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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 (17:57 IST)

Dhanteras 2025: धनतेरस पर क्यों होता है 'यम दीपदान'? जानिए अकाल मृत्यु का भय मिटाने वाली अद्भुत कथा

यमदीप कब जलाना चाहिए
Importance of yam deepak on dhanteras: दीपावली के 5 दिवसीय महापर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है। इस दिन जहां भगवान धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी की पूजा से धन और आरोग्य का वरदान मांगा जाता है, वहीं एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है यम दीपदान। यह अनूठी परंपरा न केवल धार्मिक है, बल्कि जीवन के सबसे बड़े सत्य, मृत्यु के भय को दूर करने का एक अचूक उपाय भी मानी जाती है। आइए जानते हैं धनतेरस पर यम दीपदान क्यों किया जाता है और इसका धार्मिक महत्व क्या है।

यम दीपदान का पौराणिक महत्व
धनतेरस पर यमराज के नाम का दीपक जलाने की परंपरा के पीछे एक प्राचीन कथा छिपी है, जिसका वर्णन स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा हेम थे, जिनके पुत्र को ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि विवाह के ठीक चौथे दिन सर्पदंश से उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा ने राजकुमार को तमाम तरह के खतरे से दूर रखा, लेकिन नियति को कोई टाल नहीं सका।

विवाह के चौथे दिन जब यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आए, तो उसकी नवविवाहित पत्नी ने उन्हें रोकने की एक अद्भुत योजना बनाई। उसने घर के मुख्य द्वार पर दीपों की एक पंक्ति (दीवार) बना दी और अपने सभी हीरे-जवाहरात और स्वर्ण मुद्राएं उस पंक्ति के बीच में फैला दिए।

जब यमराज सर्प के रूप में वहां पहुंचे, तो दीपों और आभूषणों की तेज़ रोशनी से उनकी आंखें चकाचौंध हो गईं। वे उन दीपों की सीमा को पार नहीं कर पाए और सारी रात वहीं बैठे रहे। सुबह होने पर उन्हें बिना प्राण लिए ही वापस लौटना पड़ा। इस घटना के बाद यमराज ने वरदान दिया कि जो व्यक्ति कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी की संध्या को मेरे निमित्त दीपदान करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा।

यम दीपदान क्यों है जरूरी?
स्कंद पुराण के श्लोक "धनत्रयोदश्यां रात्रौ यमदीपं प्रज्वालयेत्। दीपदानं तु यं कृत्वा न यमदर्शनं भवेत्॥" के अनुसार जो व्यक्ति धनतेरस की रात्रि में यमराज के नाम से दीप जलाता है, उसे मृत्यु के पश्चात यमलोक के दर्शन नहीं करने पड़ते। यम दीपदान का मुख्य उद्देश्य परिवार के सदस्यों की दीर्घायु और सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
अकाल मृत्यु से रक्षा: यह दीपक सीधे मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होता है। मान्यता है कि इसे श्रद्धापूर्वक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार को असमय मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।
दक्षिण दिशा का महत्व: यमराज को दक्षिण दिशा का स्वामी माना जाता है। इसलिए यह दीपदान घर के मुख्य द्वार के बाहर (बाहर की ओर मुख करके) और दक्षिण दिशा की ओर किया जाता है। यह यमराज को मार्ग दिखाने का प्रतीक भी है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश: यह दीप घर से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, रोग और व्याधियों को दूर करता है, जिससे घर में सकारात्मकता और आरोग्य का वास होता है।

दीपदान की सरल विधि
धनतेरस की शाम को, सूर्यास्त के बाद यम दीपदान किया जाता है:
1. दीपक: एक मिट्टी का बड़ा दीपक लें।
2. तेल: इसमें सरसों का तेल या तिल का तेल भरें।
3. बाती: नई बाती लगाएं और इसे जलाएं।
4. स्थान: इस दीपक को घर के मुख्य द्वार के बाहर (दक्षिण दिशा की ओर मुख करके) एक साफ़ जगह पर रखें। इसे घर के भीतर नहीं रखना चाहिए।
5. कामना: दीप जलाते समय यमराज से परिवार के आरोग्य और दीर्घायु की प्रार्थना करें।

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