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Written By WD

गुड़ी पड़वा का पौराणिक महत्व और तथ्य

गुड़ी पड़वा का पौराणिक महत्व और तथ्य - Gudi Padwa 2016
फाल्गुन के जाने के बाद उल्लासित रूप से चैत्र मास का आगमन होता है। चहुंओर प्रेम का रंग बिखरा होता है। प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है। दिन हल्की तपिश के साथ अपने सुनहरे रूप में आता है तो रातें छोटी होने के साथ ठंडक का अहसास कराती हैं। मन भी बावरा होकर दुनिया के सौंदर्य में खो जाने को बेताब हो उठता है।




 
यह अवसर है नवसृजन के नवउत्साह का, जगत को प्रकृति के प्रेमपाश में बांधने का। पौराणिक मान्यताओं को समझने व धार्मिक उद्देश्यों को जानने का। यही है नवसंवत्सर, भारतीय संस्कृति का देदीप्यमान उत्सव। चैत्र नवरात्रि का आगमन, परम ब्रह्म द्वारा सृजित सृष्टि का जन्मदिवस, गुड़ी पड़वा का विशेष अवसर। 

 
 

भारतीय संस्कृति में गुड़ी पड़वा को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को विक्रम संवत के नए साल के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि से पौराणिक व ऐतिहासिक दोनों प्रकार की ही मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। 
 
ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी तरह के उल्लेख अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में भी मिलते हैं। इसी दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती हैं। 





लोक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान राम का और फिर महाभारत काल में युधिष्ठिर का राज्यारोहण किया गया था। इतिहास बताता है कि इस दिन मालवा के नरेश विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया।


नववर्ष की शुरुआत का महत्व :- 
 
नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियां मार्च और अप्रैल के महीनों में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह में ही नववर्ष मनाता है और इसे नवसंवत्सर के रूप में जाना जाता है। 




 
गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाड़ी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नवसंवत्सर के आसपास आती हैं। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। 
 
इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।