- नीरज सहाय (पटना से)
लालू परिवार में महीनों से जारी सियासी विरासत की जो लड़ाई छिड़ी है वह त्रिकोणीय है। इसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव के साथ-साथ राज्यसभा सांसद मीसा भारती भी एक कोण हैं। दरअसल, पारिवारिक विरासत की लड़ाई में मीसा को तीसरा कोण माना जा रहा है।
लालू प्रसाद ने साल 2014 में अपनी डॉक्टर बिटिया मीसा भारती को पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल का उम्मीदवार बनाया था। इससे नाराज राजद के वरिष्ठ नेता रामकृपाल यादव ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। तब मीसा ने कहा था कि रामकृपाल यादव का राज्यसभा में लंबा कार्यकाल शेष है, इसलिए उन्हें टिकट नहीं मिला।
राजनीति के मैदान में मोदी लहर के बीच पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से ज़ोर आज़मा रही मीसा भारती को भाजपा के प्रत्याशी राम कृपाल यादव ने 40,322 वोट के साधारण अंतर से हराया। साल 2009 से अस्तित्व में आये इस लोकसभा क्षेत्र से पार्टी तीसरी बार और मीसा भारती दूसरी बार किस्मत आज़मा रही हैं, जिनका राज्यसभा में तीन साल से अधिक का कार्यकाल शेष है।
कितनी अलग है तेज प्रताप और मीसा की लड़ाई
जानकार बताते हैं कि साल 2014 में चुनाव हारने के बाद डॉ. मीसा भारती को बिहार विधानमंडल में कोई जगह नहीं दी गयी। इससे उपजे असंतोष को दबाने के लिए मीसा को जुलाई, 2016 में पार्टी की ओर से राज्यसभा भेजा गया। जबकि, इसके पहले लालू प्रसाद के बेटों को बतौर उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बनाकर बिहार में ही रखा गया।
लालू परिवार में छिड़े विरासत की लड़ाई पर वरिष्ठ पत्रकार एसए शाद का मानना है कि तेज प्रताप यादव और मीसा भारती की लड़ाई में फर्क है। वो कहते हैं कि तीनों का लक्ष्य सामान्य नहीं है। मीसा भारती अपने को सेफ़ ज़ोन में रखकर पार्टी में अपनी जगह बनाने के लिए लड़ रही हैं, जिससे पार्टी को बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं है। उनका विरोधाभास सीमित है और इससे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी कोई दिक्कत नहीं है।
इस साल पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी के नाम की घोषणा के पहले मीसा भारती का नाम कहीं चर्चा में नहीं था। उस दौरान तेजप्रताप यादव का मीसा के लिए खुलकर आ जाना अपेक्षित नहीं था। इससे पार्टी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा। तेज प्रताप के कदम पार्टी के संगठनात्मक स्वरुप को नुकसान पहुंचाने वाला है और इससे पार्टी के वरीय नेता भी चिंतित हैं।
विरोधियों की चाल?
वहीं वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का मानना है कि जब तक दोनों भाइयों का उदय राजनीति में नहीं हुआ था तब तक उस घर में सत्ता का एक केंद्र मीसा भारती ही थीं। हालांकि, घर में जो सत्ता की लड़ाई छिड़ी है उससे आम लोगों के बीच एक धारणा बन गई है कि मीसा बड़े भाई तेज प्रताप के साथ हैं। मनेर में भाई वीरेंद्र के खिलाफ और मीसा के समर्थन में तेज प्रताप ने एक अभियान तक शुरू कर दिया था।
परिवार में तीनों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। लेकिन ऐसी अटकलें लगती रही हैं कि मीसा को दोनों भाई बड़ी बहन तो मानते हैं, लेकिन छोटे भाई तेजस्वी व्यवहार पक्ष में मीसा को बतौर नेता स्वीकार नहीं करते हैं।
जबकि, राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं का मानना है कि राजनीति का मीसा भारती से ज्यादा अनुभव किसी भाई- बहन का नहीं है। वे लालू प्रसाद के पंद्रह साल के कार्यकाल की साक्षी रही हैं। कई नीति- योजनाओं के निर्माण को उन्होंने बनते देखा है। तब लालू जी के दोनों बेटे वयस्क नहीं थे।
अभी जो पारिवारिक कलह चल रही है उसकी वजह सब को पता है। मीसा भारती को इससे जोड़ना गलत होगा। राजनीति की समझ उनमें है। वे सुलझी हुई हैं और कोई बहन नहीं चाहेगी कि परिवार में कोई कलह हो। आज भी परिवार और पार्टी हित से जुड़े मुद्दों पर मीसा सुझाव देती हैं, लेकिन किसी बात पर अड़ती नहीं हैं।
तेजप्रताप के बारे में तो कहा जा रहा है कि वे तो खुद ही अपने को हास्यास्पद परिस्थिति में डाल रहे हैं। और कहा ये भी जाता है कि इसके पीछे कहीं-न-कहीं उनके विरोधियों का हाथ है, जो चाहते हैं कि लालू परिवार में यह राजनीतिक लड़ाई जारी रहे।