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Last Updated : शुक्रवार, 19 जुलाई 2019 (05:56 IST)

कारगिल: 15 गोलियां लगने के बाद भी लड़ते रहे परमवीर योगेंद्र

कारगिल: 15 गोलियां लगने के बाद भी लड़ते रहे परमवीर योगेंद्र - Kargil war
- रेहान फ़ज़ल
 
3 जुलाई, 1999 को टाइगर हिल पर बर्फ़ पड़ रही थी। रात साढ़े नौ बजे ऑप्स रूम में फ़ोन की घंटी बजी। ऑपरेटर ने कहा कि कोर कमांडर जनरल किशन पाल मेजर जनरल मोहिंदर पुरी से तुरंत बात करना चाहते हैं।
 
दोनों के बीच कुछ मिनटों तक चली बातचीत के बाद पुरी ने 56 माउंटेन ब्रिगेड के डिप्टी कमांडर एसवीई डेविड से कहा, 'पता लगाओ क्या टीवी रिपोर्टर बरखा दत्त आसपास मौजूद हैं? और क्या वो टाइगर हिल पर होने वाली गोलीबारी की लाइव कमेंटरी कर रही हैं?'
 
लेफ़्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी याद करते हैं, 'जैसे ही मुझे पता चला कि बरखा दत्त टाइगर हिल पर हमारे हमले की लाइव कमेंट्री दे रही हैं, मैं उनके पास जा कर बोला, इसे तुरंत रोक दीजिए। हम नहीं चाहते कि पाकिस्तानियों को इसकी हवा लगे।"
 
जनरल पुरी ने कहा, "मैंने इस हमले की जानकारी सिर्फ़ अपने कोर कमांडर को दी थी। उन्होंने इसके बारे में सेना प्रमुख को भी नहीं बताया था। इसलिए मुझे ताज्जुब हुआ कि बरखा दत्त इतने संवेदनशील ऑपरेशन की लाइव कमेंट्री कैसे कर रही हैं?"
 
टाइगर हिल पर कब्ज़े का ऐलान
4 जुलाई को उस वक्त के रक्षा मंत्री जार्ज फ़र्नांडिस ने टाइगर हिल पर कब्ज़े की घोषणा की, उस समय तक भारतीय सैनिकों का उस पर पूरी तरह कब्ज़ा नहीं हुआ था।
 
टाइगर हिल की चोटी तब भी पाकिस्तानियों के कब्ज़े में थी। उस समय भारतीय सेना के दो बहादुर युवा अफ़सर लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह और कैप्टन सचिन निंबाल्कर टाइगर हिल की चोटी से पाकिस्तानी सैनिकों को हिलाने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए थे। वो अभी चोटी से 50 मीटर नीचे ही थे कि ब्रिगेड मुख्यालय तक संदेश पहुंचा, 'दे आर शॉर्ट ऑफ़ द टॉप।'
 
श्रीनगर और ऊधमपुर होता हुआ जब तक ये संदेश दिल्ली पहुंचा उसकी भाषा बदल कर हो चुकी थी, 'दे आर ऑन द टाइगर टॉप।' रक्षा मंत्री तक ये संदेश उस समय पहुंचा जब वो पंजाब में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आव देखा न ताव, उसकी दोबारा पुष्टि किए बग़ैर वहीं ऐलान कर दिया कि टाइगर हिल पर अब भारत का कब्ज़ा हो गया है।
 
पाकिस्तान का जवाबी हमला
जनरल मोहिंदर पुरी बताते हैं कि उन्होंने जब कोर कमांडर जनरल किशनपाल को इसकी ख़बर दी तो उन्होंने पहला वाक्य कहा, 'जाइए, फ़ौरन जाकर शैंपेन में नहा लीजिए।'
 
उन्होंने सेनाध्यक्ष जनरल मलिक को ये ख़बर सुनाई और उन्होंने मुझे फ़ोन कर इस सफलता पर बधाई दी। लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई थी। टाइगर हिल की चोटी पर जगह इतनी कम थी कि वहाँ पर कुछ जवान ही रह सकते थे। पाकिस्तानियों ने अचानक ढलानों पर ऊपर आ कर भारतीय जवानों पर जवाबी हमला किया।
 
उस वक़्त बादलों ने चोटी को इस कदर जकड़ लिया था कि भारतीय सैनिकों को पाकिस्तानी सैनिक दिखाई नहीं दे रहे थे। इस हमले में चोटी पर पहुंच चुके सात भारतीय जवान मारे गए।
 
