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प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो पर अंग्रेजी भी अनिवार्य हो

प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो पर अंग्रेजी भी अनिवार्य हो - National Education Policy
-विजय कुमार मल्होत्रा

केन्द्र सरकार नई शिक्षा नीति लाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए 21 जुलाई तक लोगों के विचार भी मांगे गए हैं। इसी संबंध में रेल मंत्रालय के राजभाषा विभाग के पूर्व निदेशक विजय कुमार मल्होत्रा ने भी अपने ‍विचार साझा किए हैं। 
 
विचार बिंदु 1.
इस विषय पर विचार करने से पूर्व हमें यह समझना होगा कि शिक्षण के संदर्भ में ‘माध्यम’ और ‘विषय’ दो अलग-अलग मुद्दे हैं। खासतौर पर प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने से बालक की मौलिक रचनात्मक प्रतिभा को विकसित करने में निश्चय ही मदद मिलती है। इसमें विवाद की कतई गुंजाइश नहीं है, लेकिन अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी की पढ़ाई बंद कर दी जाए, इस विचार से मैं कतई सहमत नहीं हूं। 
भारत जैसे विकासशील देश में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेजी आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य भी है। जिस भाषा में इंटरनेट पर 81 प्रतिशत विषयवस्तु अंग्रेजी में सुलभ हो और चिकित्सा, इंजीनियरी और कम्प्यूटर विज्ञान जैसे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें मूलत: अंग्रेजी में सुलभ हों, वहां छात्रों को इस भाषा के ज्ञान से वंचित रखना भी बेमानी है। 
 
मुझे जानकारी मिली है कि महाराष्ट्र में ऐसे कई विद्यालय हैं जिनमें शिक्षा का माध्यम मराठी है, लेकिन अंग्रेजी की पढ़ाई अनिवार्य विषय के रूप में की जाती है। वहां के छात्र-छात्राएं अंग्रेजी माध्यम से आयोजित की जाने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों से कहीं आगे निकल जाते हैं। वास्तव में पुस्तकालय भाषा (Library Language) के रूप में अंग्रेजी भाषा का उपयोग हमारे विद्यार्थियों के लिए बहुत लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। 
 
प्रस्ताव:-
भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कम से कम प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो ताकि विद्यार्थियों की मौलिक रचनात्मक प्रतिभा का विकास हो, लेकिन पुस्तकालय भाषा (Library Language) के रूप में अंग्रेजी की उपादेयता को देखते हुए अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी भाषा के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था प्राथमिक स्कूलों में की जाए ताकि हमारे छात्र-छात्राएं आरंभ से ही आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों से आगे ही रहें।
 
क.मैं सहमत हूं।
ख.मैं सहमत नहीं हूं।
ग.विशेष टिप्पणी, यदि आवश्यक समझें।
 
विचार बिंदु 2.
देश में भावात्मक एकता और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सन् 1968 में संसद के दोनों सत्रों ने आम सहमति से त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula) से संबंधित संकल्प पारित किया था। इस संकल्प में स्कूली शिक्षा में मुख्यत: हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्यत: पढ़ाने की बात को स्वीकार किया गया था, लेकिन कदाचित शिक्षा राज्य का विषय होने के कारण न तो हिन्दी प्रदेशों में और न ही हिन्दीतर प्रदेशों में इसका अनुपालन किया गया।
 
बिहार और उप्र जैसे हिन्दीभाषी राज्यों में त्रिभाषा सूत्र को पहली हिन्दी, दूसरी हिन्दी और तीसरी भी हिन्दी के रूप में ही स्वीकार गया जिसका परिणाम यह हुआ कि इन राज्यों के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ने लगे। और तो और, हिन्दी अधिकारी जैसे पदों के लिए वे योग्य नहीं पाए गए, क्योंकि अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद के लिए भी अंग्रेजी की जानकारी अपेक्षित थी। हिन्दी पत्रकारिता के लिए भी उन्हें योग्य नहीं पाया गया, क्योंकि समाचार एजेंसियों से मूल अंग्रेजी में प्राप्त समाचारों को समझने के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान अपेक्षित था। 
 
कुछ ही वर्षों में ही इनका मोहभंग हो गया और अब हाल ये है कि वे केवल अंग्रेजी ही पढ़ना-पढ़ाना चाहते हैं। दोनों ही अतिवादी दृष्टिकोण हैं। वस्तुतः शिक्षा में संतुलित दृष्टि अपेक्षित है। हिन्दीतर प्रदेशों ने कुछ समझदारी से काम लिया। उन्होंने हिन्दी को तो हटा दिया, लेकिन शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को रखने के साथ-साथ अंग्रेजी की पढ़ाई अनिवार्य विषय के रूप में जारी रखी। 
 
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में संस्कृत की पढ़ाई भी अनिवार्य विषय के रूप में रखने का सुझाव दिया गया है। त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula) में हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषा के रूप में मुख्यत: दक्षिण भारतीय भाषाओं में से किसी एक भाषा को पढ़ाने की बात की गई थी, लेकिन मेरी विनम्र राय है कि हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी और अंग्रेजी के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत की भाषाओं के रूप में संस्कृत या उर्दू पढ़ाने की बात की जा सकती है। 
 
जहां तक जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश आदि आधुनिक भाषाओं को पढ़ाने के बात है। उसे उच्च शिक्षा के समय पढ़ाया जा सकता है। 
 
प्रस्ताव:-
सन् 1968 में संसद के दोनों सत्रों ने आम सहमति से पारित त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula) में कुछ संशोधन करते हुए निम्नलिखित व्यवस्था की जाए। हिन्दीभाषी राज्यों में कम से कम प्राथमिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रखा जाए।
 
*पहली भाषा : मातृभाषा के रूप में हिन्दी
*दूसरी भाषा : आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और पुस्तकालय भाषा के रूप में अंग्रेजी
*तीसरी भाषा : संस्कृत, उर्दू या हिन्दी से इतर भारत की कोई भी क्षेत्रीय भाषा 
 
अहिन्दीभाषी राज्यों में कम से कम प्राथमिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रखा जाए।
*पहली भाषा : मातृभाषा के रूप में संबंधित राज्य की राजभाषा।
*दूसरी भाषा : आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और पुस्तकालय भाषा के रूप में अंग्रेजी।
*तीसरी भाषा : संस्कृत, उर्दू या संबंधित राज्य की राजभाषा से इतर भारत की कोई भी क्षेत्रीय भाषा।
 
क. मैं सहमत हूं।
ख. मैं सहमत नहीं हूं।
ग. विशेष टिप्पणी, यदि आवश्यक समझें।

(लेखक रेल मंत्रालय के राजभाषा विभाग के पूर्व निदेशक हैं)
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