सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
दिल्ली के शाहीन बाग़ में बड़ा सवाल अब ये पैदा हो गया है कि आख़िर सरकार से बात करे तो कौन करे। गृह मंत्री अमित शाह के उस कथन - कि वो प्रदर्शनकारियों से बात करने को तैयार हैं - का शाहीन बाग़ में प्रदर्शनकारियों ने स्वागत किया है। स्वागत करने के साथ साथ प्रदर्शन कर रहे लोगों ने आपस में राय मशविरा भी किया। लेकिन पेंच वहीं जाकर फंस गया कि सरकार से आखिर बात कौन करे।
शनिवार की देर शाम प्रदर्शनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल शाहीन बाग़ थाना पहुंचा। प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस प्रशासन से लिखित रूप में मांग की कि उन्हें जुलूस के रूप में गृह मंत्री के आवास तक जाने दिया जाए। मगर पुलिस प्रशासन ने ये कहते हुए इस मांग पर सहमति नहीं दी कि अगर जुलूस होगा तो उसमें बच्चे और महिलाएं होंगी जिनकी सुरक्षा की गारंटी लेने वाला कोई नहीं।
पुलिस अधिकारियों ने प्रतिनिधिमंडल से अलबत्ता ये कहा कि वो दस से पंद्रह लोगों का चयन कर लें जो गृह मंत्री से जाकर बात करना चाहते हैं। शाहीन कौसर इस प्रतिनिधिमंडल की एक सदस्य थीं जो पुलिस के अधिकारियों से बात करने गयीं थीं।
कितने लोग बात करने जाएंगे?
वो कहती हैं : ''पुलिस अधिकारियों ने हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया। उन्होंने अपनी मजबूरी भी बतायी कि वो क्यों भीड़ को गृह मंत्री के आवास तक जाने की अनुमति नहीं दे सकते। वो कह रहे थे कि अगर दस या पंद्रह लोग जाएंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी। अब हम प्रदर्शन में बैठीं हमारी बहनों और दूसरे प्रदर्शनकारियों से बात करेंगे कि क्या किया जाए?''
लेकिन नेतृत्व विहीन इस आंदोलन में कोई ये तय नहीं कर पा रहा है कि सरकार के बात करने वाले लोग कौन होंगे और वो क्या बात करेंगे ?
इस पर चर्चा हो रही थी कि प्रदर्शनकारी महिलाओं का प्रतिनिधिमंडल गृह मंत्री से मिलने जाए जिसमें शाहीन बाग़ की दादियां भी शामिल हों। मगर फिर सवाल उठने लगा कि इतने बड़े मुद्दे को लेकर सिर्फ महिलाएं सरकार से बात नहीं कर सकतीं।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल ज़ुबैर कहते हैं कि अब ये भी सवाल उठने लगा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में चल रहा आंदोलन अपने आप में अकेला नहीं है। पूरे भारत में इन मुद्दों को लेकर लगभग 300 के क़रीब शाहीन बाग़ हैं। ज़ुबैर कहते हैं कि गृह मंत्री ने बात करने के लिए कहा है मगर उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया है कि वो किस से बात करना चाहते हैं?
क्या कोई निष्कर्ष निकलेगा?
दूसरी तरफ सरकारी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि भी नहीं की है कि शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को गृह मंत्री से मिलने का कोई समय भी मिला है या नहीं। प्रदर्शनकारियों में से एक जावेद का कहना था कि वो पूरी बातें लेकर सब प्रदर्शनकारियों से सलाह करेंगे तब जाकर ही इस पर कोई निष्कर्ष निकलने की कोई उम्मीद होगी।
लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नहीं लगा कि इस भीड़ में से कोई भी ऐसा चेहरा हो जिसकी बात सब मानें। क्योंकि आंदोलन नेतृत्वविहीन ही चल रहा है। शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर किसी की भी नहीं चल रही है। न कोई एक नेता और ना ही कोई सामाजिक कार्यकर्ता। किसी की बात का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा है।
एक पल को तो ऐसी स्थिति लगी कि हर कोई अमित शाह से बात करना चाहता है जो कि मुमकिन नहीं है। फिर सवाल उठता है कि अगर सिर्फ शाहीन बाग़ का प्रतिनिधिमंडल भी जाए और बात करे तो क्या असम सहित दूसरे राज्यों में प्रदर्शनकारी इस प्रतिनिधिमंडल की बात मान ही लेंगे ? इसी को लेकर पेंच फंसा हुआ है।