मिराज 2000 की भीषण बमबारी
16700 फ़ीट ऊँची टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने की पहली कोशिश मई में की गई थी लेकिन उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। तब ये तय किया गया था कि जब तक पास की चोटियों पर कब्ज़ा नहीं हो जाता, टाइगर हिल पर दूसरा हमला नहीं किया जाएगा।
 
3 जुलाई के हमले से पहले भारतीय तोपों की 100 बैट्रियों ने एक साथ टाइगर हिल पर गोले बरसाए। उससे पहले मिराज 2000 विमानों ने 'पेव वे लेज़र गाइडेड' बम गिरा कर पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त किया। इससे पहले दुनिया में कहीं भी इतनी ऊँचाई पर इस तरह के हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ था।
 
90 डिग्री की सीधी चढ़ाई
इलाके के मुआयने के बाद भारतीय सैनिकों ने पूर्वी ढलान से ऊपर जाने का फैसला लिया। ये करीब करीब 90 डिग्री की सीधी और लगभग असंभव सी चढ़ाई थी। लेकिन सिर्फ़ ये ही एक रास्ता था जिस पर जा कर पाकिस्तानियों को चकमा दिया जा सकता था।
 
सैनिकों ने रात 8 बजे अपना बेस कैंप छोड़ा और लगातार चढ़ने के बाद अगले दिन सुबह 11 बजे वो टाइगर हिल की चोटी के बिल्कुल नज़दीक पहुंच गए। कई जगह ऊपर चढ़ने के लिए उन्होंने रस्सियों का सहारा लिया। उनकी बंदूकें उनकी पीठ से बँधी हुई थीं।
 
वरिष्ठ पत्रकार हरिंदर बवेजा अपनी किताब 'अ सोल्जर्स डायरी- कारगिल द इनसाइड स्टोरी' में लिखती हैं, "एक समय ऐसा आया कि उनके लिए पाकिस्तानी सैनिकों की निगाह से बचे रहना असंभव हो गया। उन्होंने भयानक गोलीबारी शुरू कर दी और भारतीय जवानों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। दो भारतीय जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। पाकिस्तानियों ने पीछे हटते हुए भारतीय सैनिकों पर भारी पत्थर भी गिराने शुरू कर दिए।"
 
योगेंद्र सिंह यादव का जीवट
5 जुलाई को 18 ग्रनेडियर्स के 25 सैनिक फिर आगे बढ़े। पाकिस्तानियों ने उन पर ज़बरदस्त गोलीबारी की। पाँच घंटे तक लगातार गोलियाँ चलीं। 18 भारतीय सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब वहाँ सिर्फ़ 7 भारतीय सैनिक बचे थे।
 
'द ब्रेव' लिखने वाली रचना बिष्ट रावत बताती हैं, "साढ़े ग्यारह बजे करीब 10 पाकिस्तानी ये देखने नीचे आए कि भारतीय सैनिक ज़िंदा बचे हैं या नहीं। हर भारतीय सैनिक के पास सिर्फ़ 45 राउंड गोलियाँ बची थीं। उन्होंने उन्हें पास आने दिया। उन लोगों ने क्रीम कलर के पठानी सूट पहन रखे थे। जैसे ही वो उनके पास आए सातों भारतीय सैनिकों ने फ़ायरिंग शुरू कर दी"।
 
उनमें से एक थे बुलंदशहर के रहने वाले 19 साल के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव। वे याद करते हैं, "हमने पाकिस्तानियों पर बहुत पास से गोली चलाई और उनमें से आठ को नीचे गिरा दिया, लेकिन उनमें से दो लोग भागने में सफल हो गए। उन्होंने ऊपर जाकर अपने साथियों को बताया कि नीचे हम सिर्फ़ सात हैं।"
 
लाशों पर भी गोलियाँ चलाईं
योगेंद्र आगे बताते हैं, "थोड़ी देर में 35 पाकिस्तानियों ने हम पर हमला किया और हमें चारों तरफ़ से घेर लिया। मेरे सभी छह साथी मारे गए। मैं भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों की लाशों के बीच पड़ा हुआ था। पाकिस्तानियों का इरादा सभी भारतीयों को मार डालने का था इसलिए वे लाशों पर भी गोलियां चला रहे थे।"
"मैं अपनी आँखें बंद कर अपने मरने का इंतज़ार करने लगा। मेरे पैर, बाँह और शरीर के दूसरे हिस्सों में में करीब 15 गोलियाँ लगीं थीं। लेकिन मैं अभी तक ज़िंदा था।" इसके बाद जो हुआ वह किसी फ़िल्मी दृश्य से कम नाटकीय नहीं था।
 
