी संग्रह है।'

अपनी बात' में लेखक का कथन है कि 'एक गीत या कविता से सृजनोपरांत भी जब उन्मेष शांत नहीं होता, संतुष्टि नहीं होती तो किसी अन्य संवेदना का सहारा खोजना पड़ता है।' कवि के लिए यह सहारा, कहानी है और इसके जरिए वह स्वयं को आश्वस्त देखना चाहता है। संग्रह की कहानियाँ अपनी अभिव्यक्ति में अत्यंत सरल और देखे-भोगे दृश्यों को हमारे सामने रूपायित करने में सफल-सक्षम हैं।

रचनाकार में मानवीय संवेदना की समझ जितनी पुख्ता होगी, रचना उतनी ही सरल और अभिव्यक्ति के द्वंद्व से मुक्त होगी। इस बात का सुंदर उदाहरण है प्रस्तुत संग्रह की 'एक कली मुस्काई' कहानी। छोटी-सी कहानी में, गरीब परिवार की पढ़ने की इच्छा रखने वाली लड़की 'रानी'की भावनाओं का बड़ा ही सहज, रोचक और मार्मिक प्रस्तुतिकरण है। 'गंठे वाली' कहानी आंचलिक परिवेश में संवेदना के बरक्स बढ़ रहे फरेब को बखूबी प्रस्तुत करती है।
  कहानी, जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। वह किसी भी रूप में सामने आए, उसे पाठक अवश्य मिल जाते हैं। कहानी पढ़ने की रुचि को उत्प्रेरित करने वाले तत्वों में जिज्ञासा मुख्य हैं। -'समानांतर रेखाएँ' पचहत्तर वर्षीय कवि, विश्वेश्वर शर्मा का पहला कहानी संग्रह है।'      


'पेंच' कहानी की-सी माँ का चरित्र बेशक कभी हुआ करता था, किंतु परिवर्तित स्थितियों में नारी जाति में स्वयं को पहचानने की एक दृष्टि, थोड़ी ही सही, जरूर विकसित हुई है। दृष्टि के विकसित होने से ऐसा नहीं हो सका है कि स्त्री अपेक्षाकृत सुखी और सुरक्षित हो गई हो। वह आज भी एक बड़े संघर्ष से गुजर रही है। समसामयिक रचनाकार के लिए इस सच से दो-चार होना जरूरी है।

संग्रह की सभी कहानियाँ आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक विसंगतियों को कुछ इस तरह छूती हैं, कि प्रसाद-प्रेमचंद युग आँखों के सामने तैरने लगता है।परिवेश में देखें और अनुभव किए सच को, रचनात्मक संस्कार देना छोटी बात नहीं है। जीवन के उत्तरार्द्ध में भी, विश्वेश्वरजी पूरी निष्ठा के साथ सक्रिय हैं, यह उल्लेखनीय है।

पुस्तक : समानांतर रेखाएँ
लेखक : पं. विश्वेश्वर शर्मा,
प्रकाशक : शैवाल प्रकाशन, चंद्रावती कुटीर,दाऊदपुर, गोरखपुर
मूल्य : रु. 155/-