मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ
-
गोपालदास ''नीरज'' मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूपनगर कीहो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?मीलों जहाँ न पता खुशी कामैं उस आँगन का इकलौता,तुम उस घर की कली जहाँ नितहोंठ करें गीतों का न्योता,मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरीमिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?मैं पीड़ा का...मेरा कुर्ता सिला दु:खों ने बदनामी ने काज निकालेतुम जो आँचल ओढ़े उसमेंनभ ने सब तारे जड़ डालेमैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरामिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?मैं पीड़ा का...मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ीउम्र आँसुओं की बढ़ जाएतुम आई इस हेतु कि मेंहदीरोज़ नए कंगन जड़वाए,तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दु:खान्तकीजुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?मैं पीड़ा का...इतना दानी नहीं समय जोहर गमले में फूल खिला दे,इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगीहर ख़त का उत्तर भिजवा दे,मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँजब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?मैं पीड़ा का...