ओम पुरी एक ऐसे शख्स का नाम था जो विवादों से दूर भागता था मगर विवाद थे कि उसके पीछे दौड़े चले आते थे। पहले अपनी किताब, बाद में पत्नी से अलगाव और उसके बाद दोनों पत्नियों के झगड़े ने ओम पुरी को परेशान किया। कभी अन्ना हजारे को समर्थन देने पहुंच गए रामलीला मैदान और दे डाला धुआंधार भाषण। लोगों को एक साथ आक्रोश और अर्धसत्य जैसी ओमपुरी अभिनीत फिल्में याद आ गई। फिर कभी जवानों पर तो कभी देश के दूसरे संवेदनशील मुद्दों पर उनके बयान आलोचना के शिकार होते रहे।
आज वे नहीं रहे, उनकी स्मृति स्वरूप पेश है उनकी पुस्तक की समीक्षा :
पिछली शताब्दी के आठवें दशक में हिंदी सिनेमा में कला फिल्मों का एक ऐसा दौर आया था जिसमें देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्याओं को काफी गहराई में जाकर पर्दे पर दिखलाने की कोशिश की गई थी। कला फिल्मों ने आकर्षक चेहरे और आकर्षक शरीर वाले नायकों की जगह बिल्कुल आम आदमी की शक्ल-सूरत वाले अभिनेताओं को तरजीह देकर भी एक क्रांतिकारी काम किया था।
नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, कुलभूषण खरबंदा, अनुपम खेर, नाना पाटेकर, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल जैसे कलाकार उसी दौर में उभर कर सामने आए थे और अपने वास्तविक अभिनय के बल पर कला फिल्मों की जान बन गए थे। व्यावसायिक फिल्मों के अभिनेताओं जैसा भव्य रूप-सौंदर्य इन्हें भले ही न मिला हो, अभिनय के मामले में ये उन 'सुदर्शन-पुरुषों' से बहुत आगे थे। और रूप-सौंदर्य में सबसे निचले पायदान पर खड़े ओमपुरी जैसे अभिनेता ने तो अभिनय के बल पर अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान तक बना ली थी।
अभाव और संघर्ष में बचपन और जवानी गुजारने वाले ओमपुरी के संघर्षों, सफलताओं, जीवन जीने के तरीकों आदि पर उनकी पत्नी नंदिता सी.पुरी ने अंग्रेजी में एक किताब लिखी है, जिसका हिंदी अनुवाद 'असाधारण नायक : ओमपुरी' अब पाठकों के लिए उपलब्ध है।
पत्नी होने के बावजूद नंदिता जी ने इस किताब में ओमपुरी की तारीफ में कसीदे नहीं पढ़े बल्कि आश्चर्य की बात है कि नंदिता जी ने इतनी बेबाकी से यह किताब कैसे लिखी? इस किताब में कई ऐसे प्रसंग हैं जिन्हें छुपाया जा सकता था मगर उन्होंने उन सबको उजागर करना ही जरूरी समझा। हालांकि वह ओम पुरी के उस आग्रह को मान लेती जिसके तहत उन्होंने अपने जीवन में आई स्त्रियों का नाम उजागर न करने की बात कही थी तो शायद बेहतर होता।
ओम पुरी ने बचपन से ही बहुत संघर्ष किया। पांच वर्ष की उम्र में ही वे रेल की पटरियों से कोयला बीनकर घर लाया करते थे। सात वर्ष की उम्र में वे चाय की दुकान पर गिलास धोने का काम करने लगे थे। सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर कॉलेज पहुंचे। छोटी-मोटी नौकरियां तब भी करते रहे।
कॉलेज में ही 'यूथ फेस्टिवल' में नाटक में हिस्सा लेने के दौरान उनका परिचय पंजाबी थिएटर के पिता हरपाल तिवाना से हुआ और यहीं से उनको वह रास्ता मिला जो आगे चलकर उन्हें मंजिल तक पहुंचाने वाला था। पंजाब से निकलकर वे दिल्ली आए, एन.एस.डी. में भर्ती हुए।
लेकिन अपनी कमजोर अंग्रेजी के कारण वहां से निकलने की सोचने लगे। तब इब्राहिम अल्काजी ने उनकी यह कुंठा दूर की और हिंदी में ही बात करने की सलाह दी। धीरे-धीरे अंग्रेजी भी सीखते रहे। हालांकि बकौल नंदिता पुरी अंग्रेजी फिल्मों में उनके काम करने के बावजूद अंग्रेजी बोलने का उनका पंजाबी ढंग अभी तक गया नहीं है।
एन.एस.डी. के बाद 'फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया' से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद ओम मुंबई आए और धीरे-धीरे फिल्मों में स्थापित हुए। कला फिल्मों से टेलीविजन, व्यावसायिक फिल्मों और हॉलीवुड की फिल्मों तक का सफर तय करके उन्होंने सफलता का स्वाद भी चखा। उनकी इस सफलता के बारे में उनके मित्र अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने ठीक ही लिखा है- 'ओमप्रकाश पुरी से ओम पुरी बनने तक की पूरी यात्रा जिसका मैं चश्मदीद गवाह रहा हूं, एक दुबले-पतले चेहरे पर कई दागों वाला युवक जो भूखी आंखों और लोहे के इरादों के साथ एक स्टोव, एक सॉसपैन और कुछ किताबों के साथ एक बरामदे में रहता था, अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कलाकार बन गया।'
ओम पुरी की इस जीवनी का नामकरण करने में सुप्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल की भूमिका रही है। उन्होंने ओम को 'असाधारण नायक' कहकर निश्चय ही कोई गलती नहीं की है। लेकिन इस असाधारण नायक की जीवनी पढ़कर लगता है कि वे अब भी साधारण व्यक्ति हैं- पत्नी पर गला फाड़कर चिल्लाने वाले, बच्चे पर जान छिड़कने वाले, खर्च के बाद पैसे का जोड़-घटाव करने वाले, सोते समय भयानक खर्राटे लेने वाले...!
नंदिता पुरी ने ओम के बारे में बताने को कुछ भी नहीं छोड़ा है। किशोरावस्था से लेकर विवाह तक उनके जीवन में आने वाली स्त्रियों के बारे में भी उन्होंने बड़े विस्तार में बताया है। बावजूद इन प्रसंगों के पाठकों के मन में ओमपुरी की कोई नकारात्मक छवि नहीं बनती। पुस्तक पाठकों को एक लय में पढ़ने को बाध्य कर सकती है।
पुस्तक : असाधारण नायक ओम पुरी
लेखिका : नंदिता सी. पुरी
प्रकाशक : हिंद पॉकेट बुक्स
मूल्य : 99 रुपए
प्रस्तुति : संजीव ठाकुर