शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Is Yogi Adityanath chellangeing PM Modi and Amit Shah
Written By BBC Hindi
Last Updated : गुरुवार, 3 जून 2021 (12:47 IST)

योगी आदित्यनाथ क्या मोदी-शाह को सीधे चुनौती दे रहे हैं?

योगी आदित्यनाथ क्या मोदी-शाह को सीधे चुनौती दे रहे हैं? - Is Yogi Adityanath chellangeing PM Modi and Amit Shah
समीरात्मज मिश्र, बीबीसी हिन्दी के लिए
 
उत्तर प्रदेश में पिछले दो हफ़्ते से जिस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के केंद्रीय नेताओं की बैठकों का दौर चल रहा है, उससे यूपी की राजनीति में हलचल मची हुई है। सरकार और संगठन में बदलाव की संभावनाओं के बीच दोनों स्तरों पर नेतृत्व परिवर्तन तक की चर्चा ज़ोर-शोर से हो रही है। हालांकि जानकारों को इसके बावजूद किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं दिख रही है।
 
इन सबके बीच यूपी की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम फिर चर्चा में आ गया है जिसे चार महीने पहले उल्का पिंड की भांति यूपी की राजनीति में उतारा गया था। उनके ज़रिए बड़े बदलाव की संभावना भी जताई गई थी। यह नाम है पूर्व नौकरशाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी माने जाने वाले अरविंद कुमार शर्मा।
 
कौन हैं अरविंद कुमार शर्मा?
शर्मा ने इसी साल जनवरी में अपने रिटायरमेंट से महज़ कुछ दिन पहले इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए और देखते ही देखते उन्हें बीजेपी ने विधान परिषद के ज़रिए सदन में भी भेज दिया। इस वजह से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा उठ खड़ी हुई थी कि राज्य सरकार में 'बड़े बदलाव' की तैयारी हो रही है।
 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने यह तक कह दिया कि अरविंद शर्मा मुख्यमंत्री भी बनाए जा सकते हैं। हालांकि उनके डिप्टी सीएम या फिर गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ कैबिनेट मंत्री बनने की चर्चाएं ज़्यादा विश्वसनीय तरीक़े से की गईं।

इस काल्पनिक बदलाव की वजह सीधे तौर पर यह बताई गई कि इसका मक़सद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभाव को कम करना या फिर उनकी कथित मनमानीपूर्ण कार्यशैली पर रोक लगाना है। लेकिन चार महीने बीत जाने के बावजूद अरविंद शर्मा को न तो मंत्रिपरिषद में जगह दी गई और न ही कोई अन्य महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी।

सीधे मोदी को दी योगी ने चुनौती?
यूपी में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "मुख्यमंत्री ने साफ़तौर पर कह दिया है कि अरविंद शर्मा को कोई महत्वपूर्ण विभाग तो छोड़िए, कैबिनेट मंत्री भी बनाना मुश्किल है। राज्य मंत्री से ज़्यादा वो उन्हें कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं।"
 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस क़दम को सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अवहेलना और उन्हें चुनौती देने के तौर पर देखा जा रहा है।

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि 'पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी आदित्यनाथ को यह अक्सर याद दिलाता रहता है कि वो मुख्यमंत्री किसकी वजह से बने हैं और मौक़ा पाने पर योगी आदित्यनाथ भी यह जताने में कोई कसर नहीं रखते कि नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में प्रधानमंत्री के विकल्प वो ही हैं।'

बीजेपी के कई नेता इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि अक्सर कुछ लोगों द्वारा योगी आदित्यनाथ को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने या फिर कुछ छिट-पुट संगठनों और लोगों की ओर से सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर 'पीएम कैसा हो, योगी जी जैसा हो' सरीखे अभियान चलाने के पीछे योगी आदित्यनाथ के क़रीबियों का भी हाथ रहता है।

योगी को आरएसएस का समर्थन है?
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र योगी की ताक़त के पीछे आरएसएस का समर्थन बताते हैं। वो कहते हैं, "यूपी बड़ा राज्य है। यहां का मुख्यमंत्री ख़ुद को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखने ही लगता है। चाहे वो क्षेत्रीय दलों के नेता हों या फिर बीजेपी के। दूसरे, योगी आदित्यनाथ के साथ संघ है। तमाम विरोधों के बावजूद संघ की वजह से ही वो मुख्यमंत्री बने थे और अभी भी वो संघ की पसंद हैं। अरविंद शर्मा को पैराशूट की तरह से यहां भेजने के क़दम को भी आरएसएस ठीक नहीं मानता।"
 
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार अपना कार्यकाल अब लगभग पूरा करने वाली है लेकिन राज्य में सीधे मुख्यमंत्री बदलने की आशंकाएं जितनी आज बलवती दिख रही हैं, उतनी पिछले चार साल में कभी नहीं दिखीं, या यूँ कहें कि इससे पहले ऐसी चर्चाएं शुरू होने के साथ ही दम तोड़ देती थीं।

चाहे क़ानून-व्यवस्था को लेकर अक्सर सरकार के घिरने का मामला रहा हो या फिर बड़ी संख्या में नाराज़ बीजेपी विधायकों के विधानसभा में धरने पर बैठने का मामला रहा हो।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि आरएसएस और बीजेपी संगठन की बैठकों में पिछले चार साल में यह पहली बार हो रहा है जब कुछ मंत्रियों को अकेले-अकेले बुलाकर फ़ीडबैक लिया जा रहा है।

