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Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 20 अगस्त 2024 (08:30 IST)

कोलकाता डॉक्टर रेप हत्या मामले पर ममता की पार्टी में बागी रुख, अभिषेक बनर्जी की चुप्पी पर भी सवाल

कोलकाता डॉक्टर रेप हत्या मामले पर ममता की पार्टी में बागी रुख, अभिषेक बनर्जी की चुप्पी पर भी सवाल - mamata banerjee
प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
क्या कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर से रेप और हत्या की घटना पर तृणमूल कांग्रेस में उभरते बग़ावती सुर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मुश्किल के सबब बनते जा रहे हैं। राजनीतिक हलकों में तो कम से कम यही धारणा बन रही है।
 
इस घटना से बन रहे चौतरफ़ा दबाव से मुक़ाबले के लिए ममता बनर्जी ख़ुद भी पार्टी के नेताओं के साथ दोषियों को फांसी की सज़ा की मांग में सड़क पर उतरी थीं। लेकिन भीतरी दबाव से निपटने की फ़िलहाल कोई रणनीति नहीं दिख रही है।
 
तृणमूल कांग्रेस में क्या चल रहा है?
इस घटना के बाद 14 अगस्त की रात को 'रीक्लेम द नाइट' अभियान के तहत होने वाले प्रदर्शन के दौरान दर्जनों लोगों की भीड़ ने आर।जी।कर अस्पताल परिसर में हमला किया था।
 
इस पर पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने जब अपने एक ट्वीट में कड़ी निंदा करते हुए कोलकाता के पुलिस आयुक्त से राजनीति का रंग देखे बिना 24 घंटे के भीतर तमाम अभियुक्तों को गिरफ्तार करने को कहा था तो राजनीति हलके में हैरत हुई थी।
 
लेकिन उसके बाद से अभिषेक बनर्जी ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है। इससे पहले भी पार्टी में नए बनाम पुराने विवाद में उनका नाम सुर्खियों में रहा था।
 
अब टीएमसी के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर राय और पूर्व सांसद शांतनु सेन ने अपनी तल्ख टिप्पणियों से पार्टी और सरकार को मुश्किल में डाल दिया है।
 
टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर राय ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जा कर कोलकाता पुलिस और आर।जी।कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के कामकाज़ पर सवाल उठाते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
 
सुखेंदु शेखर ने अमित शाह को भेजा पत्र
राय ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजे एक पत्र में हर ज़िले में तीन-तीन फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने और ऐसे मामलों का निपटारा छह महीने में करने की अपील की है।
 
अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि पीड़िता के परिजनों को एक सरकारी नौकरी और 50 लाख तक की आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए।
 
उनके कुछ कथित भ्रामक और विवादास्पद ट्वीट के कारण कोलकाता पुलिस ने उनको समन भेज कर रविवार और सोमवार को पुलिस मुख्यालय लाल बाज़ार बुलाया था। लेकिन वहां जाने की बजाय राय ने अपनी गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। उनकी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की संभावना है।
 
पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग राग अलापने वालों में सुखेंदु शेखर अकेले नहीं हैं। पार्टी के एक पूर्व सांसद शांतनु सेन ने भी इस मामले में बगावती तेवर दिखाए थे। उसके फौरन बाद उनको पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया। उन्होंने कहा था कि बीते तीन साल से उस मेडिकल कॉलेज में अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही थीं।
 
कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग में होने वाली गड़बड़ियों की जानकारी मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं। शांतनु का कहना था कि वो असमंजस में हैं कि अपनी बेटी को आरजी कर मेडिकल कॉलेज में नाइट ड्यूटी पर भेजें या नहीं? उनकी बेटी वहां पढ़ती है।
 
ख़ुद शांतनु भी उसी मेडिकल कॉलेज के छात्र रहे हैं। शांतनु सेन के साथ-साथ उनकी पत्नी काकोली सेन ने भी इस घटना की निंदा की थी।
 
हालांकि, पार्टी प्रवक्ता पद से हटाए जाने के बाद शांतनु सेन ने कहा है कि उन्होंने पार्टी या किसी नेता के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी नहीं की थी और वो अपने बयान पर अब भी कायम हैं।
 
