- नितिन श्रीवास्तव (बुलंदशहर से)
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पिछले तीन दिनों से कथित गोहत्या के बाद हुई हिंसा को लेकर तनाव बना हुआ है। हिंसा में एक पुलिस अफ़सर और एक स्थानीय व्यक्ति की हत्या हो चुकी है और कई लोग अभी भी गंभीर रूप से घायल हैं।
तीन लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है और 20 से ज़्यादा लोगों की तलाश जारी है। इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आख़िर एकाएक बुलंदशहर के एक छोटे से गाँव में गायों के इतने कंकाल एक साथ कैसे पहुँचे?
गाँव का जायज़ा
बुलंदशहर से हापुड़ जाने वाले राजमार्ग पर क़रीब आधे घंटे की दूरी पर चिंगरावठी पुलिस चौकी पड़ती है जो सोमवार को हुई हिंसा का केंद्र थी। इससे सटी हुई एक पतली सी सड़क खेतों के भीतर जाती है और क़रीब डेढ़ किलोमीटर बाद आप महाव गाँव पहुँच जाते हैं।
ये वही गाँव है जहाँ जानवरों के या स्थानीय लोगों के मुताबिक़ गायों के कंकाल बरामद हुए थे। गाँव में एक भयावह ख़ामोशी है क्योंकि आधे से ज़्यादा घर बंद पड़े हैं। लगभग सभी घरों के इर्द-गिर्द मवेशी दिखते हैं और भागीरथ नाम के एक व्यक्ति ने हमारे इस सवाल का जवाब दिया कि, क्या किसी की गायें कम हैं या लापता चल रही हैं।
उन्होंने कहा, "यहाँ तो सभी के मवेशी हैं। मेरी समझ से किसी के भी मवेशी कम नहीं हैं।"... तो फिर रविवार की उस रात एकाएक क़रीब एक दर्ज़न गायों के कंकाल कहाँ से आए? ये पूछे जाने पर वो कहते हैं,"सुना तो यही है कि गायों के झुंड को काट डाला गया था वहाँ। क्या पता गायें कहाँ की थीं।"
महाव में कोई भी व्यक्ति इस बारे में बात करने को तैयार नहीं। पिछले दो दिनों से पुलिस की दबिश जारी है, कई मुस्लिम परिवारों के घरों पर ताले लगे हैं और तमाम हिंदू भी फ़रार चल रहे हैं।
कंकाल कैसे पहुंचे?
ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि दर्जन भर कंकाल यहाँ कैसे पहुँचे। अगर कुछ स्थानीय लोगों की बात मानी जाए तो, "रविवार रात महाव में गोकशी की बड़ी घटना हुई"।
लेकिन गाँव के ठीक बगल अगर रात को दर्जन भर पशुओं की हत्या हुई भी तो दो बड़े सवालों का जवाब किसी के पास नहीं। पहला ये कि दर्जन भर पशुओं को मारने के लिए कितने लोग पहुँचे और कहाँ से आए। फिर वे ग़ायब कैसे हो गए। दूसरा ये कि दर्जन भर पशुओं को मारते समय जो कोलाहल मचता है उसे रात के सन्नाटे में किसी गाँव वाले ने क्यों नहीं सुना।
ज़िले के एक आला प्रशासनिक अधिकारी ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बताया, "ये हमारी समझ के बाहर है कि कंकालों के मिलने के बाद इतने कम समय में सैकड़ों लोग जमा हो गए। राजमार्ग जाम करने के लिए ट्रैक्टर पहुँच गए और कुछ लोगों ने राजनीति भी शुरू कर दी"।
इस बात को भी ग़ौर करने की ज़रूरत है कि इलाक़े में पिछले छह महीने में कथित गोहत्या के कई मामले सामने आए हैं। स्याना, गुलावटी और क़रीब दो महीने पहले खुर्जा में ऐसी अफ़वाहें फैली थीं कि "बड़े स्तर पर गोकशी हुई है।" खुर्जा पुलिस ने पाँच लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी दर्ज किया था और उनके ऊपर पच्चीस हज़ार रुपए का इनाम भी घोषित है।
मक़सद क्या?
बुलंदशहर में सोमवार को भड़की हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने सबसे पहले जारी किया गए बयानों में साफ़ किया था कि इस घटना को मज़हबी रंग क़तई नहीं दिया जाना चाहिए। दरअसल लाखों मुसलमान 1-3 दिसंबर तक उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर (दरियापुर इलाक़े) में आयोजित 'इज़्तेमा' में पहुँचे थे।
इज़्तेमा को 'मुसलमानों का सत्संग' कहा जा सकता है। इन आयोजनों में मुस्लिम धर्म गुरु मुसलमानों से अपनी बुनियादी शिक्षाओं की ओर लौटने का आह्वान करते हैं। भारत में सबसे बड़ा इज़्तेमा भोपाल में आयोजित होता है। तीन दिन के इस कार्यक्रम में ज़्यादातर सुन्नी मुसलमान शिरकत करते हैं।
मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार, इज़्तेमा को राजनीतिक मुद्दों से हमेशा दूर रखा जाता है। हालाँकि चिंगरावठी वहाँ से थोड़ी दूरी पर है, लेकिन प्रशासन को डर था कि कहीं मामला धार्मिक रंग न ओढ़ ले। मामले की जाँच जारी है और इस साथ ही इस बात कि भी कि आख़िर इतने सारे कंकाल एकाएक एक छोटे से गाँव तक कैसे पहुँचे।
ग़ौर करने वाली एक आख़िरी और अहम बात ये भी है कि इस गाँव तक जाने वाली, संकरी सी, एकमात्र पक्की सड़क चिंगरावठी थाने के ठीक बगल से ही जाती है। अब सवाल ये भी उठता है कि कहीं ये कंकाल इस स्थान पर प्लांट तो नहीं किए गए। पुलिस भी इस दिशा में जाँच कर रही है।
बुलंदशहर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कृष्ण बहादुर सिंह ने इस सवाल के जवाब में बीबीसी से कहा, "एसआईटी पूरे मामले की जाँच कर रही है और ये पहलू भी जाँच में शामिल है। जो भी तथ्य होंगे जाँच में सामने आ जाएँगे।"