- नमक ख़ोशनॉ
पहाड़ी पर बनी एक मस्जिद
उत्तरी इराक़ के शहर मूसल में एक पहाड़ी है, जिसे नबी यूनुस कहते हैं। यहां पर सदियों से इबादत होती रही है। ईसाई धर्म के शुरुआती दिनों में यहां पर एक मठ भी बनाया गया था। पर, क़रीब 600 साल पहले इस ईसाई मठ को मुस्लिम इबादतगाह में तब्दील कर दिया गया। इस इबादतगाह को पैग़म्बर यूना को समर्पित किया गया।
जुलाई 2014 में इस मस्जिद को इस्लामिक स्टेट ने धमाके से उड़ा दिया। मुस्लिम चरमपंथियों का दावा था कि नबी यूनुस अब इबादत का नहीं बल्कि विधर्मी गतिविधियों का अड्डा बन गई थी। इस धमाके के वीडियो का प्रसारण पूरी दुनिया में दिखाया गया था। इस्लामिक स्टेट का संदेश साफ़ था: भले ही कोई जगह कितनी भी पवित्र हो, कितनी भी पूजनीय क्यों न हो, वो इस्लामिक स्टेट की क़ुरान की कट्टरपंथी व्याख्या की ज़द से परे नहीं थी।
लेकिन, नबी यूनुस की बर्बादी से इस प्राचीन और पवित्र माने जाने वाले टीले की कहानी ख़त्म नहीं हुई। इसके बजाय इस तबाही ने बड़े दिलचस्प सवाल को जन्म दिया कि आख़िर उस मस्जिद की संग-ए-बुनियाद के नीचे आख़िर क्या है?
2018 के बसंत के मौसम में बीबीसी अरबी सर्विस की तरफ़ से एक टीम को नबीयू नुस भेजी गई। हाल ही में वहां पर पहाड़ी के अंदर कुछ सुरंगें मिली थीं। बीबीसी की टीम वहां ये पता लगाने गई कि आख़िर इस घुमावदार, पेचीदा और धूल भरी सुरंगों की हक़ीक़त क्या है।
बीबीसी की टीम ने नबी यूनुस के उस पहाड़ी इलाक़े की हाई रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें खींचीं। इन तस्वीरों को उतारने के लिए फोटोग्रामेटरीनाम की तकनीक का इस्तेमाल किया गया। बीबीसी की टीम ने नबी यूनुस के रहस्य और उन अनसुलझे सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की, जो इस मस्जिद की तबाही के बाद से उठ रहे हैं। मगर, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं।
पैग़म्बर
नबी यूनुस की पहाड़ी एक दौर में असीरियाई साम्राज्य की राजधानी और अपने दौर के मशहूर शहर निनेवेह के क़रीब हुआ करती थी। पैग़म्बर यूना को अरबी ज़बान में नबी यूनुस कहा जाता है। पैग़म्बर यूना या यूनुस का ज़िक्र क़ुरान में भी मिलता है और हिब्रू भाषा में लिखी गई बाइबिल में भी।
दोनों ही पवित्र किताबों में यूनुसया योना के निनेवेह शहर जाने और वहां के बाशिंदों को ये चेतावनी देने का ज़िक्र है कि शहर के लोग अपने पापों का प्रायश्चित कर लें, अपनी हरकतें सुधार लें। वरना निनेवेह शहर की तबाही तय है।
बहुत से मुसलमान मानते हैं कि पैग़म्बर यूनुस की हड्डियां, नबी यूनुस में रखी हुई थीं। बाद में वहां पर एक दरगाह भी बना दी गई। मान्यता है कि यहां पर उस व्हेल का दांत भी रखा हुआ था, जो लोक कथाओं के मुताबिक़ हज़रत यूनुस को पेट में लेकर तीन दिनों तक तैरती रही थी।
मूसल यूनिवर्सिटी में असीरियन स्टडीज़ के निदेशक अली या अल-जुबूरी बताते हैं, "नबी यूनुस हमेशा से हमारी सबसे अहम धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का ठिकाना रहा। जब लोग इस पहाड़ी पर जाते थे, तो वहां से वो पुराने और नए मूसल शहर को बहुत अच्छे से देख पाते थे।"
रॉबर्ट ब्राउन की किताब 'द कंट्रीज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' से (1876)
तबाही
