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Last Updated : बुधवार, 22 अप्रैल 2020 (08:22 IST)

World Earth Day 2020 : लॉकडाउन में धरती को हुए 4 बड़े फायदे

World Earth Day 2020  : लॉकडाउन में धरती को हुए 4 बड़े फायदे - Environmental improvement in Lockdown
धरती के लिए वरदान साबित हो रहा है लॉकडाउन। मानव की गतिविधियों के बंद होने से इस दौरान धरती खुद में सुधार कर रही है। पर्यावरण प्रेमी यह मांग कर सकते हैं कि वर्ष में कम से कम दो सप्ताह का लॉकडाउन होना ही चाहिए। आओ जानते हैं कि इस लॉकडाउन से धरती को हुआ कितना फायदा।

 
1.कंपन : लॉकडाउन के चलते धरती का कंपन 30 से 50% तक कम हुआ। यातायत, मशीन, ध्वनि प्रदूषण और तमाम तरह की मानवीय गतिविधियों के चलते धरती कंपकंपाती रहती थी। अब भूकंप विज्ञानी बेहद छोटे स्तर के भूकंपों को भी भांप ले रहे हैं। अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। बेल्जियम स्थित रॉयल ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक, भूकंप वैज्ञानिक (सीस्मोलॉजिस्ट) धरती के कंपनों का पता लगाने के लिए जमीन के अंदर बने केंद्रों का उपयोग करते हैं। लेकिन, वर्तमान में धरती में छाई शांति के कारण इसे बाहर से भी उतनी ही अच्छी तरह सुना जा रहा है जितनी अच्छी तरह ये नीचे सुनाई देती हैं।

 
2. ओजोन परत में सुधार : ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान अंटार्कटिका के ऊपर हो रहा था वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस परत में अब उल्लेखनीय सुधार आ रहा है। नेचर में प्रकाशित ताजा शोध के अनुसार जो केमिकल ओजोन परत के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, उनके उत्सर्जन में कमी होने के कारण यह सुधार हो रहा है। हाल में कम हुए ओडीएस के उत्सर्जन से दक्षिण ध्रुव में अंटार्कटिका के ऊपर जो तेज हवाओं का भंवर बनता है उसका खिसकना भी बंद होकर विपरीत दिशा में जाने लगा है। इन पदार्थों की कमी से न केवल ओजन परत सुधर रही है, बल्कि अंटार्कटिकाके ऊपर का भंवर भी सही जगह वापस आने लगा है. उम्मीद की जा रही है कि इससे बाकी सकारात्मक सुधारों के साथ वर्षा में होने वाले स्वरूप में सकारातमक बदलाव आएगा। इस शोध से मोलबर्न यूनिवर्सिटी के ऑर्गेनिक केमिस्ट लैन रे (Ian Rae) बहुत उत्साहित हैं। उनका मानना है कि इससे ऑस्ट्रेलिया के पास कोरल रीफ क्षेत्र में जो वर्षा होना कम हो गई थी उसमें सुधार हो सकता है. हालिया बदलाव से वर्षा इस क्षेत्र में पहले की तरह ज्यादा होने लगेगी जो पिछले कुछ दशकों से कम होने लगी थी।

 
उल्लेखनीय है कि पृथ्वी को वायुमंडल की पहली परत क्षोभमंडल (Troposphere) के ठीक ऊपर ओजोन की परत है जो अंतरिक्ष से आने वाले अल्ट्रावॉयलेट (पराबैगनी) किरणों को धरती की सतह तक आने नहीं देती हैं. यह परत भूमध्य रेखा के ऊपर 15 किलोमीटर तो ध्रुवों के ऊपर करीब 8 किलोमीटर मोटी है. पराबैगनी किरणों से हमारी आंखों और त्वचा को खास तौर पर नुकसान होता है. इन किरणों से लोगों में कैसर जैसी बीमारी तक हो  सकती है।

 
3. प्रदूषण का स्तर : इंडस्ट्री बंद होने से प्रदूषण कम हो रहा है। यातायत और लोगों की आवाजाही भी बंद है। इसके चलते हवा एकदम साफ हो गई है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है जालंधर से 200 किलोमीटर दूर हिमाचल की पहाड़ियों का दिखाई देना। स्वच्छ हवा-नीला आसमान दिखाई दे रहा है। प्रदूषण की वजह से सिर्फ भारत में ही हर साल 12 लाख लोग मरते हैं।
 
 
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के प्रदूषण को लेकर रोजाना विश्लेषण में सामने आया कि लॉकडाउन की वजह से अब तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलुरु की हवा में प्रदूषण का स्तर कुछ कम हुआ है। मुंबई में शहर दूसरे शहरों से पहले लॉकडाउन हुआ था। इसकी वजह से रोज का औसत पीएम 2.5 स्तर जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को 61 प्रतिशत कम रहा। इसी तरह इस दिन दिल्ली में यह 26 प्रतिशत, कोलकाता में 60 प्रतिशत और बैंगलुरु में 12 प्रतिशत कम रहा। मुंबई में लॉकडाउन मार्च 17 से 19 और मार्च 22 से 23 के बीच में रहा इसलिए इसकी तुलना काफी पहले से की गई।
 
 
अगर नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को देखें तो यह दिल्ली में 42 प्रतिशत, मुंबई में 68 प्रतिशत, कोलकाता में 49 प्रतिशत और बैंगलुरु में 37 प्रतिशत तक कम रहा। ये बदलाव गाड़ियों के सड़कों पर न होने, फैक्ट्रियों में बंदी रहने और निर्माण कार्यों के रुकने की वजह से हुआ है।
 
 
4. साफ हो गई नदियां : लॉकडाउन के कारण इंडस्ट्री बंद है, जिसके कारण नदियां प्रदूषित हो रही थी। तटों पर मानव गतिविधियां भी बंद होने के कारण गंगा, यमुना नदी का जल स्वच्‍छ हो गया है। अब देश की प्रत्येक नदियां निर्मल होकर अविरल बह रही है। गंगा और यमुना के जल में कई जगहों पर 40 से 50 फीसद का सुधार दिख रहा है। इसमें घुलित ऑक्सीजन 6 से 7 प्रति लीटर मिलीग्राम से बढ़कर 9-10 तक पहुंच गया है। जो काम सरकारें दशकों में न कर पाईं वह 21 दिन के लॉकडाउन ने कर दिया।
 
सोर्स : अनिरुद्ध/एजेंसियां