उनके मुताबिक़, "यह मामूली बात नहीं है। मंत्रियों, विधायकों की जिस तरह की शिकायतें हैं कि उन्हें कोई महत्व नहीं दिया जाता है, सिर्फ़ कुछ चुनिंदा अधिकारी ही पूरी सरकार चला रहे हैं, ऐसे में यह तो तय है कि योगी

आदित्यनाथ की कार्यशैली को लेकर संघ में भी और बीजेपी में भी मंथन शुरू हो गया है। यह भी सही है कि योगी आदित्यनाथ की ओर से भी अपनी ताक़त का एहसास कराया जाता रहता है। अब यह स्थिति है कि बीजेपी योगी को हटा भी नहीं पा रही है और उसके नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही है।"

नाख़ुशी की वजह क्या है?
अरविंद शर्मा मामले में योगी आदित्यनाथ के रवैये को लेकर बीजेपी में कोई भी नेता या प्रवक्ता कुछ भी कहने को तैयार नहीं है लेकिन इस बात को सभी लोग स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी में अंदरख़ाने सब कुछ ठीक नहीं है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी नाराज़गी को सार्वजनिक करने वाले मंत्री और विधायक भी इस मुद्दे पर बात करने से कतरा रहे हैं लेकिन नाम न छापने की शर्त पर काफ़ी कुछ बता देते हैं।
 
ऐसे ही एक विधायक का कहना था, "कोविड संक्रमण के दौरान राज्य सरकार की कार्यशैली से केंद्रीय नेतृत्व बहुत नाख़ुश है। सार्वजनिक तौर पर भले ही इस प्रकरण को मैनेज करने की कोशिश की गई लेकिन उसके बाद की बैठकें इसी का नतीजा हैं। पंचायत चुनाव के नतीजों से भी योगी बैकफ़ुट पर हैं।"

पिछले हफ़्ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले भी यूपी की राजनीतिक नब्ज़ टटोलने के लिए लखनऊ आए थे। इससे तीन दिन पहले, दिल्ली में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ दत्तात्रेय होसबाले की अहम बैठक हुई थी।

इस बैठक में यूपी बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल भी शामिल हुए थे। यूपी की राजनीति पर चर्चा के लिए हुई इस अहम बैठक में न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और न ही प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को बुलाया गया था। जानकारों की मानें तो सीएम योगी आदित्यनाथ को यह बात बुरी लगी थी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक बड़े पदाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "होसबाले का लखनऊ आना और दो दिन रुकने के बावजूद योगी का उनसे न मिलना इसी का नतीजा था। होसबाले जी का दो दिन रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं था लेकिन योगी जी उस दिन सोनभद्र चले गए थे इसलिए उन्हें अपना प्रवास बढ़ाना पड़ा।

होसबाले जी अगले दिन भी इसीलिए रुके रहे लेकिन योगीजी नहीं आए और वहीं से पहले मिर्ज़ापुर और फिर गोरखपुर चले गए। होसबाले ने उनके दफ़्तर में पता भी किया कि मैं रुकूं या मुंबई चला जाऊं? योगीजी का कोई जवाब नहीं मिला तो वो लखनऊ से मुंबई चले गए।"

इस घटनाक्रम की पुष्टि बीजेपी के भी कुछ नेताओं ने की है और इसका सीधा राजनीतिक अर्थ यही निकाला जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ केंद्र सरकार या बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के रबर स्टैंप की तरह नहीं रहना चाहते और केंद्रीय नेतृत्व को यह स्पष्ट भी कर देना चाहते हैं।

कितने ताक़तवर हैं सीएम योगी?
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि योगी फ़िलहाल केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं, कोशिश भले ही करें।

योगेश मिश्र कहते है, "योगी अचीवर नहीं हैं, नामित हैं। सीएम की कुर्सी उन्हें दी गई है, उनके नाम पर चुनाव नहीं जीता गया है। यहां तक कि वो पार्टी के कोई पदाधिकारी भी नहीं थे। इसलिए वो केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती नहीं दे सकते हैं।

केंद्रीय नेतृत्व का संकट यह है कि यदि 2022 में यूपी चुनाव हारे तो इसका असर साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। पश्चिम बंगाल हारने के बाद यह डर और ज़्यादा बढ़ गया है। केंद्रीय नेतृत्व इसलिए यूपी में अगले विधानसभा चुनाव में कोई जोख़िम नहीं ले सकता।"

हालांकि कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ के पक्ष में न तो बहुत ज़्यादा विधायक हैं, न मंत्री हैं और न ही संघ इतनी मज़बूती से उनके साथ खड़ा है कि हर स्थिति में उनकी तरफ़दारी करे।
 
संघ के पदाधिकारियों को भी ब्यूरोक्रेसी को लेकर वैसी ही शिकायत है, जैसी कि पार्टी के विधायकों को है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक़, पार्टी और संघ बैठकों के ज़रिए ये मूल्यांकन कर रहे हैं कि योगी को हटाना कितना नुक़सान पहुँचा सकता है और उस नुक़सान की भरपाई कैसे हो सकती है?

सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ का सबसे मज़बूत पक्ष यह है कि उन पर व्यक्तिगत तौर पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है और न ही किसी अन्य तरह का कोई दूसरा व्यक्तिगत आक्षेप है। उनके मुताबिक़, इस मज़बूत पक्ष के आगे कई अन्य कमज़ोरियां दब जाती हैं।
ये भी पढ़ें
हिंसा का शिकार हुए बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस : International Day of Innocent Children Victims of Aggression