24 जुलाई, 2014 को इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने नबी यूनुस की मस्जिद की भीतरी और बाहरी दीवारों के पास विस्फोटक रख दिए। इसके बाद चरमपंथियों ने वहां इबादत करने आए लोगों से जाने को कहा। स्थानीय लोगों को मस्जिद से पांच सौ मीटर दूर खड़े होने को कहा गया।
विस्फोटकों में धमाके के कुछ ही सेकेंड बाद, नबी यूनुस की मस्जिद मलबे के ढेर में तब्दील हो गई थी। इस्लामिक स्टेट ने शहर में आबाद ईसाइयों को वहां से भगा दिया। इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था कि मूसल शहर को सिर्फ़ एक दीन के मानने वालों से आबाद करने की कोशिश हो रही थी।
नबी यूनुस मस्जिद को उड़ाया जाना मूसल शहर के पवित्र ठिकानों और ऐतिहासिक प्रतीकों की तबाही के सिलसिले की एक कड़ी भर था। कभी प्राचीन शहर निनेवेह में दाख़िल होने के लिए इस्तेमाल होने वाले, नबी यूनुस के पास के ही नेरगल दरवाज़े के क़रीब ही लोक कथाओं के किरदार लमासू काबुत था। इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने लमासू के बुत की शक़्ल बिगाड़ दी थी। एक दौर में ये बुत असीरियाई राजमहलों की निगहबानी करता था। बाद में चरमपंथियों ने नेरगल दरवाज़े को ही उड़ा दिया था। इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने एकड्रिलिंग मशीन से मुस्कुराते हुए लमासू की शक़्ल में ही छेद कर डाला था।
इस्लामिक स्टेट ने नबी यूनुस की मस्जिद उड़ाने को ये कह कर जायज़ ठहराने की कोशिश की कि ये इबादतगाह थी ही नहीं। इस्लामिक स्टेट के एक लड़ाके ने बीबीसी को बताया, "ये तो ईसाइयों के पादरी का क़ब्रिस्तान था। किसी भी फ़र्ज़ी इबादतगाह के ऊपर मस्जिद तामीर करने की सख़्त मनाही है।"
अकादमिक रिसर्च से ये बात साफ़ हो चुकी है कि नबी यूनुस मूसल की पहाड़ी पर नहीं दफ़नाए गए थे। लोग तो ये मानते हैं कि पैग़म्बर यूनुस की क़ब्रें तो पूरी दुनिया में हैं।
अमेरिका की ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और पंद्रहवीं सदी के इराक़ में ईसाईयत पर किताब लिखने वाले डॉक्टर थॉमस ए कार्लसन कहते हैं, "मध्य युग में लंबी दूरी पर स्थित लोगों से मिलना-जुलना और संपर्क करना बहुत मुश्किल होता था। सो, प्राचीन काल की बहुत सी मशहूर हस्तियों ने अलग-अलग जगहों पर अपनी कई क़ब्रें बनवाईं।"
सच तो ये है कि जिन हड्डियों को नबी यूनुस का बताया जाता है, वो दरअसल ईसाई धर्म के पादरी हेनानिशो प्रथम की हैं। हेनानिशो का ताल्लुक़ चर्च ऑफ़ ईस्ट से था। हेनानिशो को इस मठ में 701 ईस्वी में दफ़नाया गया था। पुरातत्वविद अभी ये नहीं बता पा रहे हैं कि इस्लामिक स्टेट के किए धमाके में हेनानिशो की अस्थियां तबाह होने से बचीं या नहीं। लेकिन, विस्फोट के बाद उन्हें उस दौर की कई कलाकृतियां मिली हैं, जो हज़ारों सालों से इंसानों की आंखों से ओझल थीं।
दफ़्न राजमहल
नबी यूनुस की पहाड़ी में एक राजमहल दबा हुआ था। ये किसी दौर में असीरियाई बादशाहों का राजमहल हुआ करता था। यहां पर असीरियाई फौज का अड्डा भी था। ये ईसा से भी कम से कम 700 साल पुराना राजमहल है। नबी यूनुस की पहाड़ी के नीचे एक राजमहल होने के संकेत पहली बार उन्नीसवीं सदी के मध्य में मिले थे। तब यानी 1850 के दशक में पुरातत्वविद् ऑस्टन हेनरी लेयार्ड और उनके मूसल के सहयोगी होरमुज़्द रस्साम यहां खुदाई कर रहे थे।
