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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 31 अक्टूबर 2022 (19:55 IST)

सरदार पटेल विद्यालय के पूर्व छात्रों ने अमित शाह के ख़िलाफ़ क्यों लिखी चिट्ठी?

सरदार पटेल विद्यालय के पूर्व छात्रों ने अमित शाह के ख़िलाफ़ क्यों लिखी चिट्ठी? - Why did the former students of Sardar Patel Vidyalaya  write a letter against Amit Shah?
नई दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय के 200 से अधिक पूर्व छात्रों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर न्योता दिए जाने पर स्कूल प्रबंधन को चिट्ठी लिखकर आपत्ति दर्ज कराई है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार राजधानी दिल्ली के इस स्कूल के पूर्व छात्रों का कहना है कि अमित शाह को न्योता देना स्कूल के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है।

छात्रों का ये भी कहना है कि मौजूदा 'ध्रुवीकरण के माहौल' में ये न्योता स्कूल को आलोचनाओं का केंद्र बना देगा।पूर्व छात्रों ने इस चिट्ठी में लिखा है कि ध्रुवीकरण के मौजूदा माहौल में उनके जैसे राजनेता को बुलाने से स्कूल आलोचनाओं का शिकार हो सकता है और ये संविधान और बहुलवाद पर टिके स्कूल के सिद्धांतों को भी कमज़ोर कर देगा। सोमवार को अमित शाह ने सरदार पटेल की जयंती पर स्कूल में आयोजित समारोह को संबोधित किया है।
 
अमित शाह गुजरात एजुकेशन सोसायटी की तरफ़ से आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। सरदार पटेल विद्यालय के कार्यक्रम में बोलते हुए अमित शाह ने कहा कि ये देश की आम राय है कि अगर सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बने होते तो आज देश के सामने जो अधिकतर समस्याएं हैं वे नहीं होतीं।
 
सरदार पटेल के बारे में बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि बहुत कम लोग ऐसे होंगे सरदार पटेल सरीखे जिन्होंने कभी भी अपनी प्रसिद्धि के लिए जीवन में कुछ नहीं किया। पूरा जीवन, जिस दिन से वकालत छोड़ी, पूरा जीवन केवल और केवल भारत की आज़ादी, आज़ादी के बाद अखंड भारत के निर्माण और निर्मित हुए नए राष्ट्र की नींव डालने के लिए ही वे काम करते रहे।
 
अमित शाह ने अपने भाषण में ये भी कहा कि भारत के इतिहास में सरदार पटेल को नज़रअंदाज़ किया गया, लेकिन अब देश उन्हें याद कर रहा है। उन्होंने कहा कि ढेर सारी बातें, ढेर सारे नेताओं के बारे में उपलब्ध हैं, लेकिन सरदार के बारे में कुछ खोजना बहुत कठिन होता है। दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि काफ़ी लंबे समय तक सरदार के काम को इस देश ने एक प्रकार से याद करने का काम भी नहीं किया।
 
सरदार पटेल जैसे व्यक्ति को भारतरत्न मिलने में कई साल लग गए। सरदार पटेल के स्मारक को बनाने में भारत को कई साल लग गए। उनके विचारों को संकलित कर युवाओं की प्रेरणा बनाने में कई साल लग गए। लेकिन मैं अब ये निश्चित रूप से मानता हूं कि जो करता है, उसे कोई भुला नहीं सकता। महान वही है जिसके मरने को 100-50 साल बाद भी लोग याद करें। सरदार ऐसे ही व्यक्ति हैं। अमित शाह ने अपने भाषण में गुजरात में मोरबी में हुए हादसे में मारे गए लोगों के प्रति दु:ख भी ज़ाहिर किया।
 
चिट्ठी में क्या-क्या लिखा?
 
गृहमंत्री को दिए निमंत्रण को हैरान करने वाला और निराशाजनक बताते हुए छात्रों के समूह ने प्रबंधन से कहा है कि किसी को समारोह के पैनल में 'स्पीकर' की बजाय 'चीफ़ गेस्ट' बताकर न्योता देना अस्वीकार्य है।
 
सुप्रीम कोर्ट की चर्चित अधिवक्ता करुणा नंदी ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किया है। बीबीसी से बात करते हुए अमित शाह के विरोध की वजह बताते हुए करुणा कहती हैं कि देश में डर का माहौल है। अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं। संवैधानिक ज़िम्मेदारी सरकार की ही है। या तो वे इस डर के माहौल को ख़त्म नहीं कर रहे हैं या वे इसकी वजह हैं।
 
करुणा कहती हैं कि सरदार पटेल विद्यालय में पढ़ने वाले हम सब छात्र अपने आप को पटेलियन कहते हैं और हमें उनके आदर्शों पर गर्व है। सरदार पटेल ने जिस आरएसएस को प्रतिबंधित किया, अमित शाह आज उसके सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं। उन्हें निमंत्रण देना सरदार पटेल की विरासत को कमजोर करना है।
 
पेशे से बुक आर्टिस्ट और इन दिनों नॉर्वे में रह रहीं सरदार पटेल विद्यालय की छात्रा राधा पांडे कहती हैं कि जो पत्र में लिखा है, मैं उसका समर्थन करती हूं। किसी को मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित करने से आप न सिर्फ उनके विचारों का जनता के समक्ष समर्थन करते हैं बल्कि इससे आपके अपने विचार भी प्रभावित होते हैं।
 
