चन्द्रकान्त देवताले की दो पुस्तकों का लोकार्पण
अनुप्रिया वायलिन अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम "संगीत… शब्दों से परे" में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ कवि चन्द्रकान्त देवताले की दो पुस्तकों "सुकरात का घाव" और "भूखण्ड तप रहा है" का लोकार्पण 6 जुलाई 2017, शाम 7:00 बजे से इंडिया हैबिटेट सेंटर, स्टीन ऑडिटोरियम इंस्टीट्यूशनल एरिया में किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर माननीय उपमुख्यमंत्री (दिल्ली सरकार) मनीष सिसोदिया और विशिष्ट अतिथि के तौर पर अशोक वाजपेयी (वरिष्ठ कवि, संस्कृति एवं कला प्रशासक) एवं राजदूत अमरेन्द्र खतुआ (कवि, राजनयिक एवं कला संरक्षक) मौजूद रहेंगे।
सुकरात का घाव
बर्ल्टोल्ट ब्रेख्त की कहानी पर आधारित चन्द्रकान्त देवताले द्वारा नाट्य रूपांतरण ‘सुकरात का घाव’ बहुत ही प्रभावशाली है। रंगमंच पर सफलतापूर्वक मंचस्थ नाटक ‘सुकरात का घाव’ का कला पक्ष भी उतना ही सबल है जितना साहित्य पक्ष। इसका उज्जैन के समर्पित रंगकर्मी धीरेन्द्र परमार के निर्देशन में कई जगह सफल प्रदर्शन हुआ है।
‘दरअसल जान बचाते हुए जिंदा नहीं रहा जा सकता। मैंने कुछ नहीं किया...सिर्फ जिंदा रहने और जिंदा रखने की कोशिश के सिवा।’ ‘सत्य के खिलाफ झूठ गुस्ताखी करता है, जिंदगी के खिलाफ मौत, शांति के खिलाफ युद्ध गुस्ताखी है, मेरे खिलाफ मौन’- जैसे संवाद नाटक को और रोचक एवं प्रभावकारी बना देते हैं। नाटक का कथानक सार्वकालिक है, संवाद प्रभावशाली हैं। यही नाटक की सफलता का रहस्य है।
भूखण्ड तप रहा है
‘भूखण्ड तप रहा है’ चन्द्रकान्त देवताले की लंबी कविता का नाट्य रूपांतरण है और प्रस्तुतकर्ता हैं- स्वतंत्र कुमार ओझा। प्रकृति के प्रगाढ़ और द्वन्द्वात्मक रिश्तों के बीच मनुष्य ने अपने अस्तित्व को खोजा है। वर्तमान उपलब्धि करोड़ों लोगों के अनवरत अनथक श्रम व बुद्धि पर आधारित है। लेकिन आज यंत्र-संस्कृति ने मनुष्य की आत्मा के स्पंदनों को रौंद डाला है।
नाटक के माध्यम से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की कोशिश की गई है कि वे कौन सी चीजें हैं जो आदमी को उसकी जड़ों से काटकर आदमी बनने से रोकती हैं। नाटक अति रोचक, संवेदनशील, प्रभावशाली व वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करने में समर्थ है। नाटक का कथानक सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक है।