कौन हैं सुखेंदु शेखर राय?
सुखेंदु शेखर राय साल 2009 से 2011 तक कलकत्ता हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वैसे, तो उन्होंने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति में क़दम रखा था।
 
लेकिन संसदीय सफ़र की शुरुआत हुई वर्ष 2011 में पहली बार टीएमसी के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद। वो कई पत्रिकाओं और अख़बारों में नियमित रूप से लेख भी लिखते रहे हैं।
 
तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद अगस्त 2011 में उनको पहली बार राज्यसभा का सदस्य चुना गया। उसके बाद से वो लगातार तीन बार उच्च सदन के लिए चुने जा चुके हैं।
 
इस दौरान वो राज्यसभा में पार्टी संसदीय दल के उपनेता और मुख्य सचेतक समेत विभिन्न अहम समितियों में शामिल रहे हैं।
 
आमतौर पर उनको एक प्रखर वक्ता माना जाता है। उन्होंने संसद में विभिन्न मुद्दों पर लगातार सवाल उठाए हैं। वो फ़िलहाल पार्टी के मुखपत्र 'जागो बांग्ला' के संपादक भी हैं।
 
उनको मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी का भरोसेमंद माना जाता था। लेकिन आर।जी।कर की घटना के बाद उनके तेवर बगावती हो गए हैं।
 
उन्होंने घटना की निंदा करते हुए 14 अगस्त को 'रीक्लेम द नाइट' में शामिल होने का एलान किया था। उन्होंने कहा था, "एक बेटी का पिता और एक पोती का दादा होने के नाते वो महिला सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे।''
 
उन्होंने करीब तीन घंटे तक धरना भी दिया। उसके बाद उन्होंने अपने एक एक्स पोस्ट में सीबीआई से आर।जी। कर के प्रिंसिपल संदीप घोष और कोलकाता के पुलिस आयुक्त विनीत गोयल को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की अपील की थी।
 
उन्होंने आरोप लगाया था कि घटना के तीन दिन बाद ही खोजी कुत्तों को मौक़े पर ले जाया गया था। हालांकि कोलकाता पुलिस ने फौरन उनके इस आरोप का खंडन कर दिया था। उनकी इस टिप्पणी का जहाँ विपक्ष ने स्वागत किया, वहीं तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया।

विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा था, यह मामला तृणमूल कांग्रेस तक सीमित नहीं है। सुखेंदु राय के फ़ैसले के लिए मैं उनका आभार जताता हूं। कांग्रेस और सीपीएम ने भी राय के बयान का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे साफ़ है कि कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर है।
 
दूसरी ओर, कुणाल घोष ने अपने एक ट्वीट में कहा, "मैं भी आर।जी। कर की घटना में न्याय चाहता हूं। लेकिन पुलिस आयुक्त के ख़िलाफ़ की गई टिप्पणी की निंदा करता हूं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की ओर से ऐसी टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। "
 
पुलिस ने भेजा सुखेंदु को समन
इससे साफ़ है कि सुखेंदु शेखर राय के बाग़ी सुर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को भारी सांसत में डाल दिया है। यही वजह है कि पुलिस ने उनको फौरन समन भेज दिया।
 
रविवार को नहीं पहुंचने पर उनको दोबारा सोमवार को पुलिस मुख्यालय बुलाया गया। लेकिन वहां जाने की बजाय उन्होंने अपनी गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। इस मामले पर मंगलवार को सुनवाई की संभावना है।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी के बिना पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी के किसी वरिष्ठ सांसद को एक ट्वीट के लिए समन नहीं भेज सकती थी।
 
सुखेंदु शेखर ने इस मुद्दे पर पार्टी में जारी उठापटक पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि उनको जो कहना है वह अदालत में ही कहेंगे।
 
राय ने सार्वजनिक तौर पर भले कुछ नहीं कहा हो, रविवार को अपने एक एक्स पोस्ट में रवींद्रनाथ टैगोर के गीत 'आमि भय करबो ना (मैं डरूंगा नहीं)' गीत पोस्ट कर उन्होंने साफ़ कर दिया है कि वो इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटेंगे।
पुलिस के समन और पार्टी की आलोचना के बावजूद उनका बगावती सुर धीमा नहीं हुआ है।
 