लेयार्ड और रस्साम उस वक़्त फ़रात नदी के उस पार खुदाई कर रहे थे। जब उन्हें नदी के किनारे कोऊनजिक नाम की जगह पर एक महल के खंडहर मिले, तो उनका ध्यान नबी यूनुस की तरफ़ गया। मगर, ये जगह बहुत पवित्र मानी जाती थी, तो उनके लिए इसकी खुदाई करना मुश्किल था।
ऑस्टेन लेयार्ड ने लिखा था, "मूसल के लोगों के पूर्वाग्रह की वजह से हम उस पवित्र माने जाने वाले ठिकाने कीआगे खुदाई नहीं कर पाए वरना उसकी पवित्रता भंग होने का ख़तरा था।"
बाद में इराक़ी सरकार ने 1989 से1990 के बीच यहां खुदाई कराई। लेकिन उस वक़्त भी मस्जिद की नींव को नुक़सान पहुंचने के डर से नबी यूनुस के टीले की ज़्यादा खुदाई नहीं की जा सकी। 1850 के दशक की ही तरह मस्जिद के इमाम ने चेताया कि खुदाई से मस्जिद को नुक़सान हो सकता है।
लेकिन, जब 2017 में पूर्वी मूसल शहर को इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े से आज़ाद कराया गया, तो पुरातत्वविदों को मस्जिद के मलबे के नीचे अजीबो-ग़रीब चीज़ें मिलीं। मलबे के नीचे ऐसी कई सुरंगें मिलीं, जिनका पहले ज़िक्र नहीं हुआ था। वहां पर 50 से ज़्यादा नई सुरंगें मिलीं। इनमें से कई तो महज़ कुछ मीटर लंबी थीं। पर, कुछ की लंबाई 20 मीटर से भी ज़्यादा थी।
इन सुरंगों के बारे में शुरुआती रिसर्च करने वाले जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर पीटर ए मिगलस कहते हैं कि मस्जिद के मलबे के नीचे की जगह में इतने सुराख़ हैं कि ये स्विस चीज़ जैसा लगती है। "ऐसा लगता है कि ज़्यादातर सुरंगों को कुदाल से खोदा गया था। मगर कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें बनाने में शायद खुरपी जैसे छोटे औज़ार का इस्तेमाल भी हुआ। सबसे बड़ी सुरंग क़रीब साढ़े तीन मीटर चौड़ी है। वहीं, सबसे छोटी सुरंग क़रीब एक मीटर चौड़ी।"
शुरुआती रिपोर्ट में बताया गया था कि इन सुरंगों को ख़ुद इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने खोदा था। लेकिन, पूर्वी मूसल शहर के रहने वालों ने बीबीसी को बताया कि इस्लामिक स्टेट ने इन सुरंगों को खोदने के लिए स्थानीय लोगों को मज़दूरी पर लिया था। वो यहां छुपी असीरियाई साम्राज्य की कलाकृतियों को लूटना चाहते थे। तेल बेच कर कमाई के अलावा इस्लामिक स्टेट की आमदनी का दूसरा बड़ा ज़रिया प्राचीन कलाकृतियों की बिक्री थी।
लंदन स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज़ के रिसर्चर डॉक्टर लामिया अल-गैलानी कहते हैं, "इन सुरंगों को देख कर लगता है कि इनका हाल भी मूसल शहर के म्यूज़ियम जैसा है।" इस्लामिक स्टेट ने मूसल शहर पर क़ब्ज़ा करने के बाद वहां के म्यूज़ियम की कलाकृतियों को 2015 में लूट लिया था।
डॉक्टर लामिया कहते हैं, "ऐसा लगता है कि इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने नबी यूनुस की सुरंगों में जो भी मिला उसे अपने क़ब्ज़े में ले लिया। फिर उसे उड़ा दिया। वो इन कलाकृतियों को बेचकर मोटा पैसा कमाने की तैयारी में थे।"
नबी यूनुस मस्जिद के नीचे की पहाड़ी में बड़े सलीक़े से लूट-पाट की गई। शायद इसका मक़सद लूट में मिले सामान को हिफ़ाज़त से रखना था। हालांकि कुछ ऐसी चीज़ें भी थीं, जो शायद इतनी बड़ी थीं कि चरमपंथी उन्हें अपने साथ नहीं ले जा सके।
