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रानी दुर्गावती की बलिदान दिवस आज।
महानतम वीरांगना रानी दुर्गावती के बारें में जानें।
जानिए क्यों रखा गया था उनका नाम दुर्गावती।
Rani Durgavati : 24 जून यानि कि आज रानी दुर्गावती की बलिदान दिवस हैं। भारत की महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में रानी दुर्गावती का नाम आता है।
आइए जानते हैं यहां रानी दुर्गावती के बारे में अनसुनी बातें :
1. रानी दुर्गावती भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना थीं, जिसने मध्य प्रदेश में शासन किया था। दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था। उनका राज्य गोंडवाना में था।
2. बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई।
3. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था।
4. दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।
5. रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डालने वाले सूबेदार बाजबहादुर को भी मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।
6. दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी।
7. रानी दुर्गावती बड़ी वीर थी। उसे कभी पता चल जाता था कि अमुक स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वह शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं।
8. दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।
9. वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान दे दिया था।
10. रानी दुर्गावती वो पराक्रमी महिला थीं, जिसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अपनी अस्मिता के लिए युद्ध भूमि में उतरकर अनेक बार शत्रुओं को पराजित किया और 24 जून 1564 में अपने जीवन का बलिदान दे दिया। और विश्व के इतिहास में अपना नाम सुवर्ण अक्षरों में लिख दिया।
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