योगेंद्र बताते हैं, "पाकिस्तानी सैनिकों ने हमारे सारे हथियार उठा लिए। लेकिन वो मेरी जेब में रखे ग्रेनेड को नहीं ढूँढ़ पाए। मैंने अपनी सारी ताकत जुटा कर अपना ग्रेनेड निकाला उसकी पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दिया।"
 
"वो ग्रेनेड एक पाकिस्तानी सैनिक के हेलमेट पर गिरा। उसके चिथड़े उड़ गए। मैंने एक पाकिस्तानी सैनिक की लाश के पास पड़ी हुई पीका रायफ़ल उठा ली थी। मेरी फ़ायरिंग में पाँच पाकिस्तानी सैनिक मारे गए।"
 
नाले में कूदे
तभी योगेंद्र ने सुना कि पाकिस्तानी वायरलेस पर कह रहे थे कि यहाँ से पीछे हटो और 500 मीटर नीचे भारत के एमएमजी बेस पर हमला करो। तब तक योगेंद्र का बहुत खून बह चुका था और उन्हें होश में बने रहने में भी दिक्कत आ रही थी। वहीं पर एक नाला बह रहा था। वो उसी हालत में उस नाले में कूद गए। पाँच मिनट में वो बहते हुए 400 मीटर नीचे आ गए।
 
वहाँ भारतीय सैनिकों ने उन्हें नाले से बाहर निकाला। उस समय तक यादव का इतना खून बह गया था कि उन्हें दिखाई तक नहीं दे रहा था। लेकिन जब उनके सीओ खुशहाल सिंह चौहान ने पूछा, क्या तुम मुझे पहचान रहे हो? यादव ने टूटती आवाज़ में जवाब दिया, 'साहब मैं आपकी आवाज़ पहचानता हूँ। जय हिंद साहब।'
 
योगेंद्र ने खुशहाल सिंह चौहान को बताया कि पाकिस्तानियों ने टाइगर हिल खाली कर दिया दिया है और वो अब हमारे एमएमजी बेस पर हमला करने आ रहे हैं। इसके बाद यादव बेहोश हो गए। कुछ देर बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने जब वहाँ हमला किया तो भारतीय सैनिक उसके लिए पहले से तैयार थे। यादव को उनकी असाधारण वीरता के लिए भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र दिया गया।
 
भारतीय सेना की इज़्ज़त का सवाल
उधर नीचे से रेडियो संदेशों की झड़ी लगी हुई थी। कारण था कि टाइगर हिल पर जीत के ऐलान की ख़बर ब्रिगेड मुख्यालय तक पहुंच गई थी। ब्रिगेड के आला अधिकारी जल्द से जल्द टाइगर हिल की चोटी पर भारतीय झंडा फहराना चाहते थे, चाहे इसके लिए कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े।
 
ये भारतीय सेना के लिए इज़्ज़त का सवाल था क्योंकि दुनिया को बताया जा चुका था कि टाइगर हिल उनके कब्ज़े में आ चुका है। इस बीच 18 ग्रनेडियर्स की एक कंपनी कॉलर चोटी पर पहुंच गई, जिसकी वजह से पाकिस्तानियों को अपने इलाके की रक्षा करने के लिए कई हिस्सों में बंटना पड़ा।
 
हरिंदर बवेजा अपनी किताब में लिखती हैं, "भारतीय इसी मौके का इंतज़ार कर रहे थे। इस बार 23 साल के कैप्टेन सचिन निंबाल्कर के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने तीसरा हमला बोला। पाकिस्तानी इतनी जल्दी इस हमले की उम्मीद नहीं कर रहे थे। निंबाल्कर को रास्तों का पूरा पता था, क्योंकि वो दो बार पहले ऊपर और फिर नीचे जा चुके थे। उनके जवान बिना कोई आवाज़ किए हुए टाइगर हिल की चोटी पर पहुंच गए और मिनटों में उन्होंने टाइगर हिल पर पाकिस्तानियों के आठ बंकरों में से एक बंकर पर कब्ज़ा कर लिया।"
 
यहाँ पर पाकिस्तानियों से आमने-सामने की लड़ाई शुरू हुई। अब उन्हें ऊँचाई का कोई फ़ायदा नहीं रह गया था। रात डेढ़ बजे टाइगर हिल की चोटी भारतीय सैनिकों के नियंत्रण में थी लेकिन टाइगर हिल के दूसरे हिस्सों पर अब भी पाकिस्तानी सैनिक डटे हुए थे।
 