यहां की कई बड़ी कलाकृतियों में से कई तो ऐसी थीं जिन्हें राजमहल की दीवारों में ही पैबस्त कर दिया गया था। इन्हें निकालने के लिए पहाड़ी पर सुरंग बनाने भर से काम नहीं चलने वाला था। इसके लिए और खुदाई करनी पड़ती। शायद इसीलिए इन्हें छोड़ दिया गया।
तीन देवियां
जब मार्च 2018 में बीबीसी के संवाददाता नबी यूनुस की सुरंगों की गहराई की पड़ताल के लिए उतरे, तो उन्होंने देखा कि पुरातत्वविदों जो नई चीज़ें खोजी थीं, उन्हें वहां से हटाया तक नहीं गया था। चूने की दीवारों के टुकड़ों और छोटे मर्तबानों के अलावा चूने के पत्थर के 30 स्लैब वहां पड़े हुए थे।
इन टुकड़ों पर असीरियाई बादशाहों एसारहैडॉन और अशुर्बनिपाल के नाम खुदे हुए थे। वहां कुछ ख़िश्तें भी थीं। इन पर सेन्नाचेरिब नाम के राजा का नाम अंकित था। मगर, सुरंगों में जो सबसे चौंकाने वाली चीज़ मिली थी, वो एक नक़्क़ाशी थी, जिसमें क़तार से खड़ी महिलाएं उकेरी गई थीं।
ये एक ऐसी खोज है, जिसने सवालों के जवाब देने के बजाय नए सवाल पैदा कर दिए हैं। ऑक्सफोर्ड के एश्मोलियन म्यूज़ियम ऑफ़आर्ट ऐंड आर्कियोलॉजी के मध्य-पूर्व विभाग का रख-रखाव करने वाले डॉक्टर पॉल कॉलिंस मानते हैं कि ये नक़्क़ाशियां अभूतपूर्व हैं।
असीरियाई दौर के राजमहलों में अब तक केवल मर्दों के बुत या नक़्क़ाशी की गई प्रतिकृतियां मिलती रही हैं। मिसाल के तौर पर एक शेर को भाला मारते हुए राजा की प्रतिमा और शिकार के बाद लौटती हुई फौज की एक टुकड़ी के बुत। लेकिन, उस दौर के अवशेषों में इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं की नक़्क़ाशीदार मूर्तियां मिलना असाधारण खोज है।
इससे पहले के अवशेषों में महिलाओं की जो नक़्क़ाशियां या बुत मिले हैं, वो उन्हें क़ैद में रखने या जंग के बाद लूटे गए माल के तौर पर दिखाई गई हैं। इस नई खोज में कमर तक की ऊंचाई वाले महिलाओं के बुत मिले हैं।
डॉक्टर पॉल कॉलिंस कहते हैं, "मुहरों और धातुओं की बनी चीज़ों के अलावा हमारे पास असीरियाई सभ्यता की कुछ ख़ास चीज़ें अब तक नहीं थीं। इनके अलावा हमारे पास उस दौर के सुबूत के तौर पर राजमहलों के खंडहर ही थे। इन में अक्सर किसी जंग में जीत को उकेरा गया था। उस दौर की ऐसी धार्मिक कृतियों में राजा के अल्लाह से संबंध को दिखाया जाता था। वो भी बहुत कम ही मिलती हैं।"
महिलाओं के इन बुतों के मिलने से जानकार इसलिए भी हैरान हैं कि असीरियाई सभ्यता के अवशेषों में ये पहली बार है जब महिलाओं की शक्लों वाले बुत मिले हैं। इससे पहले सिर्फ़ उनके होने का एहसास कराने वाली प्रतिकृतियां ही मिली थीं। न्यूयॉर्क की सेंट जॉन्स यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर एमी गैन्सेल कहती हैं, "इन मूर्तियों का मिलना बेहद दिलचस्प और सनसनीख़ेज़ है। मैंने उस दौर के अवशेषों में ऐसी चीज़ें पहली बार देखी हैं।"
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि एक जैसी दिखने वाली ये प्रतिमाएं देवियों की हैं। लेकिन डॉक्टर एमी गैन्सेल मानती हैं कि हक़ीक़त इसके उलट भी हो सकती है। इनके सिर पर सींग या ख़ास ताज नहीं हैं। असीरियाई सभ्यता के लोग अपने देवताओं की ऐसी ही कलाकृतियां बनाते थे। लेकिन, नई मिली मूर्तियों में ऐसा कुछ नहीं है। मतलब साफ़ है। ये आम असीरियाई महिलाओं के बुत हो सकते हैं।
