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संवेदनाओं का आचमन : देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर...

संवेदनाओं का आचमन : देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर... - Book Reviews, Samvednaon ka Achaman
-रामकृष्ण नागर 'नाना'
गागर मे सागर भरना या थोड़े में बहुत कुछ कह जाना, जो मन- मस्तिष्क पर छा जाए। जी हां, मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे ही लघुकथा संग्रह की, जिसका नाम है 'संवेदनाओं का आचमन' की। एक ऐसा संग्रह जिसमें हमारे आसपास का परिवेश, विषयों की विविधता, शब्द सम्पदा, भाव सम्पदा को शब्दों में पिरोया है युवा लेखक विजयसिंह चौहान ने, जो पेशे अभिभाषक हैं, मगर उनका हृदय साहित्य के द्वार पर दस्तक देता है।
 
संवेदनाओं से भरा व्यक्तित्व जब समाज, घर-परिवार और अपने इर्द-गिर्द विसंगति देखता है तो उसके शब्द मुखर हो उठते हैं, फिर सकारात्मक लेखन और दिव्य संदेशों को समाहित कर ऐसा ताना-बाना बुन लेते जो न केवल मानसिक सन्तुष्टि देता अपितु जीवन प्रबंधन, शिक्षा और संस्कार की चाशनी नई दिशा प्रदान करती है।
 
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल के द्वारा अनुदानित एवं अपना प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह में कुल जमा 124 रचनाओं को शामिल किया गया है। प्रथम पृष्ठ पर पूज्य माता-पिता के चित्र और उन्हें अक्षरशः समर्पित पुस्तक हो या 'शब्द दान' का संकल्प। पुस्तक की कीमत के स्थान पर 'श्रद्धा निधि' गऊ ग्रास को समर्पित हो या अंत में लिखी 'अनुनय पाती' मैं पुस्तक पढ़ने के बाद योग्य पाठक तक पहुंचाने की बात। यह बात चौहान के नवाचार को रेखांकित करती है।

लघुकथा संग्रह को पढ़ते-पढ़ते कई बार आंसुओं की सहज उपस्थिति तो कभी-कभी मन मस्तिष्क का एकाकार भाव महसूस करने का अवसर मिला। पुरातन पीढ़ी के किस्से हों या मोबाइल संस्कृति में खोया बचपन, हर वर्ग की बात करती यह पुस्तक घर, परिवार, समाज और पुस्तकालय के पटल पर रखने योग्य है।

साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे ने लघुकथा में सकारात्मक पहलू, भारतीय संस्कार, संस्कृति और परिवार की परंपराओं को महसूस करते हुए अपनी बात रखी, वहीं पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध लेखिका/समीक्षक डॉ शोभा जैन ने रेखांकित किया कि समाहित लघुकथाओं में अपनी जड़ों से जुड़े रहकर मिट्टी की सोंधी सुगंध को महसूस किया जा सकता है। यही नहीं संग्रह में समाहित लघुकथा के विषय घर, परिवार, रिश्ते और संबंधों की विडंबना, जीवन की विसंगतियों के इर्द-गिर्द हैं, जो विशाल समुद्र की तरह ना होकर आचमनी का जल बनकर सामने आए हैं।
 
पत्रकार कीर्ति राणा ने पुस्तक को आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि इन लघुकथाओं को पढ़ते हुए आंखों के सामने पूरा चित्र उभर आता है तो कभी-कभी तेजी से धम्म की आवाज का अहसास भी होता है। लघुकथाओं में गोविंद काका, बोगदा, तुरपाई, बूंदों की सवारी, स्वामिनी, कच्चे धागे के बंध, परंपरा की मिट्टी, बड़ी रोटी, ठंडी बर्फ, और दादू का शेर मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं।
 
हार्ड बाउंड और हल्के पीले पृष्ठ पर प्रकाशित रचना एक नया फ्लेवर देती है। मुख पृष्ठ पर किया गया रेखांकन पुस्तक के शीर्षक को बखूबी परिभाषित करता है। गहरे कत्थई रंग और पीले रंग के बीच कई मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। पुस्तक पठनीय होने के साथ-साथ नई सोच भी प्रदान करती है।