राधा कहती हैं कि ये हैरान करने वाला निर्णय लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विरोध, विविधता के प्रति सम्मान और क्रिटिकल थिंकिंग (सही ग़लत में फ़र्क करने का नज़रिया) जैसे छात्रों को सिखाए जाने वाले आदर्शों के ठीक विपरीत है।
 
पूर्व छात्रों ने पत्र में कहा कि ध्रुवीकरण के मौजूदा माहौल में उनके जैसे राजनीतिक व्यक्ति को आमंत्रित करना स्कूल को आलोचना का केंद्र बना देगा और इसके सिद्धांतों को कमज़ोर कर देगा, जो संविधान और बहुलवाद पर टिका है। देश में फैल रहा हिंसा और नफ़रत का मौजूदा माहौल ही संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना के लिए ज़िम्मेदार है। हमारा स्कूल सवालों, लोकतांत्रिक तौर पर असहमति जताने, बहस और वाद-विवाद को बढ़ावा देता है।
 
समूह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता शाह का रुख़ सरदार पटेल के उन आदर्शों के विपरीत है, जो उन्हें स्कूल द्वारा सिखाए जाते हैं। छात्रों ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की राजनीतिक इकाई बीजेपी के वरिष्ठ नेता होने के नाते अमित शाह सरदार वल्लभभाई पटेल के उन मूल्यों के ख़िलाफ़ रहे हैं जिन्हें इस स्कूल ने हमारे अंदर भरा है।
 
भारत सरकार के पुराने रुख़ का ज़िक्र
 
हाल के सालों में बीजेपी की ओर से सरदार पटेल को उचित स्थान देने की कई कोशिशें हुईं, लेकिन ये याद करना ज़रूरी है कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर बैन लगाया गया था। उस समय सरदार पटेल ही गृहमंत्री थे।
 
उस समय भारत सरकार ने कहा था कि ये प्रतिबंध 'देश में सक्रिय नफ़रत और हिंसा को बढ़ावा देने और आज़ादी को ख़तरे में डालने वाली ताक़तों को जड़ से उखाड़ने के लिए लगाया गया है। 'राष्ट्रीय एकता दिवस' हर साल 31 अक्टूबर को भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
 
पूर्व छात्रों ने बताया है कि 1948 में भारत सरकार ने कहा था कि संघ के सदस्यों ने ग़ैर-ज़रूरी और यहां तक कि ख़तरनाक गतिविधियों को अंजाम दिया है और कुछ आरएसएस सदस्य तो 'हिंसा में शामिल रहे। संघ की ओर से आपत्तिजनक और हानिकारक गतिविधियां हमेशा जारी रहीं और इसके निशाने पर बहुत से पीड़ित आए। 'सबसे ताज़ा और अहम उदाहरण गांधीजी ख़ुद हैं।
 
'सरदार पटेल ने स्पष्ट तौर पर आरएसएस का किया था विरोध'
 
पूर्व छात्रों ने बताया है 18 जुलाई, 1948 को गांधीजी की हत्या के सिलसिले में हिन्दू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखी चिट्ठी में पटेल ने कहा था कि आरएसएस की गतिविधियां सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट ख़तरा हैं।
 
पूर्व छात्रों ने सरदार पटेल के संघ पर दर्शाए विचारों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि अगर ये काफ़ी नहीं है तो 11 सितंबर 1948 को पटेल ने जब एमएस गोलवलकर को चिट्ठी लिखी तो अपने विचार स्पष्ट कर दिए थे। उन्होंने इसमें लिखा था कि आरएसएस के सभी भाषण सांप्रदायिक ज़हर से भरे होते हैं। हिन्दुओं में उत्साह भरने और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें संगठित करने के लिए ज़हर फैलाने की ज़रूरत नहीं थी।
 
23 फ़रवरी, 1949 को मद्रास के आईलैंड ग्राउंड में अपने भाषण के दौरान सरदार पटेल ने आरएसएस से निपटने के बारे में बात करते हुए कहा था कि 'वे बलपूर्वक हिन्दू राज्य या हिन्दू संस्कृति थोपना चाहते हैं। कोई भी सरकार इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। इस देश में अभी भी क़रीब उतने ही मुसलमान रहते हैं जितना विभाजन के बाद बने देश में हैं। हम उन्हें भगाना नहीं चाहते। अगर हम इस ख़ेल को शुरू कर देंगे तो उससे बुरा दिन नहीं होगा।'
 
छात्रों ने कहा है कि चिट्ठी में दिए उदाहरणों से ये स्पष्ट है कि 'अमित शाह जिस मौजूदा सत्ताधारी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसकी विचारधारा सरदार पटेल से एकदम अलग है। इसलिए ये उन सिद्धांतों के भी ख़िलाफ़ है जिस पर ये स्कूल और देश टिका है।'
 
पूर्व छात्रों के समूह ने कहा है कि 'इस स्कूल ने हमें हमेशा सत्ता के सामने सच बोलने के लिए प्रोत्साहित किया है, विविधता का सम्मान करना सिखाया है। ऐसे में मुख्य अतिथि का चुनाव उस स्कूल के मूल्यों को कमज़ोर करता है जिसने हमें न्याय, बराबरी और शांति के रास्ते पर चलना सिखाया।
 
Edited by: Ravindra Gupta
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