डॉक्टर गैन्सेल मानती हैं कि महिलाओं की ये प्रतिमाएं शाही परिवार या सामंती ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने वाली हो सकती हैं। जिन्हें देवताओं को चढ़ावा ले जाते दिखाया गया है। शायद वो किसी धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेने वाली महिलाओं की प्रतिमाएं हैं।
डॉक्टर एमी गैन्सेल ने बीबीसी को बताया, "ये बहुत ही ज़्यादा दिलचस्प है। इन मूर्तियों के मिलने से ये लगता है कि नबी यूनुस में शायद महिलाओं का भी कोई पूजा का ठिकाना था। ये असीरियाई साम्राज्य में महिलाओं के स्तर और समाज में उनके धार्मिक रोल को दर्शाता है। ये एकदम अनूठा है।"
अब तक इस बात पर कोई रिसर्च नहीं की गई है कि इन नक़्क़ाशीदार प्रतिमाओं का असल मतलब क्या है। यानी अभी इन्हें लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी। सुरंगों में मिले और भी सामानों को लेकर भी यही बात सही होगी कि हड़बड़ी में कोई फ़ैसला न किया जाए। असल में कई शिलालेख और नक़्क़ाशीदार बुत उलट-पुलट अवस्था में मिले थे।
इसका ये मतलब है कि उन्हें कहीं और से ले आया गया था। बीबीसी अरबी सेवा की टीम ने जो तस्वीरें वहां की ली हैं, वो शानदार और चौंकाने वाली हैं।
लमासू
महिलाओं की नक़्क़ाशीवाली प्रतिमाओं के अलावा एक पौराणिक किरदार लमासू की उकेरी हुई नक़्क़ाशी भी नबी यूनुस में मिली है। सुरंगों में लमासू के चार बुत साबुत मिले हैं, जबकि एक के टुकड़े मिले हैं। बड़े पत्थरों के ये लमासू असीरियाई राजमहलों के द्वार पर बनाए जाते थे, ताकि वहां तक पहुंचने वाले दुश्मन को डराया जा सके और बुरी आत्माओं को वहां से भगाया जा सके।
अक्कादियान भाषा में लमासू का मतलब 'हिफ़ाज़त करनेवाली आत्मा' होता है। उनका शरीर सांड़ जैसा होता है। बाज़ जैसे पंख होते हैं और इंसान जैसा सिर होता है। लमासू के बुत इस तरह बनाए जाते थे कि वो सामने से आने वाले की निगाह में निगाह डाल कर देख रहे हों।
नबी यूनुस के नीचे खुदाई में लमासू के बुत मिलने का मतलब है कि वहां पर कुछ कमरे ऐसे थे जो दुश्मनों और 'शैतानों' से हिफ़ाज़त के तलबगार थे। ये इस को और पुख़्ता करता है कि वहां मिले खंडहर या तो शाही परिवार से ताल्लुक़ रखते थे या फिर वहां कोई पवित्र ठिकाना था।
जिस तरह इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने फरवरी 2015 में लमासू के बुत की शक़्ल बिगाड़ी थी, वो कुछ हद तक प्राचीन काल के शहर निनेवेह की लूट-पाट से मिलता है।
जब दुश्मन की फौजों ने शहर को नेस्तनाबूद कर दिया था। बादशाह के बुत को खंड-खंड कर के ये संकेत दिया जाता था कि इतिहास के पन्नों से उसका नामो-निशान मिटा दिया गया। लेकिन, लमासू की मूर्ति को सरेआम छिन्न-भिन्न कर के भी इस्लामिक स्टेट अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो सका।
नबी यूनुस से कुछ ही दूरी पर यूनुस के मकबरे के मलबे के नीचे लमासू की पत्थर की मूर्तियां इस्लामिक स्टेट की तबाही से अछूती रहीं। बच गईं। इनमें से कई मूर्तियों पर तो इंसान ने हज़ारों सालों से निगाह नहीं डाली थी। अब उनकी हालिया खोज इस बात का सबूत है कि नबी यूनुस के क़िस्से को तबाह करने की तमाम कोशिशों के बावजूद इस कहानी का कारवां आगे बढ़ता रहेगा।