अंतरिक्ष की कोई भी उड़ान होने दो, उस उड़ान का हर क्षण रोमांच से भरपूर होता है। इन उड़ानों में कहानी नहीं होती, उनका तो हर पल उत्कर्ष होता है, क्लाइमेक्स होता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की टीम, चंद्रयान-2 को उसकी यात्रा के पहले चरण में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सफल रही।
पिछले आलेख में हमने चर्चा की थी प्रक्षेपण की जटिलताओं की। प्रक्षेपण तो अब सफलतापूर्वक संपन्न हो चुका और चंद्रयान के साथ ही वैज्ञानिक महत्वाकांक्षाओं की यात्रा भी आरम्भ हो चुकी है। मार्ग में हर पड़ाव पर एक नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इन चुनौतियों का सामना करते हुए यान कैसे चन्द्रमा पर पहुंचेगा उसकी चर्चा करते हैं इस आलेख में। इस यान के तीन मुख्य भाग हैं।
प्रज्ञान रोवर एक स्वयं संचालित 6-पहिया वाहन है। प्रज्ञान में चांद की सतह पर प्रयोग करने वाले सारे उपकरण लगे हुए हैं, जहां वह पानी, जीवन और खनिज की तलाश करेगा। सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए वह चन्द्रमा की सतह पर घूमेगा। प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा के आकाश से चन्द्रमा की सतह पर उतारने के लिए जिस वाहन का उपयोग किया जाएगा उसका नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है विक्रम लैंडर।
लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर बहुत आहिस्ता से लैंडिंग (उतरने) के लिए भारत में ही डिज़ाइन किया गया है, जो पहली बार हुआ है। यह एक चंद्र दिन के कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो लगभग 14 पृथ्वी दिनों के बराबर होता है। प्रज्ञान रोवर, लैंडर की कोख से बाहर निकलने के पश्चात केवल विक्रम से ही संवाद कर सकता है और उसे एकत्रित की गई सूचनाएं दे सकता है।
अब ये जो लैंडर है वह एक ऑर्बिटर के साथ जुड़ा हुआ है। ऑर्बिटर यानी परिक्रमा करने वाला यान। वह पहले चन्द्रमा की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और निश्चित करेगा कि विक्रम को कहां उतारना है। रोचक बात यह है कि ऑर्बिटर में वैज्ञानिकों की तरह निर्णय लेने की क्षमता भी है। जगह निश्चित होने के पश्चात विक्रम लैंडर को अपने से पृथक करेगा और उसकी सहायता से प्रज्ञान को चन्द्रमा की सतह पर उतारा जाएगा।
यदि झटके के साथ उतरा और प्रज्ञान रोवर में कुछ टूट फूट हो गई तो सारे प्रयास विफल। वैज्ञानिक इसी घड़ी को लेकर चिंतित हैं कि यह लैंडिंग सफल होना चाहिए। लैंडर को चन्द्रमा पर उतरने में लगभग 15 मिनट लगेंगे और वैज्ञानिकों के लिए तकनीकी रूप से सबसे कठिन चुनौती के क्षण ये ही होंगे क्योंकि भारत ने पहले कभी पृथ्वी के बाहर ऐसी लैंडिंग नहीं की है।
लैंडिंग के बाद प्रज्ञान रोवर के निकलने में चार घंटे का समय लगेगा। उसके पश्चात तो 15 मिनट के भीतर ही इसरो को वह विक्रम और ऑर्बिटर के माध्यम से सतह की तस्वीरें भेजने लग जाएगा। विक्रम के पास क्षमता है ऑर्बिटर और प्रज्ञान दोनों के साथ संवाद करने की।
ऑर्बिटर को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाने का काम किया भारत में ही निर्मित एक शक्तिशाली राकेट GSLV Mk-III ने जिसे लांचर कहा जाता है। किसी भी यान या वस्तु को पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर फेंकने के लिए रॉकेट लॉन्चर चाहिए जो यान को पृथ्वी की ऐसी कक्षा में छोड़ दे जहां गुरुत्वाकर्षण नगण्य हो। अन्यथा ऊपर उछाली किसी भी वस्तु को तो पृथ्वी पर लौटना ही होता है।
आपने प्रक्षेपण को टेलीविज़न पर देखा ही होगा। मुख्य राकेट के दाएं व बाएं जो छोटे रॉकेट दिखते हैं वे मात्र ईंधन के लिए होते हैं और खाली होते ही मुख्य भाग से अलग होकर आकाश में विलीन हो जाते हैं। मुख्य रॉकेट में भी लगभग मध्य तक ईंधन भरा होता है जो यान को पृथ्वी की कक्षा तक ले जाता है और उसके पश्चात उसका काम भी समाप्त हो जाता है क्योंकि रॉकेट में इतना ईंधन नहीं होता कि वह यान को चन्द्रमा तक छोड़ दे। इसके बाद की यात्रा, यान को बिना ईंधन के करनी होती है।
इसलिए यह पहले पृथ्वी की कई अंडाकार परिक्रमा करते हुए अपनी परिक्रमा की परिधि को बढ़ाता जाएगा जो पराकाष्ठा पर 40000 किमी की होगी और इस तरह वह चन्द्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्र में पहुंच जाएगा। चन्द्रमा की गुरुत्वीय सीमा में पहुंचते ही ऑर्बिटर पृथ्वी को छोड़, चन्द्रमा की परिक्रमा आरंभ कर देगा। उसका जीवन एक वर्ष का रहेगा।
इस तरह हमने देखा कि लांचर, ऑर्बिटर, विक्रम और प्रज्ञान को पृथ्वी की सीमा पर छोड़ेगा। ऑर्बिटर, विक्रम और प्रज्ञान को चन्द्रमा की कक्षा में ले जाएगा। विक्रम, प्रज्ञान को लेकर चन्द्रमा की सतह पर उतरेगा और फिर प्रज्ञान, चन्द्रमा की सतह से जानकारियां एकत्रित कर विक्रम को देगा।
विक्रम इन सूचनाओं को ऑर्बिटर को देगा और ऑर्बिटर पृथ्वी पर बैठे इसरो के वैज्ञानिकों को। चंद्रयान-2 के साथ ही भारत के 130 करोड़ लोगों की आकांक्षाएं भी अंतरिक्ष में चली गईं। हमारी निगाहें आसमान पर टिकी हैं। सिर गर्व से उठा हुआ है। कामना यही है कि विक्रम, प्रज्ञान को सफलतापूर्वक चन्द्रमा की सतह पर आहिस्ता से उतार दे ताकि हमें चन्द्रमा की सतह के फोटो मिलना प्रारंभ हो जाएं।
पहले भी हमने चांद की सतह के अनेक फोटो देखे हैं किन्तु अपने कैमरे से खींचे हुए फोटो देखने का मज़ा ही कुछ अलग है। इसरो के अभी तक सभी प्रयासों की सफलता का इतिहास हमें आश्वस्त करता है कि इस प्रयास में भी उन्हें सफलता मिलेगी। हम सब की शुभकामनाएं।