Horrific accident in Indore: कल्पना कीजिए, इंदौर शहर का वीआईपी इलाका, शाम 7.30 बजे पीक ट्रैफिक का समय और एक भारवाहक ट्रक नो-एंट्री में घुसकर 2 किलोमीटर तक लोगों और वाहनों को रौंदता हुआ मौत का तांडव करता है। यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि उस इंदौर की हकीकत है जिसे हम देश का सबसे स्वच्छ शहर कहते हैं। और विडंबना देखिए, यह सब तब हुआ जब 17 सितंबर को प्रधानमंत्री के धार दौरे के चलते इसी एयरपोर्ट रोड पर सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे। बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की बात भी कही जा रही थी। यह एक हादसा नहीं, बल्कि इंदौर के सड़ चुके सिस्टम का जीता-जागता सबूत है।
अवॉर्ड्स की चमक और कागजी ब्रांडिंग के पीछे का इंदौर आज अपनी बदहाली पर रो रहा है। यह शहर अब नेता-अफसरों के उस गठजोड़ के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया है, जिसे सिर्फ लूटना आता है, शहर चलाना नहीं। Metro का जाल बिछाने के नाम पर पूरा शहर खोद डाला गया, लेकिन प्लानिंग शून्य है। ट्रैफिक जाम में घंटों रेंगती जनता और धूल-कीचड़ और गड्ढेदार सड़कों में बर्बाद होता जीवन, यही आज इस शहर की सच्चाई है।
भ्रष्टाचार का अड्डा बना नगर निगम : इंदौर नगर निगम आज शहर का सबसे नकारा और भ्रष्ट विभाग बन चुका है। यहां अफसरशाही अहंकार में इतनी चूर है कि चुने हुए महापौर तक की नहीं सुनी जाती। महापौर 'मीठी-मीठी' बातें करते हैं, शिकायतों पर 'दिखवाता हूं' का आश्वासन देते हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। शहर की सड़कें प्रयोगशाला बन गई हैं। आज यहां खोदो, कल वहां खोदो। महीनों तक गड्ढे खुले पड़े रहते हैं, बारिश में जानलेवा कीचड़ और धूप में बीमारियों की धूल। यह कैसा विकास है जहां ठेकेदार और अफसर मालामाल हो रहे हैं और जनता कंगाल?
मंत्री-विधायक सिर्फ फोटो-सेशन और भंडारों तक सीमित? : शहर के कद्दावर मंत्री और विधायक अपनी ही विधानसभा में बेबस नजर आते हैं। खुद मुख्यमंत्री इंदौर के प्रभारी मंत्री हैं, फिर भी शहर का यह हाल है! हमारे नेता भंडारे कराने, धार्मिक यात्राएं निकालने और सोशल मीडिया पर फोटो पोस्ट करने में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें जनता की चीखें सुनाई नहीं देतीं। काम के लिए जाओ तो जवाब मिलता है - "देखते हैं, हो जाएगा।" लेकिन होता कुछ नहीं, जब तक कि आप किसी 'भाई' या 'पठ्ठे' के खास न हों। सिफारिश और लूट का यह खेल कब बंद होगा? हां, एक चीज़ में इंदौर ने खूब तरक्की की है। हर जगह पर शराब की दुकानें खुलवा दी गई हैं। शहर के विकास का शायद यही 'स्मार्ट' मॉडल है!
पुलिस कमिश्नरी सिस्टम का ढोंग या हकीकत? : आम आदमी के लिए पुलिस विभाग सिरदर्द बन चुका है। इंदौर में कमिश्नरी सिस्टम पूरी तरह फेल है। कमिश्नर साहब का पूरा ध्यान सिर्फ सरकार और बड़े अफसरों को खुश करने वाली मीटिंग्स पर है। एसी दफ्तरों से बाहर निकलकर शायद ही कोई अफसर शहर का दर्द देखता हो। ट्रैफिक पुलिस का काम जाम हटवाने से ज्यादा चालान बनाने पर है। रात में 'ड्रिंक एंड ड्राइव' के नाम पर आम जनता को परेशान करने वाली पुलिस दिन में नो-एंट्री में घुसते मौत के ट्रकों को क्यों नहीं देख पाती? थाने में एफआईआर लिखवानी हो तो किसी मंत्री-अफसर की सिफारिश चाहिए, वरना आवेदन लेकर टरका दिया जाता है। हाल ही में एक पुलिस अफसर का 1 लाख की रिश्वत मांगते हुए पकड़ा जाना तो इस सड़े हुए सिस्टम की एक छोटी सी झलक भर है।
जहां मौत बांटते है चूहे! : इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा कि प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल (एमवाय) में चूहे दो नवजातों को मार डालते हैं! और प्रशासन चैन की नींद सोता रहता है। यह लापरवाही नहीं, हत्या है! सरकारी अस्पताल भ्रष्टाचार और निकम्मेपन के केंद्र बन चुके हैं। बाहर से आए अफसरों के लिए इंदौर सिर्फ एक पोस्टिंग है, जहां वे अपनी सीआर चमकाते हैं, अवॉर्ड्स का जुगाड़ करते हैं और कमाकर चले जाते हैं। शहर की जनता मरे या जिए, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
अब चुप रहने का वक्त नहीं! : यह सब देखकर लगता है कि इंदौर की बर्बादी एक सोची-समझी साजिश है। नेता-अफसरों का यह गठजोड़ शहर को दीमक की तरह खा रहा है, और हम सब चुपचाप देख रहे हैं। अब जागने का समय है। हमें सवाल पूछने होंगे।
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क्यों विकास के नाम पर शहर को महीनों तक खुदा हुआ छोड़ दिया जाता है?
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क्यों नो-एंट्री में ट्रक घुसने पर सिर्फ ड्राइवर जिम्मेदार है, पुलिस और प्रशासन क्यों नहीं जिन्होंने उसे रोकने का इंतजाम नहीं किया?
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क्यों हमारे चुने हुए प्रतिनिधि अफसरों के सामने बेबस हैं?
यह शहर हमारा है, किसी की जागीर नहीं। अगर आज हमने आवाज नहीं उठाई, तो कल यह 'स्वच्छ शहर' का तमगा सिर्फ एक कड़वा मजाक बनकर रह जाएगा। मुख्यमंत्री जी, अब आपको सुनना ही होगा!
इरतिज़ा निशात का यह शेर इंदौर के इन हालातों पर सौ फ़ीसदी खरा उतरता है-
"कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं है,
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते"