• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राम मंदिर अयोध्या
  4. Ayodhya Ram temple pran pratishta ceremony

कृतज्ञता के साथ रामोत्सव का उमंग आंचल में समेटने को आतुर सरयू

कृतज्ञता के साथ रामोत्सव का उमंग आंचल में समेटने को आतुर सरयू - Ayodhya Ram temple pran pratishta ceremony
सरयू, जो सप्तपुरियों (मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्ज्यनी और द्वारका) में श्रेष्ठतम अयोध्या के वैभव और उस रामराज्य जिसे आज भी आदर्शतम माना जाता है, उसकी युगों-युगों से गवाह रही है। जो अयोध्या के ध्वंस, उदासी और उपेक्षा की भी साक्षी रही है। जिस सरयू की महिमा का बखान करते हुए वेद पुराण कहते हैं, दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना। नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारदा बिमल मति। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में अपने अयोध्या में जारी कल्पनातीत बदलाव को प्रफुल्लित किंतु शांत होकर देख रही है।

संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने वालों को आशीष
देश की पंचनदियों में शुमार सरयू की कल-कल बहती धारा मानों कह रही हो, मोदी हैं तो मुमकिन है और योगी हैं तो यकीन है। 500 वर्षों के संघर्ष और बलिदान के बाद संकल्प से सिद्धि तक की इस यात्रा को इस मुकाम तक पहुंचाने वालों को आशीष दे रही है।

उनके प्रति श्रद्धा जता रही है। खासतौर से एक सदी तक मंदिर आंदोलन में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवेद्यनाथ, मौजूदा पीठाधीश्वर और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राम मंदिर के लिए हर समय कुछ भी करने को तत्पर ब्रह्मलीन महंत रामचन्द्रदास परमहंस, महंत अभिराम दास, देवरहा बाबा, स्वामी करपात्री महाराज, बलरापुर स्टेट के महाराज पाटेश्वरी सिंह, मोरोपंत पिंगले, विशाल हिंदू एकता के पैरोकार और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अशोक सिंघल, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, 1949 में अयोध्या में रामलला के प्रकटीकरण के समय वहां के जिलाधिकारी रहे केके नायर, सिटी मजिस्ट्रेट रहे गुरुदत्त सिंह, कन्हैया लाल माणिक मुंशी, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को नई ऊंचाई देने वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाईजी), नानाजी देशमुख, बाबा राघवदास, विष्णु हरि डालमिया, दाऊ दयाल खन्ना, इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्‍त न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल, गोपाल सिंह विशारद, एचवी शेषाद्रि, केएस सुदर्शन, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी वामदेव, श्रीश चंद दीक्षित, कोठारी बंधु सहित तमाम कार सेवकों के प्रति जिन्होंने रामकाज के लिए खुद का बलिदान दे दिया।

उनको भी जिन्होंने इसके लिए तमाम कष्ट सहे, जेल गए। इस भावोक्ति के साथ सरयू मानों यह भी कह रही है, संभव है कि मैं राम मंदिर आंदोलन में शामिल कई लोगों के नाम भूल रही हूं। क्या करूं। पिछले कुछ वर्षों में अयोध्या में जो हो रहा है उसके नाते मैं इतनी खुश हूं कि सबकुछ और सबके योगदान को याद रखना फिलहाल अभी संभव नहीं। उम्मीद है कि इस ऐतिहासिक अवसर और सांस्कृतिक पुनरुथान की खुशी के इस क्षण में वे मुझे माफ कर देंगे। माफ करना तो हमारे भारत का चरित्र रहा है।

अपने राम के सम्मान में मंदिर के विरोधियों से भी शिकायत नहीं
साथ ही अपने राम के उद्दात चरित्र के अनुसार सरयू उनको माफी भी दे रही है, जो उसकी अयोध्या की उदासी और उपेक्षा के लिए जवाबदेह रहे हैं। उसकी माफी की लिस्ट में मुगल आक्रांता जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर, मीर बाकी, बाबर का वह सिपाहसालार जिसने 1528 से 1529 के दौरान रामलला की जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद तामीर करवाई थी।

देश के उन सभी अल्पसंख्यकों को जिन्होंने बाबर और मीर बाकी से दूर-दूर तक कोई संबंध न होने के बावजूद कुछ लोगों के बहकावे और उनके राजनीतिक लाभ के लिए समय-समय पर अयोध्या में जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण को लेकर बहुसंख्यक समाज का विरोध किया।

ऐसा करके सरयू मानों कह रही है, मेरे राम ने तो मां सीता का हरण करने वाले अत्याचारी रावण सहित, मारीच, सुबाहु, ताड़का, कुंभकरण, मेघनाद, खर दूषण, त्रिशला, जैसे अन्य ऐसे तमाम दुराचारियों का वध करने के बाद उनको न केवल माफ किया बल्कि उनको सद्गति भी दी। इसीलिए वे अमर हो गए। देश दुनिया में सर्वस्वीकार्य हो गए। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस की ये पंक्तियां (हरि अनंत, हरि कथा अनंता) इसकी गवाह हैं। सरयू का यह मनोभाव बेहद प्रचलित इस लोकोक्ति के अनुरूप है, अंत भला तो सब भला।

सरयू को भी है प्राण-प्रतिष्ठा की ऐतिहासिक घड़ी का इंतजार
फिलहाल सरयू को रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक दिन 22 जनवरी की शिद्दत से प्रतीक्षा है। उस दिन के सारे उछाह, उमंग का गवाह बनने के साथ वह उनको आंचल में समेट लेना चाहती है, ताकि उसके जरिए अयोध्या का यह बदलाव युगों-युगों तक के लिए अमर हो जाए।