munshi ayangar formula: कौन थे मुंशी-आयंगर जिनके फॉर्मूले की बदौलत हिंदी बनी राजभाषा, क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस
munshi ayangar formula: भारत की आजादी के बाद, देश के सामने एक बड़ा सवाल था: राष्ट्रभाषा क्या हो? इस सवाल को लेकर भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। यह सिर्फ एक भाषा का मुद्दा नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और पहचान से जुड़ा हुआ था। इस विवाद को सुलझाने में जिन दो महान शख्सियतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वे थे के. एम. मुंशी और एन. जी. आयंगर। उनके प्रयासों से ही हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिल पाया, जिसकी याद में हम हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं। आइये आज आपको बताते हैं हिंदी कैसे बनी भारत की राजभाषा और क्यों मनाया जाता है 14 सितंबर को हिंदी दिवस।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद भाषा विवाद
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद, भाषा को लेकर एक नया विवाद शुरू हुआ। उत्तरी भारत के कई सदस्यों का मानना था कि हिंदी ही राष्ट्रीय एकता की नींव बन सकती है और इसे राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए। वहीं, दक्षिणी राज्यों के सदस्यों को लगा कि हिंदी को उन पर थोपा जा रहा है। उनका तर्क था कि संविधान में अगले 15 वर्षों के लिए अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी जाए, ताकि वे हिंदी को सीखने और अपनाने के लिए तैयार हो सकें। इसके अलावा, कुछ मुस्लिम सदस्यों ने हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग की, जिसे उर्दू और देवनागरी दोनों लिपियों में लिखा जा सके।
मुंशी-आयंगर फॉर्मूला: एक ऐतिहासिक समझौता
इस भाषाई विवाद को खत्म करने के लिए 2 सितंबर, 1949 को संविधान सभा के सदस्य के. एम. मुंशी और एन. जी. आयंगर ने एक समझौता फॉर्मूला पेश किया। इसे ही मुंशी-आयंगर फॉर्मूला के नाम से जाना जाता है। 12 सितंबर, 1949 को जब एन. जी. आयंगर ने यह फॉर्मूला पेश किया, तो उन्होंने इसे "विभिन्न मतों के बीच एक कठिन समझौता" बताया।
इस फॉर्मूले के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:
• हिंदी को भारत संघ की राजभाषा और देवनागरी को उसकी आधिकारिक लिपि माना गया।
• अंकों के लिए अंतरराष्ट्रीय पद्धति को स्वीकार करने का सुझाव दिया गया, न कि पारंपरिक देवनागरी अंकों को।
• यह तय हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों, विधेयकों, अधिनियमों और अध्यादेशों की भाषा अंग्रेजी ही रहेगी।
• सरकार का कर्तव्य होगा कि वह हिंदी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए काम करे, ताकि वह भारत की मिली-जुली संस्कृति को अभिव्यक्त कर सके।
14 सितंबर को क्यों मनाते हैं हिंदी दिवस?
मुंशी-आयंगर फॉर्मूले को लेकर बहस 14 सितंबर, 1949 को शाम 6 बजे समाप्त हुई। इसी दिन संविधान सभा में हिंदी को देश की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इस ऐतिहासिक निर्णय के सम्मान में, हिंदी के महत्व को बढ़ाने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए 14 सितंबर, 1953 को पहली बार हिंदी दिवस मनाया गया। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हिंदी न केवल एक भाषा है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय पहचान और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।