- नारायण बारेठ
पड़ोस से पनाह की गुहार लेकर आए वो पाकिस्तानी हिंदू अभिभूत हैं जिन्हें भारत की नागरिकता मिल गई। वो इन चुनावों में वोट डाल सकेंगे। लेकिन ऐसे हज़ारों लोग हैं जो अब भी अनिश्चितता के अंधेरे में जी रहे हैं। इन हिंदुओं का मुद्दा एक बार फिर सतह पर आ गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दो चुनावी सभाओं में इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। उधर कांग्रेस कहती है कि बीजेपी सरकार ने इन शरणार्थियों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया और पांच साल तक कुछ नहीं किया।
पाकिस्तान से आए हिंदुओं के लिए आवाज़ उठाने वाले सीमान्त लोक संगठन के अनुसार राजस्थान में ऐसे 35 हज़ार लोग हैं जो भारत की नागरिकता के लिए कतार में लगे हैं।
जिन्हें नागरिकता मिली, उनका हाल
पिछले पांच साल में कुछ सैकड़ों लोगों को ही भारत की नागरिकता मिल सकी है। इनमे डॉक्टर राजकुमार भील भी हैं। पाकिस्तान के सिंध सूबे से आए डॉक्टर भील को नागरिकता के लिए 16 साल इंतज़ार करना पड़ा। अब वो भारत के मतदाता हैं। यह कितनी बड़ी ख़ुशी है?
डॉ. भील कहते हैं, "इसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। यूं मानिए कि मेरे पैर ज़मीन पर नहीं है। यह मेरे लिए दिवाली से बड़ी ख़ुशी है क्योंकि दिवाली तो साल में एक बार आती है। मगर इस ख़ुशी की रौशनी तो 16 साल बाद आई है।"
चेतन दास कभी पाकिस्तान में शिक्षक थे लेकिन अब वो भारत के नागरिक हैं। उन्हें कुछ माह पहले ही भारत की नागरिकता मिली है। वो कहते हैं कि ख़ुशी तो है मगर टूटी-टूटी सी। चेतन बताते हैं, "हम परिवार में 12 लोग हैं। उनमें से सिर्फ़ मुझे ही नागरिकता मिली है। इसके लिए 19 साल इंतज़ार करना पड़ा।"
वो कहते हैं, "उम्र ढल गई है। मुझे मेरे बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। मेरी बेटी ने यहां बीटेक तक पढ़ाई की थी। मगर जब भी रोज़गार की बात आती थी, लोग नागरिकता के क़ागज़ मांगते थे। इन सबसे वो इस कदर मायूस हुई कि ख़ुदकशी कर ली।'' चेतन कहते हैं कि उन्हें सिर्फ़ आश्वासन मिलते रहे हैं लेकिन इससे तो काम नहीं चलता।
'दलालों का खेल'
सीमान्त लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा कहते हैं, "कोई दो साल पहले सरकार ने नागरिकता के लिए ज़िला अधिकारियों को अधिकार दिए मगर इसमें बहुत धीमी प्रगति हुई। अभी 35 हज़ार लोग हैं, जो नागरिकता के लिए गुहार लगा रहे हैं। पर इनमें से सिर्फ़ एक हज़ार को ही नागरिकता मिल सकी है। लोग भविष्यहीनता के दर्द और डर में जी रहे हैं। इस बेबसी का फ़ायदा उठाकर सरकारी महकमों में दलालों का एक गिरोह सक्रिय हो गया है। ये लोग वसूली करते हैं और वापस भेजने की धमकी देते हैं।"
वो बताते हैं कि ऐसा ही एक गिरोह दो साल पहले पकड़ा गया था। इसमें केंद्र सरकार का एक कर्मचारी भी शामिल था। नागरिकता से महरूम पाकिस्तान के इन हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा जोधपुर में आबाद है। कुछ बीकानेर, जालोर और हरियाणा में शरण लिए हुए हैं।
