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मेरा गीत दीया बन जाए
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नीरज अंधियारा जिससे शरमाए, उजियारा जिसको ललचाए,ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए ! इतने छलको अश्रु थके हर राहगीर के चरण धो सकूँ, इतना निर्धन करो कि हर दरवाजे पर सर्वस्व खो सकूँ ऎसी पीर भरो प्राणों में नींद न आए जनम-जनम तक, इतनी सुध-बुध हरो कि साँवरिया खुद बाँसुरिया बन जाए ! ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !! घटे न जब अंधियार, करे तब जलकर मेरी चिता उजाला, पहला शव मेरा हो जब निकले मिटने वालों का मेंलापहले मेरा कफन पताका बन फहरे जब क्रान्ति पुकारे, पहले मेरा प्यार उठे जब असमय मृत्यु प्रिया बन जाए ! ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !! मुरझा न पाए फसल न कोई ऎसी खाद बने इस तन की, किसी न घर दीपक बुझ पाएऎसी जलन जले इस मन की भूखी सोए रात न कोई प्यासी जागे सुबह न कोई, स्वर बरसे सावन आ जाएरक्त गिरे, गेहूँ उग आए ! ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !! बहे पसीना जहाँ, वहाँ हरयाने लगे नई हरियाली, गीत जहाँ गा आए, वहाँछा जाय सूरज की उजियाली हँस दे मेरा प्यार जहाँ मुसका दे मेरी मानव-ममता चन्दन हर मिट्टी हो जाए नन्दन हर बगिया बन जाए। ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !! उनकी लाठी बने लेखनी जो डगमगा रहे राहों पर, हृदय बने उनका सिंघासन देश उठाए जो बाहों पर श्रम के कारण चूम आई वह धूल करे मस्तक का टीका,काव्य बने वह कर्म, कल्पना- से जो पूर्व क्रिया बन जाए ! ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !! मुझे श्राप लग जाए, न दौड़ूँजो असहाय पुकारों पर मैं, आँखे ही बुझ जाएँ, बेबेसी देखूँ अगर बहारों पर मैं टूटे मेरे हाथ न यदि यह उठा सकें गिरने वालों को मेरा गाना पाप अगर मेरे होते मानव मर जाए ! ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दीया बन जाए !!