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Written By WD feature desk
Last Modified: रविवार, 5 अक्टूबर 2025 (07:02 IST)

Rani durgavati:वीरांगना रानी दुर्गावती: मुगलों को कई बार चटाई धूल

Rani Durgavati Jyanati
Rani Durgavati Story: आज, 5 अक्टूबर को भारत की महान वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती मनाई जा रही है। उनका वीरतापूर्ण चरित्र इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। उन्होंने कभी भी किसी राजा, सम्राट या बादशाह की अधिनता स्वीकार नहीं की और अपनी अस्मिता के लिए बलिदान दे दिया। यहां उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत हैं।
 
1. जन्म, नामकरण और परिचय
जन्म तिथि: 5 अक्टूबर 1524 (दुर्गाष्टमी का दिन)
जन्म स्थान: बांदा जिले का कालिंजर किला
पिता: राजा कीर्तिसिंह चंदेल
नामकरण: दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण नाम दुर्गावती रखा गया।
विशेषता: वह अपने नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थीं।
 
2. विवाह और शासन सत्ता
विवाह: गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से विवाह हुआ।
राज्याभिषेक: विवाह के 4 वर्ष बाद राजा दलपत शाह के निधन के कारण, रानी ने स्वयं गढ़मंडला (वर्तमान जबलपुर केंद्र) का शासन संभाला।
पुत्र: उस समय पुत्र नारायण मात्र 3 वर्ष के थे।
शासन काल: उन्होंने लगभग 16 वर्ष तक कुशलतापूर्वक राज संभाला।
विकास कार्य: इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।
 
3. शौर्य और मुगलों से संघर्ष
रानी दुर्गावती का पराक्रम असाधारण था। उन्होंने कई शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया।
सूबेदार बाजबहादुर: रानी रूपमती के प्यार में अंधे हुए स्त्री-लोलुप सूबेदार बाजबहादुर ने जब रानी पर बुरी नजर डाली, तो रानी से उसे मुँह की खानी पड़ी। दूसरे युद्ध में रानी ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया, जिसके बाद वह कभी पलटकर नहीं आया।
तीन मुस्लिम राज्य: रानी दुर्गावती ने इन तीनों राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। ये राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाना की ओर झाँकना भी बंद कर दिया। इस विजय में उन्हें अपार संपत्ति प्राप्त हुई।
शिकार का शौक: वह इतनी वीर थीं कि शेर दिखाई देने पर तुरंत शिकार करने जाती थीं और उसे मारे बिना पानी भी नहीं पीती थीं।
 
4. अकबर से युद्ध और बलिदान
रानी दुर्गावती ने अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के लिए मुगल सम्राट अकबर से लोहा लिया।
युद्ध का कारण: अकबर के कड़ा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी के विरुद्ध उकसाया। अकबर उन्हें अपने रनवासे की शोभा बनाना चाहता था।
रानी का निर्णय: रानी ने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इनकार कर दिया और स्वतंत्रता तथा अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना।
बलिदान: 24 जून 1564 को शत्रुओं से युद्ध करते हुए जब उन्हें लगा कि वे पकड़ी जा सकती हैं, तो उन्होंने अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में घोंपकर आत्म बलिदान दे दिया।
उत्तराधिकारी: उनकी मृत्यु के पश्चात उनके देवर चन्द्रशाह शासक बने और उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
 
5. सम्मान और स्मारक
बलिदान दिवस: रानी जिस स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुईं (वर्तमान जबलपुर-मंडला रोड पर बरेला के पास, नारिया नाला), वहाँ उनका स्मारक बनाया गया है।
स्मरणोत्सव: प्रतिवर्ष 24 जून को इस स्थान पर एक समारोह आयोजित किया जाता है, जिसे 'बलिदान दिवस' कहा जाता है।
सरकारी सम्मान: बहादुर रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस (24 जून 1988) को भारत शासन द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था।
आज भी इस वीरांगना के पराक्रम की कहानी हर हिन्दुस्तानी के दिल में जीवित है।
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