शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. narendra modi talks to hockey team

Tokyo Olympics : एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़ेंं ....

Tokyo Olympics :  एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़ेंं .... - narendra modi talks to hockey team
रोना बंद कीजिए, देश आप पर गर्व कर रहा है....

आंसू, देश, हॉकी, छन्न से टूटा एक सपना... कई-कई रातों को देखा वह हसीन सपना....देश के राष्ट्रीय गान पर थिरकता, झूमता वह सपना... आखिर इंसान ही तो हैं... संवेदना से भरे... मन छलक गए जब देश के प्रमुख ने उन्हें सराहा, सम्भाला, सहेजा और सहलाया अपने शब्दों से.... इस वक्त मुझे याद आ रही है किसी कवि की पंक्तियां
 
बस एक सफलता पर गाना, रो पड़ना झट निष्फलता पर 
सचमुच यह तो है नीति नहीं, सच्चे खिलाड़ियों की सुंदर 
इस निखिल  सृष्टि के जीवन का स्वाभाविक क्रम है प्रलय-सृजन 
है विजय पराजय स्वाभाविक, क्या होगा बिखरा आंसू कण 
हम सब ईश्वर के बच्चे हैं ले लेकर दृग में निज सपने 
जीवन की अस्थिर बालू पर रच रहे घरौंदे हम अपने 
हम खेल रहे हैं लहरों से निर्बाध मरण सागर तट पर 
हम सृष्टि मुकूट हैं, मानव हैं, माने न पराजय, जाएं मर.... 
 
सच ही तो है... क्या हार में, क्या जीत में,  किंचित नहीं भयभीत मैं.... कर्तव्य पथ पर जो मिला, यह भी सही, वह भी सही... सिर्फ काव्य पंक्तियां नहीं हैं समूचे जीवन का वह मंत्र है जो एक बार याद कर लिया तो अंत समय तक संबल दे सकता है.... 
 
रोना बहुत स्वाभाविक है, जब हमारे आपके मन भर आए हैं तो वह तो मैदान में थीं अपने पूरे सपने, हौसलों और मनोबल के साथ....अपने आपको पूरे पूरे झोंक देने के बाद भी जब हाथ से फिसल जाए देश की उम्मीदों का पदक तो भावनाओं का आलोड़न-विलोड़न बहुत सहज है.... हमें भी सोचना, समझना और विचारना चाहिए कि हमारी तरह ये सब भी इंसान हैं, अनुभूतियों से लबरेज....
 
रोना कमजोरी नहीं है मानव होने की निशानी है... भावनाओं से सराबोर होने का संकेत है...लेकिन सही कहा है प्रधानमंत्री जी ने कि रोना बंद करना होगा, देश की गर्वानुभूति को समझना होगा.... मोदी जी ने कहा कि रोना बंद कीजिए, देश आप पर गर्व कर रहा है....
 
यह शब्द अपने देश के प्रमुख के मुख से सुनना और पूरे देश में हार के बाद भी प्रशंसा का माहौल बनना किसी भी मैडल से कम नहीं है.... 

बदलाव की बयार है कि हम मान रहे हैं कि यह हार नहीं है.... बावजूद इसके कतिपय असहिष्णु बयानों के तीर चला रहे हैं, गलतियों पर छींटाकशी की जा रही है... ज्ञान के कड़ाव उड़ेले जा रहे हैं....

जरा सोचिए कि वहां तक जाना और अपने आपको साबित करना क्या एक दिन की बात है... कितने कितने सपनों को दफन करना होता है, कितने अरमानों का गला घोंटना पड़ता है, कितनी पैंतरेबाजियों से बचना होता है तब कहीं जाकर वह दिन आता है कि आपका चयन होता है... चयन के दिन भी वह खुशी से चहक नहीं सकती थीं.. क्योंकि असली जंग तो अब शुरू होती है... अभी कई पड़ाव तय करने होते हैं... और यह होता है सबसे अंतिम पड़ाव जब आप मैच दर मैच आगे बढ़ते हैं, पायदान चढ़ते हैं.... प्रतिमान गढ़ते हैं... करिश्मा रचते हैं... और फिर वही कि हर पल हर क्षण अपना सबकुछ देकर आप जीत लेना चाहते हैं उस पदक को जिससे देश का गौरव जुड़ा है जिससे देश का अभिमान बंधा है.... 
 
अपने ध्वज को बार बार चूम लेने का यही तो दिन होता है पर कभी कभी दिन के सितारे हमारे लिए वह चमक नहीं लाते हैं जो हमारे सपनों में जगमगाती है... पर हमें उस चमक को थामे रखना है कि दुनिया बस इतनी ही नहीं है.. सफर बस यहीं तक तो नहीं है, अभी कितने ही ओलंपिक आने हैं कितनी ही बाजियां जीतनी है ...

कोई बात नहीं जो 2020 के ओलंपिक का सूर्य उजास आज धीमा रहा....तालिका में नाम नहीं दमक सका लेकिन दिलों पर तो अंकित हो ही गया है....

एक सलाम, भारत की उस शक्ति के नाम अटल जी के इन शब्दों के साथ छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता , टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता, मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते ना ही मैदान जीत लेने से मन ही जीते जाते हैं... मन जीत लिया है मैदान जीतने की अपार संभावनाएं अभी शेष हैं... आदमी को चाहिए कि वह परिस्थितियों से लड़े, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े....    


ये भी पढ़ें
भारत और ईरान में क्या पक रहा है? एक महीने में जयशंकर का दूसरा दौरा