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Written By WD Feature Desk

गणेश शंकर विद्यार्थी : कलम से क्रांति लाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती पर विशेष श्रद्धांजलि

पत्रकारिता का आदर्श माने जाते हैं गणेश शंकर विद्यार्थी, जानिए उनके बारें में खास बातें

Ganesh Shankar Vidyarthi Jayanti
Ganesh Shankar Vidyarthi Jayanti 2024 : गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को अतरसुइया में हुआ था। उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली किताब 'हमारी आत्मोसर्गता' लिख डाली थी। गणेश शंकर विद्यार्थी अपनी पूरी जिंदगी में 5 बार जेल गए। उन्होंने अपनी कलम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और अपने जीवन को देश की आजादी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित कर दिया। विद्यार्थी जी का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ पत्रकारिता और सामाजिक उत्थान के लिए भी प्रेरणादायक रहा है।
 
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, और उन्होंने अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने का संकल्प लिया। विद्यार्थी जी ने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में गहन अध्ययन किया। शिक्षा के दौरान ही उनमें समाज की असमानताओं और ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ आक्रोश पनपने लगा।
 
पत्रकारिता में कदम
गणेश शंकर विद्यार्थी ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका पत्रकारिता के माध्यम से निभाई। उन्होंने 1913 में 'प्रताप' नामक अखबार की स्थापना की, जो ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का माध्यम बना। इस अखबार के माध्यम से विद्यार्थी जी ने समाज के कमजोर और दबे-कुचले वर्ग की समस्याओं को उजागर किया। उनकी लेखनी में ऐसा दम था कि वह अंग्रेजों के खिलाफ एक सशक्त हथियार बन गई। 
 
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
गणेश शंकर विद्यार्थी न केवल पत्रकार थे, बल्कि वे एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वे स्वराज के प्रबल समर्थक थे और अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्षरत रहे। उन्होंने अपने अखबार में अंग्रेजों की नीतियों की कड़ी आलोचना की और भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया। उनके लेखों ने लोगों में क्रांति की भावना को जागृत किया और उन्होंने कई युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। 
 
साम्प्रदायिक एकता और सामाजिक न्याय के पक्षधर
गणेश शंकर विद्यार्थी का जीवन सिर्फ स्वतंत्रता की लड़ाई तक सीमित नहीं था। वे सामाजिक न्याय और साम्प्रदायिक एकता के प्रबल समर्थक थे। 1931 में कानपुर में साम्प्रदायिक दंगों के समय, विद्यार्थी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। वे लोगों के बीच शांति और सद्भावना लाने के लिए जी-जान से जुटे रहे, लेकिन दंगों के दौरान वे शहीद हो गए। उनका बलिदान समाज के प्रति उनके समर्पण और सेवा का प्रमाण है। 


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