क़लाम साहब की बाइट एक रिपोर्टर की पूरी कहानी
रूना आशीष
ऐसा बहुत कम होता है जब आप देश के पहले नागरिक से मिल सको और उनसे बात कर सको। जहां तक मेरी समझ है क़ानून और राष्ट्रपति के प्रोटोकॉल की तो वो ये है कि देश का राष्ट्रपति कभी भी रिपोर्टर से सीधे बात नहीं करता है। और अगर उसे करना भी हो तो बाक़ायदा प्रेस कॉंन्फ़्रेंस ले ले और सभी को संबोधित कर दे या प्रेस विज्ञप्ति दे दे। लेकिन जो व्यक्ति साइंस के अपने एक्सपेरिमेंट्स में रमा हो या देश के लिए परमाणु शक्ति की बात सोचता हो.. जो व्यक्ति मिसाइल मैन की उपाधि से अलंक़ृत हो उसे उस प्रोटोकॉल की चिंता शायद ना भी होती है..अगर ये कहीं नहीं लिखा कि राष्ट्रपति मीडिया से सीधे बात नहीं कर सकता तो ये भी तो किसी क़ानून की किताब में नहीं लिखा ना कि नहीं कर सकता...ये उस राष्ट्रपति की निजि राय या इच्छा है।
बस में यहीं लकी हो गई...मैं दावा तो नहीं कर सकती लेकिन शायद मैं देश की पहली ऐसी रिपोर्टर हूं जिसने किसी राष्ट्रपति के आगे अपनी बूम लगाने हिमाकत कर डाली... अब कहीं ये भी तो नहीं लिखा ना कि किन-किन शख़्सों से रिपोर्टर बाईट लेने की कोशिश ना करे.. ये ज़रूर लिखा है रिपोर्टर अपनी कोशिश करता रहे। क्या पता क़ामयाबी हाथ लग जाए। तो बस मैंने अपने देश के सर्वोच्च व्यक्ति नागरिक को सामने अपना रिपोर्टर का फ़र्ज़ औऱ जुर्रत दोनों कर डाली औऱ सफलता हाथ भी लग गई।
सबसे पहले मैं कलाम साहब से मिली थी 2003 में कोस्ट गार्ड की कलर सेरेमनी, दमन में। एक राष्ट्रपति को जिस तरह से लाते हैं उनका सम्मान करते हैं या गौरव पूर्ण तरीके के साथ उन्हें इज़्ज़त देते हैं वो सब जारी था। दो दिन की अपनी इस यात्रा में कलाम साहब को दूसरे दिन कोस्ट गार्ड के ही स्कूल में विज़िट करनी थी। हम सारे मीडिया कर्मी भी वहीं पहुंच गए। इस इवेंट को कवर किया और कलाम साहब के प्रस्थान का इंतज़ार करने लगे... ताकि अपन अपनी कंपनी के ऑफ़िस में जा के स्टोरी को फ़ाइल किया जा सके।
तभी एक मौक़ा देखकर मैंने अपने कैमेरामैन को इशारा किया और कर दिया अपना बूम सामने... आज भी याद नहीं कि उस समय की इस नौसखिय़ा रिपोर्टर को कलाम साहब ने क्या जवाब दिया..लेकिन इतना याद है कि एक बेहद गंभीर लोकिन दिल को सुक़ून देने वाल आवाज़ ने मुझे कोस्ट गार्ड के बार में कुछ कहा..उन सात सेकंड में मेरी धड़कन रुक गई थी.. और मैं सिर्फ़ इस शख़्सियत को निहार रही थी।
जिस व्यक्ति को मैंने अपने देश को मिसाईल का तोहफ़ा देते देखा आज वो शख्सियत मेरे सामने है..मैं जितना उस समय शांत औऱ निशब्द थी उतनी ही हरक़त में थे कलाम साहब के सिक्यॉरिटी गार्ड..उनके लिए भी किसी राष्ट्रपति का यूं बाइट देना कुछ नवल सा अनुभव था। और जैसे ही वो आगे बढ़े एक नौसीखिया पत्रकार की तरह मैंने अपने कैमेरामैन को कहा देख बाइट मिल गई अब स्टोरी पूरी हो जाएगी.. अब ये बात अलग है कि टीवी रिपोर्टिंग में आपको आज़ादी हो मिल जाती है कि आपने रिकॉर्डिंग को बार-बार सुन देख सकें। मैं उस समय की बात कर रही हूं, जब मोबाइल में रिकॉर्डर तो क्या फ़ोटो ख़ीचने तक की सुविधा नहीं होती थी।
दूसरी बार कलाम साहब से मिलने का मौक़ा मिला... इस बार अपने शहर मुंबई में इस बार फिर वो भी एक स्कूल के फंक्शन में। वही कलाम साहब - देश के प्रथम नागरिक और उनका बच्चों के लिए प्यार... और मैं भी वही... इस बार फ़र्क़ ये था कि मैं दूसरे चैनल -'आजतक' के लिए काम करने लगी थी। इस बार ज़िद ये कि जब एक बार बाइट लिया है तो दूसरी बार तो बनता है ना... बस मौक़ा देखा और पहुंच गई उनसे बाईट लेने। इस बार मैं थोड़ी और सजग हो गई थी.. मुझे याद है वो कह रहे थे। सभी स्टूडेंट्स को साथ में आना चाहिए और देश के लिए महान काम करने चाहिए हमें उनसे आशा है।
इतना कहते से वो बस अपनी चाल चल दिए और मैं फिर इस बात पर इठलाती रह गई कि अगली बार इन्हें जानने समझने का मौक़ा मिलेगा तो और सवाल पूछ सकूंगी...लेकिन वो मौक़ा कभी नहीं आया...
एक रिपोर्टर को कई मौक़े मिलते हैं कभी किसी बड़े फ़िल्मस्टार से मिलने का तो कभी जाने माने क्रिकेट के खिलाड़ी से मिलने का। हमें बड़ी शख्सियतें भी नई बात सिखा जाते हैं... कभी अमिताभ बच्चन बिना कहे सिखा जाते हैं कि बात इतनी नपी तुली हो कि कोई उंगली ना उठा सके.. आप पर इस देश की सोच का ज़िम्मा है तो कभी जगजीत सिंह साहब एक बाप के अपने जवां बेटे को खो देने का ग़म बता जाते हैं...
लेकिन देश के ये राष्ट्रपति आपको चुप कर देते हैं... और साथ ही अपने एक एक शब्द के साथ ये बता जाते हैं कि पद हो या कद हमेशा देश को अर्पण है। धन्य है वो देश जिसे ऐसे सपूतों ने प्यार किया है और धन्य है वो सपूत जिसने पद की गरिमा को बढ़ाया है... देश के इस राष्ट्रपति के पद के गौरव को ही सिर्फ़ नहीं बढ़ाया बल्कि ये भी बताया कि देश का प्रथम नागरिक बस आपसे एक हाथ की दूरी पर है आप हाथ तो बढ़ाइये...