डर को दूर भगाए सम्मोहन चिकित्सा
डॉ. निधि पतंग्या मानव प्रकृति है कि वह हर उस चीज से दूर भागना चाहता है, जिससे उसे डर लगता है, जो उसे नापसंद होती है या जो उसकी सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होती है। अपने अस्तित्व को खतरे में कौन डालना चाहता है?दुश्चिन्ता का ही एक रूप आतंक अथवा अयथार्थ भय है। भय स्वयंभी चिंता का कारण होता है। साधारण भय और भय रोग (फोबिया) में यह अंतर है। खतरे की स्थिति में जो शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया होती है वह तो सचमुच का भय है। जबकि भय की अनुभूति अथवा काल्पनिक कारणों से भयभीत होना भय रोग कहलाता है। अनेक प्रकार के अयथार्थ भय पाए जाते हैं जैसे खुले स्थान का भय (एगोरा फोबिया), ऊँचाई का भय (एक्रो फोबिया), बंद स्थान का भय (क्लास्ट्रो फोबिया), अँधेरे का भय (निक्टो फोबिया), गंदगी का भय (माइसो फोबिया)। खुले स्थान का भय (एगोरा फोबिया) :कभी-कभी कई बार हमें कुछ व्यक्ति यह कहते हुए मिल जाते हैं कि उन्हें खुले स्थान में जाने से डर लगता है। वह व्यक्ति खुले स्थान में अकेले नहीं रह सकता। इस प्रकार का डर ही एगोरा फोबिया कहलाता है। इसमें व्यक्ति बाहर अकेले जाने से या खुले में जाने से डरता है।ऊँचाई का भय (एक्रो फोबिया) :इसके अंतर्गत व्यक्ति ऊँचाई पर जाने से डरता है। घबराहट होती है, चक्कर आते हैं, उसे ऐसा लगता है कि वह ऊँचाई पर पहुँचते ही गिर जाएगा या उसे कुछ हो जाएगा। कई बार जब यह डर व्यक्ति के गहराई में पहुँच जाता है तो वह बेहोश भी हो जाता है।बंद स्थान का भय (क्लास्ट्रो फोबिया) :कुछ लोगों को बंद स्थान का भय लगता है। बंद स्थान के भय से आशय है उसमें व्यक्ति को लगता है कि अगर वह बंद कमरे में रहता है या रहेगा तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी। वह चाहता है कि वह हर वक्त खुले स्थान में रहे। अगर वह कमरे में भी है तो वह चाहता है कि सारे दरवाजे, खिड़कियाँ खोल दे ताकि अंदर हवा आती रहे। अगर दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हो जाएँगे तो उसे घुटन होगी, घबराहट होगी।
अँधेरे का भय (निक्टो फोबिया) :इसके अंतर्गत व्यक्ति को अँधेरे में जाने से डर लगता है। उसे लगता है कि अगर वह अँधेरे में जाएगा तो वह उस अँधेरे का सामना नहीं कर पाएगा। कई बार कुछ व्यक्तियों को अँधेरे में जाने का डर इसलिए भी लगता है, क्योंकि वे सोचते हैं कि अँधेरे में कहीं उन पर भूत-प्रेत आदि न आ जाएँ।गंदगी का भय (माइसो फोबिया) :इसके अंतर्गत व्यक्ति को गंदगी से भय लगता है। उसे लगता है कि अगर वह किसी व्यक्ति, वस्तु को छुएगा तो उसकी गंदगी, कीटाणु आदि उसे भी लग जाएँगे और वह बीमार हो जाएगा। वह इस भय से छुटकारा पाने के लिए कई बार स्नान करता है, अपने आपको पानी व साबुन से बार-बार साफ करता है। घर, कमरे, उसकी वस्तुओं की भी सफाई करता है क्योंकि उसे ऐसा भय लगता है कि अगर उसकी वस्तुओं को किसी ने छू लिया तो उसमें कीटाणु लग जाएँगे। वह बीमार हो जाएगा। और भी कई प्रकार के भय पाए जाते हैं। ऐसा नहीं कि ये भय केवल कुछ व्यक्तियों को किसी उम्र में ही होते हैं। भय बच्चों को भी लगता है। उन्हें कई प्रकार के भय लगते हैं। जैसे स्कूल जाने का भय, परीक्षा में पास न होने का भय। एक भय के खत्म होते ही दूसरा भय उसकी जगह ले लेता है।हालाँकि भय रोग की स्थिति बनने पर निःसंकोच होकर मनोचिकित्सक की सलाह लेना चाहिए। इसके अलावा वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में सम्मोहन चिकित्सा भी उपलब्ध है। भय का निवारण सम्मोहन चिकित्सा द्वारा संभव है। सम्मोहन चिकित्सा के द्वारा रोगी को अतीत में ले जाकर भय के कारणों का पता लगाकर उसका निवारण किया जाता है। एक कुशल सम्मोहन चिकित्सक एवं मनोविज्ञान के ज्ञाता द्वारा ही हमें यह चिकित्सा करवानी चाहिए। एक कुशल सम्मोहन चिकित्सक |
भय का निवारण सम्मोहन चिकित्सा द्वारा संभव है। सम्मोहन चिकित्सा के द्वारा रोगी को अतीत में ले जाकर भय के कारणों का पता लगाकर उसका निवारण किया जाता है ...
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आसानी से रोगी के भय के कारणों का पता लगाकर सुझावों के माध्यम से उसके भय का निवारण कर सकता है। उसे पूरी तरह अपने भय से मुक्ति दिला सकता है। अतः मरीज की हँसी उड़ाने के बजाए या फालतू डर रहे हो कहकर उसकी उपेक्षा करने के बजाए हमें शुरुआत में ही भय के लक्षण का पता लगते ही कुशल सम्मोहन चिकित्सक से संपर्क कर भय का कारण एवं निवारण जानना चाहिए। अगर एक बार यह भय हमारे मन में गहरी पैठ जमा ले तो उससे मुक्ति पाने में मुश्किल आती है। अतः लक्षणों का ज्ञान होते ही उसका निवारण करना चाहिए।