पाक अधिकृत कश्मीर में सेना द्वारा 'सर्जिकल स्ट्राइक' के जरिए 7 आतंकी कैंपों को तहस-नहस करना मोदी सरकार का साहसिक कदम है। इस कदम का जिस तरह बांग्लादेश ने समर्थन किया है और चीन जैसे शक्तिशाली देश ने उम्मीद से उलट पाकिस्तान का साथ नहीं दिया है, उससे साफ है कि मोदी सरकार की कूटनीति सफल रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं पर जो लोग सवाल उठाते रहे हैं, उन्हें इस तथ्य पर गौर करना चाहिए। अब माना जाना चाहिए कि मोदी ने अगर धुआंधार दुनियाभर की यात्राएं नहीं की होतीं, दुनियाभर के महत्वपूर्ण नेताओं के सामने भारत का पक्ष नहीं रखा होता तो तय मानिए, आज सर्जिकल हमले के बाद भारत पर सवाल उठ रहे होते। तब पाकिस्तान का पलड़ा भारी होता और वह खुद को पीड़ित के तौर पर दुनिया के सामने पेश करके सहानुभूति और आर्थिक सहायता हासिल करने में कामयाब हो गया होता।
बेशक, इस कामयाब हमले के लिए भारतीय सेना सैल्यूट की हकदार है, लेकिन मोदी सरकार को भी उसकी कूटनीति के लिए पूरे अंक दिए जाने चाहिए। मोदी अपनी ही पार्टी के पूर्ववर्ती और विराट नेता अटल बिहारी वाजपेयी से भी इस मामले में आगे निकल गए हैं।
काठमांडू से दिल्ली आ रहे आईसी-814 के 1999 में अपहरण के बाद भारतीय सेना और वायुसेना इसी तरह की कार्रवाई करने को तैयार थी। उस दौरान सेना में उच्च स्तर पर तैनात रहे सेना के सूत्र बताते हैं कि तालिबान के कब्जे से अपने विमान को छुड़ाने के लिए सेना मुख्यालय राजनीतिक आदेश का इंतजार करता रह गया, लेकिन वाजपेयी सरकार ऐसा साहस नहीं दिखा पाई।
13 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर हमले के बाद भी सेना ने ऐसी कार्रवाई की तैयारी की थी, लेकिन उसे हरी झंडी नहीं मिल पाई। इस लिहाज से देखें तो मोदी अपने ही कद्दावर नेता वाजपेयी से आगे निकल गए हैं।
माना जा सकता है कि उन्होंने अपनी ही पूर्ववर्ती सरकार की गलतियों से सबक लिया है और पहले कूटनीति के मोर्चे पर चाक-चौबंद इंतजाम किया और फिर पाकिस्तान को उसी के घर में मात दी। दूसरी बात यह भी है कि उस वक्त के विपक्ष ने भी वैसी संजीदगी नहीं दिखाई थी, जैसा इस बार विपक्ष दिखा रहा है। उस समय विपक्षी दलों के एक धड़े ने वाजपेयी सरकार की जिस तरह घेराबंदी की थी, उससे सरकार दबाव में आ गई थी।
बहरहाल, पाकिस्तान में जिस तरह सैकड़ों आतंकी अड्डे चल रहे हैं, उसके सामने सिर्फ 7 आतंकी अड्डों को नेस्तनाबूद करना बड़ी कार्रवाई तो नहीं है, लेकिन इसका सांकेतिक महत्व बड़ा है। यह पाकिस्तान स्थित आतंक के आकाओं मसलन हाफिज सईद का मनोबल तोड़ने का काम करेगी। पाकिस्तान बेशक इस हमले को झुठला रहा है। अपनी जनता के सामने वहां के राजनीतिक नेतृत्व को ऐसा करते दिखना राजनीतिक मजबूरी भी है।
लेकिन इस हमले की तस्दीक इसी बात से हो जाती है कि पाकिस्तान ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय राजदूत को न सिर्फ तलब किया, बल्कि उन्हें इस हमले को उकसावे की कार्रवाई बताते हुए अपना विरोध जताया है।
पाकिस्तान में देशभक्ति का एक नया ज्वार स्थानीय स्तर पर दिख सकता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तानी जनता का एक बड़ा हिस्सा भारतीय जनता के बड़े तबके की तरह सोच रखता है। इसलिए ऐसे हमलों के वक्त पाकिस्तान की आम जनता को कोई नुकसान ना हो, इसका फायदा उड़ी के एक शहीद की पत्नी ने भी कहा है कि ऐसे हमले किए जाएं और आतंकियों का मनोबल तोड़ा जाए, लेकिन पाकिस्तान की बेकसूर अवाम को कोई चोट नहीं पहुंचनी चाहिए।
बेशक, पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त 1947 को हुआ लेकिन भारत तो अजर-अमर है। इसके जन्म की कोई तारीख नहीं बता सकता और 14 अगस्त 1947 से पहले तक इसी देवभूमि का पाकिस्तान भी अंग था। पाकिस्तान की अवाम को लेकर आम भारतीय अवाम भी इसी वजह से अलहदा का कोई भाव नहीं रखता। उड़ी के शहीद का बयान इसी बड़प्पन का प्रतीक है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार ने जिस तरह इस भावना का खयाल रखा है, आगे भी रखेगी और हमारी सेना भी इस सोच की संजीदगी को समझेगी। इस संजीदा सोच का दीर्घकालीन फायदा भी होगा और वह भारतीय राष्ट्र-राज्य की पारंपरिक सोच को ही आगे बढ़ाएगा।