जीत की बड़ी क़ीमत
तभी भारतीय सैनिकों को नीचे लड़ रहे अपने साथियों की खुशी की चीख़ सुनाई दी। शायद उन तक उनकी जीत का रेडियो संदेश पहुंच चुका था। अब उन्हें चिंता नहीं थी कि रक्षा मंत्री को दुनिया के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा। भारतीय सैनिक थक कर चूर हो चुके थे। लेफ़्टिनेंट बलवान सदमे में थे। जब उन्होंने टाइगर हिल पर हमला बोला था तो उनके साथ 20 जवान थे। अब सिर्फ़ 2 जवान जीवित बचे थे।
 
बाकी या तो बुरी तरह से ज़ख्मी थे या अपनी जान गँवा चुके थे। कुछ लोगों ने हथियारों को उस ज़ख़ीरे का जायज़ा लेना शुरू कर दिया जो पाकिस्तानी वहाँ छोड़ कर गए थे। वो देख कर उनकी रूह काँप गई। वो ज़ख़ीरा इतना बड़ा था कि पाकिस्तानी वहाँ हफ़्तों तक बिना रसद के लड़ सकते थे। भारी हथियार और 1000 किलो की 'लाइट इंफ़ैंट्री गन' हैलिकॉप्टरों के बग़ैर वहाँ पहुंचाई नहीं जा सकती थी।
 
पाकिस्तानी युद्धबंदी
टाइगर हिल पर हमले से दो दिन पहले भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना का एक जवान ज़िंदा पकड़ लिया था। उसका नाम मोहम्मद अशरफ़ था। वो बुरी तरह से घायल था।
 
ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा याद करते हैं, "मैंने अपने जवानों से कहा कि उसे मेरे पास नीचे भेजो। मैं उससे बात करना चाहता हूँ। जब उसको मेरे पास लाया गया तो मैं अपनी ब्रिगेडियर की वर्दी पहने हुए था। मेरे सामने ही उसके आँखों की पट्टी खोली गई। वो मुझे देख कर रोने लगा।"
 
"मैं ये देखकर बहुत हैरान हुआ और मैंने उससे पंजाबी में पूछा, 'क्यों रो रेया तू?' उसका जवाब था 'मैंने कमांडर नहीं वेख्या ज़िंदगी दे विच। पाकिस्तान में वो कभी हमारे पास नहीं आते। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है कि आप इतने बड़े अफ़सर हो और मुझसे मेरी ज़ुबान में बात कर रहे हो। आपने जिस तरह मेरा इलाज कराया है और मुझे खाना खिलाया है, मेरे लिए ये बहुत अचरज की बात है।"
 
सम्मान के साथ लौटाए गए शव
पहाड़ों की लड़ाई में हताहतों की संख्या बहुत होती है क्योंकि गोली लग जाने के बाद घायल जवान को नीचे लाने में बहुत समय लगता है और तब तक बहुत ख़ून बह जाता है। पाकिस्तानी सेना के भी बहुत से जवान मारे गए थे। जनरल मोहिंदर पुरी बताते हैं कि 'कई पाकिस्तानी जवानों को भारतीय मौलवियों की उपस्थिति में पूरे इस्लामी तरीके से दफ़नाया गया।'
 
शुरू में वो ये कहते हुए अपने शव स्वीकार नहीं कर रहे थे कि ये लोग पाकिस्तानी सेना के नहीं हैं। लेकिन बाद में वो अपने शव वापस लेने के लिए तैयार हो गए। ब्रिगेडियर बाजवा एक किस्सा सुनाते हैं, ''टाइगर हिल पर जीत के कुछ दिन बाद मेरे पास पाकिस्तान की तरफ़ से एक रेडियो संदेश आया। उधर से आवाज़ आई 'मैं सीओ 188 एफ़एफ़ बोल रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप हमारे मारे गए साथियों के शव वापस कर दें।"
 
इस ब्रिगेडियर बाजवा ने पूछा कि बदले में वे क्या कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि हम वापस चले जाएंगे और आपको हमें हटाने के लिए हमला नहीं करना पड़ेगा।
 
बाजवा याद करते हैं, "हमने बीच लड़ाई के मैदान में बहुत सम्मान के साथ उनके शवों को पाकिस्तानी झंडों में लपेटा। मैंने उनके सामने शर्त रखी कि आप को शव लेने के लिए अपने स्ट्रेचर लाने होंगे। वो स्ट्रेचर ले कर आए। हमने उनके शवों को पूरी सैनिक रस्म के साथ वापस किया। इस पूरी कार्रवाई की फ़िल्मिंग की गई जिसे आज भी यू-ट्यूब पर देखा जा सकता है।"
 
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