Interesting facts about ramayana: रामायण में युद्ध और वीरता की कई कहानियां हैं, लेकिन रावण के सबसे शक्तिशाली पुत्र, मेघनाद की मृत्यु से जुड़ा एक वृत्तांत न केवल अविश्वसनीय है, बल्कि यह एक पत्नी के पतिव्रत धर्म की शक्ति को भी दर्शाता है। यह कहानी युद्ध के मैदान से शुरू होती है, जहां लक्ष्मण और मेघनाद के बीच भीषण युद्ध चल रहा था।
लक्ष्मण का संकल्प और मेघनाद का अंत: भगवान राम की आज्ञा का पालन करते हुए, लक्ष्मण मेघनाद से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ते हैं। युद्ध बहुत ही भयंकर था, और दोनों योद्धाओं ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। अंत में, लक्ष्मण ने एक शक्तिशाली बाण से मेघनाद का वध कर दिया। उस समय प्रभु श्रीराम ने लक्ष्मण को विशेष निर्देश दिया था कि मेघनाद का शीश नीचे न गिरे, क्योंकि वह एक महान योद्धा था। इस आज्ञा का पालन करते हुए, लक्ष्मण ने मेघनाद के कटे हुए शीश को हाथ में ले लिया। इसके बाद, पवनपुत्र हनुमानजी द्वारा मेघनाद के मस्तक को भगवान राम के शिविर में लाया गया।
सुलोचना को कैसे मिला पति की मृत्यु का समाचार: जब मेघनाद का शीश शिविर में लाया गया, उसी समय एक अद्भुत घटना हुई। मेघनाद की दाहिनी भुजा उड़ती हुई उनकी पत्नी सुलोचना के पास जा गिरी। सुलोचना, जो अपने पति के लौटने का इंतजार कर रही थी, इस दृश्य को देखकर स्तब्ध रह गईं। उन्होंने उस भुजा को उठाकर कहा, "यदि तुम सच में मेरे स्वामी की भुजा हो, तो युद्ध में जो कुछ भी हुआ, वह सब लिख दो।"
एक पतिव्रता की शक्ति से, उस बिना प्राण की भुजा ने एक कलम उठाई और अपने मेघनाद होने का प्रमाण देते हुए युद्ध का सारा वृत्तांत लिख डाला। उस भुजा ने लिखा कि किस प्रकार लक्ष्मण ने उन्हें पराजित किया और उनका शीश अब राम के शिविर में है।
सुग्रीव का उपहास और सुलोचना का विश्वास: जब यह समाचार राम के शिविर में पहुंचा, तो सभी आश्चर्यचकित थे। सुग्रीव ने कहा, "यह असंभव है। यदि बिना प्राण के कोई भुजा लिख सकती है, तो फिर यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।" यह सुनकर सुलोचना राम के शिविर में पहुंची और अपने पति के कटे हुए शीश के सामने खड़ी हो गईं। उन्होंने शांत भाव से कहा, "यदि मैंने मन, वचन और कर्म से अपने पति को देवता माना है, तो उनका यह बिना प्राण का मस्तक हंस उठे।"
जब हंसा मेघनाद के बिना प्राण का मस्तक: सुलोचना की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक मेघनाद का कटा हुआ मस्तक जोर-जोर से हंसने लगा। यह देखकर सभी हैरान रह गए। यह न केवल मेघनाद की वीरता का प्रमाण था, बल्कि यह सुलोचना के अटूट विश्वास और पतिव्रत धर्म की शक्ति का भी प्रतीक था।
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