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Last Updated : मंगलवार, 19 जनवरी 2021 (15:52 IST)

अनदेखे और अनजाने पहलुओं को सामने लाती दो जरूरी किताबें

अनदेखे और अनजाने पहलुओं को सामने लाती दो जरूरी किताबें - book review
राजकमल प्रकाशन समूह से दो किताबें आई हैं, एक अमेरिका को लेकर और दूसरी ठाकरे परिवार में राजनीतिक और वैचारिक विरोधाभास को लेकर। दोनों ही किताबें पढ़ने लायक है।

अमेरिका पर लिखी गई किताब में सवाल उठाए गए हैं कि क्‍या सम्भावनाओं को हकीकत में बदलने वाला देश क्या आशंकाओं से घिरा देश बनकर रह जाएगा–इस सवाल से जुड़े तमाम पहलुओं को सामने लाती चुनावी यात्रा डायरी–अमेरिका 2020 : एक बंटा हुआ देश।

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के वैचारिक-राजनीतिक टकराव और अलगाव की बेहद दिलचस्प कहानी सामने लाती जीवनी–ठाकरे भाऊ

अमेरिका 2020: एक बंटा हुआ देश
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का आंखों-देखा हाल बयान करती यह किताब दुनिया के सबसे विकसित और शक्तिशाली देश के उस चेहरे का साक्षात्कार कराती है जो उसकी बहुप्रचारित छवि से अब तक प्रायः ढंका रहा है। 42 दिनों की यात्रा में लेखक ने कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण के दौर में 34 दिन कार चलाकर लगभग 18 हजार किलोमीटर का जमीनी सफर तय किया। नतीजा यह किताब है जिसमें लेखक ने उस अमेरिका पर रौशनी डाली है जो हमारी कल्पनाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन जो वास्तविक है और काफी हद तक भारत के अधिसंख्य लोगों की तरह रोजी-रोटी और सेहत की चिन्ताओं से बावस्ता है।

यह किताब एक ओर अमेरिका और उसके राष्ट्रपति के सर्वशक्तिमान होने के मिथक को उघाड़ती है तो दूसरी ओर उन संकटों और दुविधाओं को भी उजागर करती है जिनसे ‘दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र’ आज जूझ रहा है।

यह अमेरिका के बहाने आगाह करती है कि लोकतंत्र सिर्फ़ हार-जीत या व्यवस्था का मसला नहीं है, बल्कि मानवीय उसूलों और साझे भविष्य के लिए किया जाने वाला सतत प्रयास है। इसके प्रति कोई भी उदासीनता किसी भी देश और उसके नागरिकों को आपस में बांट कर सकती है।

ठाकरे भाऊ
चचेरे और मौसेरे भाई—राज और उद्धव। सगे लेकिन राजनीतिक सोच में बिल्कुल अलग। एक बाल ठाकरे की चारित्रिक विशेषताओं को फलीभूत करने वाला, उनकी आक्रामकता को पोसनेवाला, दूसरा कुछ अन्तर्मुखी जिसकी रणनीतियां सड़क के बजाय काग़ज़ पर ज़्यादा अच्छी उभरती हैं।

शिवसेना की राजनीति को आगे बढ़ाने के दोनों के ढंग अलग थे। बाल ठाकरे की ही तरह कार्टूनिस्ट के रूप में कैरियर की शुरुआत करने वाले राज ने पार्टी के विस्तार के लिए चाचा की मुखर शैली अपनाई। दूसरी तरफ़ उद्धव अपने पिता की छत्रछाया में आगे बढ़ते रहे। राज ठाकरे ने अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया, वहीं उद्धव महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी व्यावहारिक सूझ-बूझ के चलते आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं।

यह पुस्तक इन दोनों भाइयों के राजनीतिक उतार-चढ़ाव का विश्लेषण है। पहचान की महाराष्ट्रीय राजनीति और शिवसेना तथा उससे बनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उद्भव की जटिल सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण करते हुए इस पुस्तक में उद्धव सरकार के गद्दीनशीन होने के पूरे घटनाक्रम और उसके अब तक के, एक साल के शासनकाल की चुनौतियों और उपलब्धियों का पूरा ब्यौरा भी दिया गया है।
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