गुरुवार, 7 अगस्त 2025
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. करंट अफेयर्स
  4. premanand maharaj controversy
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 1 अगस्त 2025 (18:13 IST)

प्रेमानंद महाराज के विरोध में महिलाओं का हल्ला बोल! क्या अधूरी बात से निकाला गया मनगढ़ंत सच?

premanand maharaj controversy hindi
premanand maharaj controversy : इन दिनों कुछ कथावाचकों के महिलाओं को लेकर बयानों पर समाज में एक तीखी बहस छिड़ी हुई है। इस बहस के केंद्र में दो प्रमुख नाम हैं – कथावाचक अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज। सवाल यह है कि क्या इन दोनों ने एक ही बात कही है, और क्या उन्हें एक ही पलड़े में रखना सही है? या फिर 'महिला स्वतंत्रता' के ढोल की आवाज़ में सच को दबाया जा रहा है?

अनिरुद्धाचार्य बनाम प्रेमानंद महाराज पर विवाद
सबसे पहले बात करते हैं अनिरुद्धाचार्य की,जिन्होंने कथित तौर पर लड़कियों की शादी की उम्र और उनके 'मुंह मारने' वाले बयान पर टिप्पणी की थी। यह बयान निश्चित रूप से महिला विरोधी है। ये भी सच है कि अनिरुद्धाचार्य ने कहीं भी 'मुंह मारने' वाले बयान में यह नहीं कहा कि अगर लड़कियां 'मुंह मार रही हैं' तो वह किसके साथ हैं? उस जाति को ‘मर्द’ कहा जाता है, जो उनकी अपनी है और इसीलिए शायद कथावाचक ने खुद को जिम्मेदारी से मुक्त रखा कि चरित्र का जिम्मा उनका भी होता है। यह एकतरफा दृष्टिकोण था, जिसने महिलाओं को सीधे चरित्र के कटघरे में खड़ा कर दिया और पुरुषों की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया।

वहीं प्रेमानंद महाराज के एकांकी वार्तालाप में किसी भक्त ने टूटती शादियों पर सवाल किया और महाराज ने आज के समय के लड़कों और लड़कियों दोनों को इसके लिए बराबर से जिम्मेदार ठहराया। वैसे ये विडियो हाल का नहीं है, काफी पुराना है जिसे शायद विवाद के इरादे से ही खोजा गया और तेजी से वायरल करवाया गया। इस सवाल के जवाब में प्रेमानंद महाराज ने कहीं भी सिर्फ महिलाओं को चरित्र के कटघरे में नहीं खड़ा किया, बल्कि पुरुषों को समान रूप से उत्तरदाई बताया।

प्रेमानंद महाराज ने स्पष्ट रूप से कहा कि आज की पीढ़ी में धैर्य, सहनशीलता और समर्पण की कमी है, जो रिश्तों के टूटने का प्रमुख कारण है। यहां गौर करने वाली बात है कि उन्होंने इसकी जिम्मेदारी का दारोमदार सिर्फ महिलाओं पर नहीं मढ़ा। उनकी बात का मर्म यह था कि आधुनिक जीवनशैली और सोच ने रिश्तों की नींव को कमजोर किया है, और यह समस्या किसी एक लिंग तक सीमित नहीं है। प्रेमानंद महाराज राधा जू के भक्त हैं, अपनी लाड़ली के दास हैं। उनकी प्रेम की परिभाषा का आधार ही पवित्रता है। सवाल यह है कि ऐसे संत से आप किस तरह के जवाब की उम्मीद करते हैं?

समाज का 'दोगलापन': सच को दबाने की कोशिश?
यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि अनिरुद्धाचार्य के बयान से बौखलाई महिलाओं के हल्ले में प्रेमानंद महाराज की वाणी को एक तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दबाया जा रहा है। उनके अधूरे कथन को सामने रखकर जिस तरह उनका विरोध हो रहा है, उससे एक बात तो बिल्कुल साफ है कि महिलाएं कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं, फिर चाहे बात स्पष्ट और पक्षपातहीन ही क्यों न हो।
एक अधूरे स्टेटमेंट को बार-बार दिखाकर किसी संत को महिला विरोधी बताना क्या साबित करता है? इस पूरे प्रकरण में महिला मुक्ति मोर्चा ने ताबड़तोड़ प्रेमानंद जी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी, उनके लिए अपशब्द कहे और यहां तक कि उन पर मीम्स तक बनने लगीं। महिला आज़ादी के ढोल को इतना ज़ोर से पीटा गया कि उसके शोर में पूरे सच को दबा डाला। यह भारतीय समाज का 'दोगलापन' नहीं तो और क्या है? जहां एक संत ने दोनों पक्षों को समान रूप से जिम्मेदार बताया फिर भी उन्हें एकतरफा आलोचना का शिकार बनाया जा रहा है।

संत का दायित्व: जिज्ञासा का समाधान और क्रांति का बीज
स्त्री के आचरण पर, स्त्री की पसंद पर और स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाना कथावाचकों या संतों का काम नहीं, लेकिन अपने निजी क्षेत्र में किसी भक्त के प्रश्न का जवाब देना संत का दायित्व है। इसी धरती पर एक विचारक हुए रजनीश (ओशो)। इस देश ने उनकी बातों को भी बिना समझे उन्हें 'सेक्स गुरू’ का तमगा दे डाला। लेकिन वे रजनीश थे जो मूढ़ों की जमात का इलाज अनूठी शैली में करने का कौशल रखते थे। वे उस समय की बड़ी क्रांति थे जिसे दुनिया ने तब भले ही न समझा हो, लेकिन आज उनके विचारों को क्रांति बीज समझा जाता है। सोच कर देखिए, क्या प्रेमानंद महाराज आज के समय में क्या क्रांति का बीज नहीं बो रहे? जाति, धर्म और देश की सीमाओं के पार आज उनके विचार हर भेद को मिटा रहे हैं। उनकी प्रेरणा से असंख्य लोग और खासकर युवा पीढ़ी भक्ति का पथ अनुसरण कर रही है। बिना आडंबर और लालच के बाबा अपने ज्ञान से सभी का मार्गदर्शन करते हैं। आज उनकी किसी बात के मर्म को बिना समझे उनके खिलाफ मोर्चा खोल देना ये सीधा संकेत है कि अंधों की भीड़ में किसी आंख वाले की खैर नहीं।

दो विचारों को एक तराजू में रखना क्या उचित है  
अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज के बयानों को एक ही तराजू पर तौलना अन्यायपूर्ण है। जहां अनिरुद्धाचार्य का बयान एकतरफा और महिला विरोधी प्रतीत होता है, वहीं प्रेमानंद महाराज ने टूटते रिश्तों के लिए दोनों लिंगों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराकर एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। समाज को किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देने से पहले उसकी पूरी सच्चाई और संदर्भ को समझना चाहिए। 'महिला स्वतंत्रता' का अर्थ यह नहीं कि हम पूरी बात सुनने से ही इनकार कर दें, खासकर जब वह निष्पक्ष हो। यह समय है कि हम पूर्वाग्रहों को छोड़कर, प्रेमानंद महाराज की वाणी के गहरे मर्म को समझें और उस उतावलेपन से बचें जो हमें सही और गलत के बीच अंतर करने से रोकता है।