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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शनिवार, 11 अक्टूबर 2025 (15:41 IST)

Diwali 2025: क्या लक्ष्मी जी के दत्तक पुत्र हैं श्रीगणेश?, जानिए दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ क्यों पूजे जाते हैं

Diwali 2025
why ganesh ji is worshipped with laxmi mata: दीपावली का त्योहार यानी सुख-समृद्धि और वैभव का महापर्व। इस दिन हर घर में धन की देवी माता लक्ष्मी का आगमन होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली पूजन में लक्ष्मी जी की प्रतिमा के दाहिनी ओर हमेशा बुद्धि और शुभ-लाभ के देवता श्रीगणेश को ही क्यों स्थापित किया जाता है? लक्ष्मी और गणेश का यह संयुक्त पूजन एक गहरा दार्शनिक और पौराणिक रहस्य छिपाए हुए है।

महापुराण में वर्णित 'दत्तक पुत्र' की कथा: हिंदू महापुराणों में एक मार्मिक और सुंदर कथा वर्णित है, जो बताती है कि गणेश जी को लक्ष्मी जी का 'दत्तक पुत्र' क्यों कहा जाता है।
एक बार, माता लक्ष्मी को स्वयं पर बहुत अभिमान हो गया था। उन्हें लगा कि पूरे संसार में हर व्यक्ति उनकी कृपा पाने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है, इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ हैं। उनके अहंकार को समझते हुए, भगवान विष्णु ने उनसे कहा, "देवी, भले ही पूरा संसार आपकी कृपा प्राप्ति के लिए व्याकुल रहता है, लेकिन संतान न होने के कारण आप सदा संतान के सुख के लिए व्याकुल रहती हैं। आपके पास जगत का वैभव है, पर मातृत्व का सुख नहीं।"

भगवान विष्णु के इन शब्दों से लक्ष्मी जी का अभिमान चूर-चूर हो गया और वह दुःखी हो गईं। तब उन्होंने अपनी यह पीड़ा मां पार्वती को बताई, जो स्वयं दो सिद्ध पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय की माता थीं। लक्ष्मी जी के दुःख को देखकर, दयालु मां पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया और कहा, "आज से गणेश तुम्हारे पुत्र हुए। इन्हें अपने पास रखो और इन्हें मातृत्व सुख दो।"

इससे मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं। मातृत्व का सुख मिलते ही उनका सारा दुःख दूर हो गया। प्रसन्न होकर उन्होंने श्रीगणेश को यह वरदान दिया कि आज से, जिस भी स्थान पर मेरी पूजा होगी, वहां सबसे पहले गणेश की पूजा की जाएगी। जो व्यक्ति मेरी पूजा अकेले करेगा, मैं उसके यहां कभी वास नहीं करूंगी।
इसी वरदान के कारण, दिवाली पर सबसे पहले श्रीगणेश जी को पूजकर उनसे शुभ-लाभ और बुद्धि का वरदान मांगा जाता है, और फिर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

क्या है पौराणिक कथा का दार्शनिक पक्ष: पौराणिक कथा के अलावा, यह संयुक्त पूजा हमें जीवन का सबसे बड़ा व्यावहारिक पाठ भी सिखाती है।
1. बुद्धि के बिना धन विनाशकारी: लक्ष्मी धन का प्रतीक हैं, जबकि गणेश बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं। यदि किसी व्यक्ति को अपार धन प्राप्त हो जाए, लेकिन उसके पास उसे संभालने की बुद्धि (विवेक) न हो, तो वह धन शीघ्र ही अहंकार, गलत फैसलों और अंततः विनाश का कारण बन जाता है।
2. समृद्धि का अर्थ: सच्चा 'वैभव' केवल पैसे से नहीं आता। यह धन (लक्ष्मी) और ज्ञान (गणेश) के सही संतुलन से आता है। गणेश जी को 'शुभ' और 'लाभ' का दाता भी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वह धन की प्राप्ति में शुभता और उसके उपयोग में लाभ सुनिश्चित करते हैं।
इसलिए, दिवाली पर हम लक्ष्मी जी से समृद्धि मांगते हैं, और गणेश जी से उस समृद्धि को सही ढंग से उपयोग करने के लिए सदबुद्धि मांगते हैं।

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