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Last Updated : रविवार, 5 सितम्बर 2021 (14:47 IST)

‘ऑनलाइन’ रहने वाले बच्चों के बारे में क्‍या कहती है ये ‘रिसर्च’

‘ऑनलाइन’ रहने वाले बच्चों के बारे में क्‍या कहती है ये ‘रिसर्च’ - UC Berkeley, Screen Time for Children
कोरोना काल में बच्चों का ज्यादातर समय कंप्यूटर और मोबाइल पर या तो ऑनलाइन क्लास लेने पर गुजरता है या फिर अपने दोस्तों के साथ चैट करने में। कई बच्चे गेम्स और वीडियो देखने के लिए भी इनका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

एक खबर के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ बर्कले की नई रिसर्च में पता चला है कि बच्चों पर कंप्यूटर या मोबाइल के आगे घंटों बैठने से ज्यादा कंटेंट की गुणवत्ता का ज्यादा असर पड़ता है।

इस स्टडी में कहा गया है कि बच्चे और युवा अगर इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्क्रॉल और पोस्ट करते हैं, तो इससे ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। वे ऑनलाइन कितने घंटे बिताते हैं, यह सोचने की बात हो सकती है, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल उनके ऑनलाइन कंटेंट देखने और चैट की गुणवत्ता को लेकर है।

‘जर्नल ऑफ रिसर्च ऑन एडोलसेंस’ में प्रकाशित शोध के मुताबिक जो बच्चे या युवा व्हाट्सऐप के जरिए दोस्तों और रिश्तेदारों से चैट करते हैं या मल्टीप्लेयर ऑनलाइन वीडियो गेम खेलते हैं, उन्हें अकेलेपन की कम शिकायत रहती है।

पॉजिटिव कंटेंट
शोध के प्रमुख लेखक एवं यूसी बर्कले इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलेपमेंट में वैज्ञानिक डॉ लूसिया मैगिस वेनबर्ग ने कहा, ‘यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप स्क्रिन पर अपना समय कैसे बिताते हैं, न कि कितना समय बिताते हैं। उन्होंने कहा कि इससे यह भी पता चलता है कि आप अकेलापन महसूस करते हैं या नहीं। इसलिए टीचर्स और पैरेंट्स को स्क्रीन टाइम घटाने के बजाय पॉजिटिव ऑनलाइन कंटेंट को बढ़ावा देने पर जोर देना चाहिए। यानी हम ये सुनिश्चित करें कि बच्चे क्या देख रहे हैं? किस तरह का कंटेंट देख रहे हैं।’

डॉ लूसिया का कहना है, यह रिसर्च उस आम धारणा को चुनौती देती है कि सोशल मीडिया के बहुत ज्यादा यूज से बच्चे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं। ऑनलाइन कंटेंट या चैट का सकारात्मक इस्तेमाल किया जाए, तो अकेलापन दूर होता है।
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