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Last Modified: शनिवार, 31 जुलाई 2021 (12:56 IST)

Corona महामारी के बाद भीड़भाड़ से बचने वाले कदमों पर देना होगा जोर

Corona महामारी के बाद भीड़भाड़ से बचने वाले कदमों पर देना होगा जोर - After the Corona epidemic, emphasis will have to be given on steps to avoid overcrowding
डबलिन। कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी ने 2020 में जब दस्तक दी थी, तब दुनियाभर में शहरी इलाकों में निजी कारों के इस्तेमाल में तेजी से कमी आई थी। सैटेलाइट नेविगेशन कंपनी 'टॉमटॉम' ने बताया कि दुनियाभर में 387 शहरों में भीड़भाड़ कम हुई।

इसी तरह सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल में भी कमी आई क्योंकि दुनियाभर में सरकारों ने लॉकडाउन संबंधी पाबंदियां लगा दी थीं। संचार क्षेत्र में दशकों की प्रौद्योगिकी प्रगति के बूते लाखों लोगों ने दफ्तर से दूर रहकर काम शुरू किया और इसी कारण समाज कामकाज को सुचारू रूप से करने में सक्षम हुए।

हालांकि संक्रमण कम होता देख जब कुछ देशों ने आवाजाही से पाबंदियां हटाईं और महामारी से पहले की तरह हालात सामान्य होते दिखे तो कई शहरों में भीड़भाड़ का स्तर बढ़ गया। ऐसा लगता है कि यदि राष्ट्रीय सरकारें समझदारी भरा हस्तक्षेप नहीं करेंगी तो अधिक कार्बन उत्सर्जन का वह दौर फिर से शुरू हो जाएगा, जो टिकाऊ नहीं होगा।

शोध में पता चला है कि जहां पर लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं वहां पर गैर-मोटरीकृत उपाय जैसे कि पैदल चलना या साइकल चलाना, इलेक्ट्रिक बाइक एवं स्कूटर जैसे साधनों पर कहीं अधिक जोर देने की जरूरत है।

महामारी से पहले भी वैंकुवर और कोपेनहेगन जैसे शहर और दुनिया में कई सरकारें लोगों को परिवहन के कम कार्बन उत्सर्जन वाले उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही थीं। इन नीतियों का उद्देश्य भीड़भाड़ को कम करना, वायु गुणवत्ता में सुधार लाना और कार्बन उत्‍सर्जन को कम करना था और अब भी यही उद्देश्य है।

ऐसी आशंका है कि महामारी के दीर्घकालिक प्रभावों में सार्वजनिक परिवहन के प्रति रुझान कम होना और निजी कारों का इस्तेमाल बढ़ने के रूप में होगा। न्यूयॉर्क परिवहन प्रणाली की ओर से किए गए शोध में पता चला कि महामारी के पहले के दौर के कुल यात्रियों में से अब महज 73 फीसदी ही सार्वजनिक परिवहन की ओर लौटेंगे। इसकी वजह है वायरस की चपेट में आने का डर। डबलिन में काम पर लौटे लोगों के बीच हुए एक शोध में पता चला कि संक्रमण के डर से लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते।
विभिन्न शोधों में पता चला कि लोग सार्वजनिक परिवहन के स्थान पर कार का इस्तेमाल करने के बजाए आवाजाही के लिए साइकल जैसे माध्यमों का प्रयोग करने के इच्छुक हैं। कई शहरों में साइकल चलाने वालों की संख्या में वृद्धि देखी गई है और साइकल साझा करने की योजनाएं भी लोकप्रिय हो रही हैं।
परिवहन शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया कि वैश्विक महामारी ने दुनिया को देखने के हमारे नजरिए को किसी तरह बदल दिया है खासकर हमारा परिवहन नेटवर्क किस तरह बदल सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक शोधों में पता चला कि घर से काम करने से सुबह-सुबह दफ्तर भागने का परंपरागत चलन घट सकता है और परिणामस्वरूप भीड़भाड़ तथा उत्सर्जन में कमी आ सकती है।
दुनिया के कई शहरों में निजी कारों का इस्तेमाल बढ़ने की संभावना को देखते हुए महामारी के शुरुआती दौर में ही साइकल चालन के अनुरूप ढांचा तैयार कर लिया। यह यूरोप में बहुत सफल रहा है और यहां के शहरों में साइकल चलाने वालों की संख्या 11 से 48 फीसदी तक बढ़ी है।

इसके साथ ही ई-स्कूटरों का बढ़ता इस्तेमाल आवाजाही के लिए कार के बनिस्पत एक टिकाऊ विकल्प दे रहा है। शोध बताते हैं कि लोग कम कार्बन उत्सर्जन वाले परिवहन साधन पसंद करते हैं और इस चलन को कायम रखने की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक वाहन परिवहन द्वारा कार्बन उत्‍सर्जन की चिंता को तो दूर करते हैं, लेकिन उनके कारण भीड़भाड़ वाली पुरानी परिस्थिति में लौटने और कारों का इस्तेमाल बढ़ने का जोखिम बना हुआ है।(द कन्वरसेशन)
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