समझदार हो गई देश की जनता!
ऐसा लगता है की देश की जनता अब काफी समझदार हो गई है। खासतौर पर राजनीति के मामलों में। मेरी यह राय पिछले लोकसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा के ताजा चुनावों के परिणाम देखकर बनी है। जनता को यह समझ में आ गया है कि किसी राजनीतिक पार्टी या नेता को सही ढंग से पहचानना है तो स्पष्ट बहुमत देकर ही पहचाना जा सकता है। अन्यथा ये नेता लोग उसे इसी तरह से मूर्ख बनाते रहेंगे। अपनी विफलताओं को गठबंधन की मजबूरी बताकर तोहमत जनता पर ही लगाते रहेंगे। इसीलिए पिछले आम चुनावों में जनता ने भाजपा को स्पष्ट बहुमत देकर संसद में भेजा और अब दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को थम्पिंग मेजॉर्टी के साथ सत्ता सौंपी है।
हम सभी ने देखा है की पिछले कई सालों में गठबंधन राजनीति के चलते देश का विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है, अन्यथा जिस स्थान पर हम आज खड़े हैं उस पर कई साल पहले पहुँच गए होते। आर्थिक सुधारों का सिलसिला भारत में 1991 में प्रारंभ हो गया था, लेकिन दुर्भाग्य से तभी से गठबंधन राजनीति का दौर भी शुरू हुआ और देश में नेताओं की हॉर्स ट्रेडिंग का दौर भी। करोड़ों रुपए खर्च कर सरकार बचाई जाने लगीं। स्वाभाविक है कि जब नेताओं की खरीद-फरोख्त पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाएंगे तो उनकी भरपाई के लिए भ्रष्ट तरीके भी अपनाए जाएंगे।
लेकिन, इस भ्रष्टाचार की जवाबदेही किसी की नहीं रह जाएगी। जनता अगर सवाल पूछती है तो नेता जाँच और समितियों में उसे उलझा डेट। साथ ही कहा जाता कि हमें बहुमत दिया होता तो ये नौबत ही ना आती। इसीलिए जनता ने इस बार केंद्र में स्पष्ट बहुमत देकर नरेंद्र मोदी की सरकार बनवाई साथ ही महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों में उन्हें सत्ता सौंपी कि अब कुछ कर के दिखाइए और इसे झूठ साबित कीजिए कि नेता की कथनी और करनी में अंतर होता है।
देश में बढ़े भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी जनता के सामने नरेंद्र मोदी ने बढ़-चढ़कर लुभावने वादे किए और भरोसा दिलाया कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाकर विदेशों में जमा कालाधन वापस लाएंगे और देश में सुशासन के माध्यम से खुशहाली लाएंगे। लेकिन नौ महीने बीतने के बाद जनता आज फिर अपने आप को दोराहे पर खड़ा पा रही है। ना तो उसे महंगाई से मुक्ति मिली और ना ही भ्रष्टाचार ख़त्म होता नजर आ रहा है। उलटे पेट्रोल, डीज़ल के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भाव घटे हैं, उनका भी पूरा लाभ मोदी सरकार ने जनता तक नहीं पहुँचने दिया। इस पर टैक्स बढ़ाकर सरकार का खजाना भरने पर ज्यादा ध्यान दिया गया। पेट्रोल, डीज़ल के भाव बढ़ने पर महंगाई अपने आप बढ़ जाती है, लेकिन भाव घटने पर वह अपने आप घटना तो दूर और बढ़ गई।
ऐसे में अब जनता क्या करे? विकल्प के तौर पर राजनीति में नवप्रवेशी आम आदमी पार्टी पर जनता कि नजर टिकी क्योंकि इस पार्टी का उदय ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के आंदोलन के साथ हुआ है। आप के नेता केजरीवाल से जनता ने फिर आस लगाई और उन्हें दिल्ली की सत्ता सौंपी है। देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल जनता की आशाओं पर खरे उतरते हैं कि फिर जनता किसी नए चेहरे में अपने विकास की संभावना का इंतजार करने को मजबूर होती है।