-सुनील जैन
नई दिल्ली। वर्ष 1950 में ही बॉलीवुड को अपना ओरिजनल 'माचो मैन' मिल गया था और वे थे शेख मुख्तार। छह फीट दो इंच ऊंचे, बेहद रौबदार शख्सियत, चेहरे पर चेचक के हल्के से दाग, जब वे परदे पर आते थे तो सामने सभी कलाकर फीके पड़ जाते थे और उनके प्रशंसकों ने उन्हें दे दिया 'माचो मैन' का खिताब, लेकिन वर्ष 1950 से लेकर 1970 के दशक में बेजोड़ कलाकार का दर्जा पा चुके इस 'माचो मैन' का अंत समय बेहद उथल-पुथल भरा व नाटकीय तरीके से बेहद दर्दनाक रहा।
अपनी पहली ही फिल्म एक ही रास्ता (सन् 1939) जिसमें वे प्रसिद्ध अभिनेत्री नलिनी जयवंत के साथ थे, वे छा गए थे। और फिर तो उनकी फिल्मों की गाड़ी क्या चली, लोग अपने 'माचो मैन' के मुरीद हो गए। अभिनेता के रूप में शेख मुख्तार की बेहद पुख्ता पहचान थी। प्रशंसकों में कद्दावर, रोबदार शख्सियत वाले अपने 'माचो मैन' को लेकर दीवानगी थी।
उन्होंने 40 फिल्मों में अभिनय किया और 8 फिल्मों का निर्माण किया। भूख, टूटे तारे, दादा, घायल, उस्ताद पेड्रो, मंगू, मि. लम्बू, बेगुनाह, डाकू मानसिंह, गुरु और चेला जैसी यादगार फिल्मों ने धूम मचा दी थी। कराची में जन्म के बाद, पिता के तबादले की वजह से वे दिल्ली आ गए और यहीं उनकी शिक्षा हुई। कद, काठी और रौबदार व्यक्तित्व की वजह से ही पिता उन्हें अपनी तरह पुलिसकर्मी बनाना चाहते थे, लेकिन किस्मत उन्हें 'माचो मैन' बनाने के लिए रूपहले पर्दे की और खींच रही थी।
रंगमंच का शौक उन्हें कोलकाता ले गया जहां उन्होंने एक रंगमंच कंपनी में नौकरी कर ली और सन् 1938 से आरंभ हो गई उनकी अभिनय यात्रा। वर्ष 1980 तक उनकी सभी फिल्में खूब चली रहीं, किंतु अन्तिम फिल्म नूरजहां उनका अंत ही साबित हुई। नूरजहां अपने समय की बहुत बड़ी फिल्म थी। निर्माता के रूप में नूरजहां शेख के लिए एक सपना थी। अपने जीवन की सारी पूंजी शेख ने इस फिल्म पर झोंक दी थी। इस जमाने के महंगे और जानेमाने कलाकार प्रदीप कुमार और मीना कुमारी नूरजहां की प्रमुख भूमिकाओं में थे। फिल्म देखकर दर्शकों को बरबस ही मुगले आजम और पुकार जैसी विशाल फिल्मों के सेट याद आ जाते थे।
दिल्ली के डिलाइट सिनेमा में नूरजहां का ऑल इंडिया प्रीमियर शो रखा गया। उस अवसर पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री के रूप में उपस्थित थे। फिल्म को सबने सराहा, पर दुर्भाग्य यह रहा कि फिल्म हिट नहीं हो पाई, उन पर बाजार का कर्ज चढ़ गया। शेख ने हिम्मत नहीं हारी। फिल्म को सरहद पार पाकिस्तान में प्रदर्शित करने की योजना बनाई। अड़चनें तमाम थीं, रास्ता बेहद मुश्किल होता जा रहा था लेकिन तमाम अड़चनों के बावजूद आखिरकार फिल्म को पाकिस्तान में प्रदर्शित करने का उनका प्लान ठीक होता लगा, लेकिन उनके शायद सितारे गर्दिश में ही चल रहे थे।
फिल्म का पाकिस्तान में विरोध शुरू हो गया। बमुश्किल पाकिस्तान ने फिल्म प्रदर्शन की हरी झंडी दी। शेख मुख्तार अपनी सफलता से प्रसन्न होकर वापस लौट रहे थे। वे हवाई जहाज में ही थे, तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 'माचो मैन' दुनिया को अलविदा कह गया, लेकिन फिल्म की सफलता को लेकर इस 'माचो मैन' ने तमाम दर्द झेले, अपनी सारी जमा पूंजी दांव पर लगा दी, वह फिल्म पाकिस्तान में बड़ी हिट साबित हुई।
पाकिस्तान के लाहौर, कराची, क्वेटा और हैदराबाद में फिल्म देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। भीड़ को नियंत्रित कराने के लिए सुरक्षाबलों का सहारा लेना पड़ता था। शेख मुख्तार ने अपने जिस सपने को साकार देखने के लिए तमाम दर्द, तकलीफें झेलीं, वह सपना पूरा तो हुआ लेकिन 'माचो मैन' के दुनिया से जाने के बाद। उनकी अभिनीत फिल्में पुणे की एक लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी हैं। (वीएनआई)