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Last Updated : मंगलवार, 27 अप्रैल 2021 (12:50 IST)

बल्लेबाज सचिन तो हिट ही थे, इस साल हमने कप्तान सचिन को सफल होते हुए देखा

बल्लेबाज सचिन तो हिट ही थे, इस साल हमने कप्तान सचिन को सफल होते हुए देखा - Not batsman, This year we saw sachin tendulkat the skipper
मास्टर ब्लास्टर के नाम से मशहूर सचिन तेंदुलकर ने शायद ही बल्लेबाजी का कोई रिकॉर्ड अपने नाम ना किया हो। 90 के दशक में जब विश्वक्रिकेट में बेहतरीन गेंदबाज और घास से लदी पिचों पर खेल होता था तो दो ही बल्लेबाज इस विषम परिस्थितियों में बड़ी पारी खेलने के लिए जाने जाते थे। एक थे वेस्टइंडीज के बल्लेबाज ब्रायन लारा दूसरे थे भारत के दाएं हाथ के बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर।
 
नवंबर 2013 में संन्यास ले चुके 46 साल के तेंदुलकर ने टेस्ट में 15,921 और वनडे में 18,426 रन बनाए हैं जो अब भी रिकॉर्ड बने हुए हैं।
 
सचिन ने महज 16 वर्ष की उम्र में कराची में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट सीरीज से अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने पहले मैच में ही वकार यूनुस तथा वसीम अकरम जैसे दिग्गज तेज गेंदबाजों का बखूबी सामना कर अपने सुनहरे भविष्य के संकेत दे दिए थे।
 
उन्होंने बाद में बेमिसाल बल्लेबाजी करते हुए वनडे करियर में कुल 49 शतक जड़े जो आज भी एक रिकॉर्ड हैं। उन्होंने टेस्ट मैचों में भी 51 शतक जड़े। वे एकदिवसीय मैचों में 200 रन की पारी खेलने वाले पहले बल्लेबाज बने।
 
बल्लेबाजी में तो उनका कोई तोड़ नहीं था यह भारत ही नहीं विश्व में उनके हर फैन को पता था। लेकिन जब उनसे कप्तानी करवाई गई तो नतीजा सिफर रहा। हालात यह रहे कि वह भारत के सबसे खराब कप्तानों की लिस्ट में शुमार रहे। 
साल 1996 में विश्वकप हार के बाद सचिन तेंदुलकर को कप्तानी सौंपी गई। लेकिन बोर्ड का यह नतीजा बिल्कुल फ्लॉप रहा और मोहम्मद अजहरुद्दीन को फिर कप्तानी सौंप दी गई।
 
इसके बाद 1999 के विश्वकप के बाद जब भारतीय टीम हारकर आयी थी तो बोर्ड ने कप्तानी में बदलाव किया था। सचिन तेंदुलकर को कप्तानी सौंपी गई थी लेकिन कप्तानी उनके व्यवहार के विरुद्ध काम साबित हुआ। 
 
ना ही सचिन एक कप्तान की तरह आक्रमक थे ना ही मैदान पर बदलती परिस्थितियों के चलते अपना निर्णय बदल पाते थे। जितने समय टीम उनकी कप्तानी में रही टीम एक दम प्रीडिक्टिबल रही। एक बार उन पर मुंबई कि खिलाड़ी को तरहजीह देने का भी आरोप लगा। 
 
दूसरी बार अजहर के बाद सचिन कप्तान इसलिए बनाए गए थे क्योंकि तब कोई भी खिलाड़ी दावे के साथ अपनी जगह को पक्की नहीं मान सकता था। खिलाड़ियों के फॉर्म में लय नहीं थी। सचिन की कप्तानी में भारत ने 73 मैच खेले और 43 मैच हारे और सिर्फ 23 में ही जीत मिली।उनकी कप्तानी में भारत एक भी बार एशिया कप जैसा मल्टी नेशनल टूर्नामेंट नहीं जीत सका। 
 
टेस्ट मैचों में कप्तानी का अनुभव तो सचिन के लिए और भी खराब रहा। उन्होंने टीम इंडिया के लिए 25 टेस्ट मैचों में कप्तानी की और सिर्फ 4 मैचों में ही टीम इंडिया को जीत नसीब हो पायी। 
 
लेकिन सचिन ने अपने करियर की आखिरी कमी को साल 2021 में पूरा कर लिया। कमियां तो हर खिलाड़ी में होती है लेकिन सचिन ने उम्र के इस पड़ाव में भी कप्तानी की कमी को दूसरों से सीख कर पूरा किया। इसलिए ही सचिन को महान कहा जाता है क्योंकि वह दूसरों से सीखने में हिचकिचाते नहीं है। 
अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी के दम पर सचिन पिछले महीने समाप्त हुई रोड़ सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज में इंडिया लीजेंड्स को फाइनल तक ले गए। सचिन ने 7 मैचों में 38 की औसत से 233 रन बनाए थे जिसमें 2 अर्धशतक शामिल थे। सचिन ने यह दोनों पारियां दक्षिण अफ्रीका और  सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज के विरुद्ध खेली थी।
 
लेकिन फाइनल में उनका कप्तानी रूप दिखा। जब वह जल्द पवैलियन रवाना हो गए तो उन्होंने युसूफ पठान को क्रीज पर  भेजा ताकि भारत बड़ा लक्ष्य बना सके।युसूफ ने भी कप्तान को निराश नहीं किया और 29 गेंदो में अर्धशतक जड़ दिया।
 
वहीं जब इंडिया लीजेंड्स गेंदबाजी करने उतरी तो कप्तान के तौर पर वह पुराने सचिन नहीं बल्कि मॉर्डन डे सचिन दिखे जो हर ओवर में फील्ड पर बदलाव कर रहे थे। किस गेंदबाज को किस बल्लेबाज के सामने खिलाना है यह निर्णय चतुरता से ले रहे थे।
 
गेंदबाजी में भी युसुफ को सचिन तब लाए जब लंका पर रनगति बढ़ाने का दबाव था। इससे दिलशान और जयसूर्या के महत्वपूर्ण विकेट भारत को मिल पाए। कुल मिलाकर सचिन फाइनल की कप्तानी में 10 में से 9 नंबर ले बैठे।
 
श्रीलंका लीजेंड्स को 14 रनों से हराकर सचिन ने अपने करियर की एकमात्र कमी, कप्तानी से भी पार पा लिया। अब सचिन के लिए उपलब्धि हासिल करने के लिए क्रिकेट में तो कम से कम शायद ही कुछ बचा हो। (वेबदुनिया डेस्क)