इन्ही में से एक महेंद्र कहते हैं, "दो दशक से ज़्यादा वक्त गुज़र गया लेकिन अब भी उन्हें नागरिकता नहीं मिली है। लोग उन्हें जब पाकिस्तानी कहकर सम्बोधित करते हैं तो बुरा लगता है। हमारे बच्चे यहीं पैदा हुए मगर उन्हें भी पाकिस्तानी कहा जाता है।"
पूर्णदास मेघवाल पहले पाकिस्तान के रहीमयारखां जिले में रहते थे। अब पिछले 20 साल से भारत में रह रहे हैं। वो कहते हैं कि उन्हें अब तक हिंदुस्तान की नागरिकता नहीं मिली। मेघवाल पहले कभी पाकिस्तान में वोट डालते थे। मगर वो कहते है वहां चुनाव का कोई मतलब नहीं था। उन्हें उम्मीद है कि कभी वो घड़ी भी आएगी जब उन्हें भारत में वोट डालने का हक मिलेगा।
बेमतलब का चुनाव
पाकिस्तान से आए ये लोग उस मंज़र को याद कर अब भी सहम जाते हैं जब वर्ष 2017 में पुलिस ने चंदू भील और उनके परिवार के नौ सदस्यों को वापस पाकिस्तान भेज दिया था।
सीमान्त लोक संगठन ने उस भील परिवार को भारत में बने रहने के लिए हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की और कोर्ट ने उस पर स्थगन आदेश भी जारी कर दिया। मगर पुलिस तब तक चंदू और उसके परिवार को थार एक्सप्रेस से रवाना कर चुकी थी।
चेतन कहते हैं सरकार को यह सोचना चाहिए था कि उन पर वहां क्या गुज़रेगी। अगर वहां सब कुछ ठीक होता तो लोग यहाँ क्यों आते? वो कहते हैं, ''किसी के लिए कितना मुश्किल होता है अपना पुश्तैनी गांव-घर सदा के लिए छोड़ देना।''
'कांग्रेस ने की हिंदुओं की अनदेखी'
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी बाड़मेर और जोधपुर की चुनाव सभाओं में इस मुद्दे को उठाया और कहा वो इन हिंदुओं की नागरिकता के लिए प्रयास करेंगे। मोदी ने कहा कांग्रेस सरकार ने इन हिंदुओं की अनदेखी की है।
मगर राज्य कांग्रेस में महासचिव पंकज मेहता कहते हैं, "प्रधानमंत्री ने बिलकुल निराधार बात कही है। उन्हें पता होगा कि उनकी सरकार के दौरान ही चंदू भील और उनके परिवार को जबरन पाकिस्तान वापस भेज दिया गया। कांग्रेस ने कभी किसी को ऐसे वापस नहीं धकेला।"
मेहता कहते हैं, "बीजेपी सरकार ने इन निरीह लोगों को दलालों के भरोसे छोड़ दिया। इसमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल थे। अब चुनाव आने पर बीजेपी को इन शरणार्थियों की याद आने लगी है।"
इससे पहले वर्ष 2004-05 में राजस्थान में कोई 13 हज़ार पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत की नागरिकता दी गई थी। इनमे अधिकांश या तो दलित हैं या फिर आदिवासी भील समुदाय के। पश्चिमी राजस्थान में सियासत की जानकारी रखने वाले बताते हैं कुछ लोकसभा सीटों पर इन हिंदुओं और इनके नाते रिश्तेदारों की अच्छी उपस्थिति है।
कुछ माह पहले ही भारत के नागरिक बने डॉ राजकुमार भील कहते हैं, "हमारे लोग तो उसे ही वोट देंगे जो उनके सुख-दुख का ध्यान रखेगा। हम चाहते हैं कि जैसे नागरिकता के लिए हमे दुश्वारी से गुज़रना पड़ा है। हमारे बाकी लोगों को इन तकलीफ़ों से न गुज़रना पड़े।"
दोनों तरफ एक जैसा मरुस्थल है। ज़मीन पर दरख़्त, फूल-पौधे और आसमान में चांद-सितारे भी वैसे ही हैं। मगर धरती पर खींची एक लकीर ने उसे दो देशों में बाँट दिया। अपनी जड़ों से उखड़े लोग कहते हैं यही बंटवारा है जो रह-रह कर इंसानियत को दर-बदर करता रहता है।