रविवार को ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब के हज़ारों समर्थकों ने जब साल्टलेक स्टेडियम के सामने विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया तो उसके ख़िलाफ़ भी राय ने अपने एक ट्वीट में फुटबाल समर्थकों से विरोध प्रदर्शन तेज़ करने की अपील की है।
 
विश्लेषक क्या कह रहे हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल की आधिकारिक लाइन उसके मुखपत्र और उसके संपादक के रवैए से तय होती है। लेकिन इस मामले में मुखपत्र के संपादक और राजनीतिक दल का रवैया परस्पर विरोधाभासी है। यह सत्तारूढ़ पार्टी के हित में नहीं है।
 
यह दिलचस्प है कि 15 अगस्त को मुखपत्र 'जागो बांग्ला' के अंक में जहां महिलाओं की ओर से आधी रात को हुए आंदोलन और प्रदर्शन की निंदा की गई थी वहीं उसके संपादक निजी हैसियत से खुद तीन घंटे तक धरने पर बैठे थे।
 
लेकिन सुखेंदु जैसे वरिष्ठ नेता ने आख़िर अचानक पार्टी नेतृत्व के ख़िलाफ़ बग़ावती रवैया क्यों अपना लिया? इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिलता।
 
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर सुकुमार पाल कहते हैं, "वजह चाहे जो भी रही हो, सुखेंदु के बगावती तेवर ने सत्तारूढ़ पार्टी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मुश्किल में तो डाल ही दिया है।"
 
ममता की मुश्किल
क्या इन नेताओं के बागी तेवरों से ममता के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता इस घटना के बाद से ही भारी दबाव में हैं।
 
उन्होंने अब तक न तो आधी रात को हजारों महिलाओं के सड़कों पर उतरने पर कोई टिप्पणी की है और न ही इन नेताओं के बागी रवैए पर।
 
उल्टे उन्होंने भी पदयात्रा का फैसला किया था। प्रोफेसर पाल कहते हैं, फिलहाल वो इस मामले से रणनीतिक रूप से निपटने की राह पर बढ़ रही हैं। मिसाल के तौर पर शांतनु सेन को पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया और सुखेंदु को कोलकाता पुलिस से समन भिजवा दिया गया।
 
राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी मानती हैं कि ममता फिलहाल चौतरफ़ा दबाव में हैं। वो अब तक बाहरी दबाव से निपटने की ही ठोस रणनीति नहीं बना सकी हैं।
 
अब पार्टी के भीतर से उभरने वाले बगावती सुर उनका सिरदर्द लगातार बढ़ा रहे हैं। इसके ऊपर से अभिषेक बनर्जी की इस मामले पर अचानक चुप्पी भी रहस्यमय नज़र आ रही है। इससे साफ है कि पार्टी में सब कुछ सही नहीं चल रहा है।
 
क्या पार्टी पर ममता की पकड़ ढीली हो रही है? इस पर उनका कहना था, "फिलहाल ऐसा कहना सही नहीं होगा। ममता की पकड़ अब भी कायम है। लेकिन पहले भी कुछ नेता अक्सर पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाते रहे हैं। कुणाल घोष समेत ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।"
 
वरिष्ठ पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं, "ममता के लिए यह मामला दोधारी तलवार की तरह है। मौजूदा परिस्थिति में वो अचानक किसी भी नेता के ख़िलाफ़ कोई सख़्त कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं हैं। उनको लगता है कि इससे विपक्ष को ही फ़ायदा होगा। इसलिए वो फूंक-फूंक कर क़दम बढ़ा रही हैं।"
 
उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर इस घटना से संबंधित कई कथित भ्रामक खबरों ने सरकार और पुलिस की छवि पर बट्टा लगाते हुए मुश्किलें बढ़ाई हैं।
 
इससे आम लोगों में नाराज़गी बढ़ी है। यही वजह है कि कोलकाता पुलिस ऐसे एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की शिनाख्त कर उनको समन भेजने और पूछताछ करने में जुटी है। इसी कवायद के तहत सांसद राय समेत कई डॉक्टरों को समन भेजे गए हैं।
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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