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गुरु-सूर्य की यु‍‍‍ति और आपकी राशि

मेष राशि पर अति शुभ रहेगा गुरु-सूर्य का मिलन

Sun effects | गुरु-सूर्य की यु‍‍‍ति और आपकी राशि
- पं. अशोक पंवार
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सूर्य ने 13 अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश कर लिया है। पिछले वर्ष से गुरु भी मेष राशि में चल रहा था। 13 अप्रैल से गुरु-सूर्य की यु‍‍‍ति आरंभ होकर 14 मई तक रहेगी। यह युति 12 साल में एक बार आती है। जानिए इन ग्रहों का बारह राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

सूर्य जहां आत्मा का कारक है वहीं तेज, बल, पराक्रम, साहस, प्रभाव व उत्साह का प्रतीक होता है। वहीं गुरु ज्ञान, धर्म, न्याय, नीतिकुशल व महत्वाकांक्षी होता है। सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है, वहीं गुरु मेष राशि में अतिमित्र मंगल की राशि मेष में माना गया है। गुरु-सूर्य का मेष राशि में गठबंधन लगभग 12 वर्षों में ही आता है।

जिस जातक के जन्म के समय में यह योग आता है। वह जातक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी, धर्म-कर्म के मामलों में सजग रहनेवाला, न्यायप्रिय, कुशल राजनीतिज्ञ भी होता है। विभिन्न भावों में होने से फल में भी अंतर आना स्वाभाविक है। उसके अनुसार इस एक माह के अंतराल में धर्मिक भावना, बडे़ न्याय से संबंधित कार्यों में सफलता मिलने के योग बनते हैं। न्यायपालिका सजग होती नजर आएगी एवं भ्रष्टाचारियों की शामत आ सकती है।

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जिस जातक का मेष लग्न हो तो लग्न में पंचमेश सूर्य का स्वामी होकर (विद्या, मनोरंजन, संतान, प्रेम भाव) नवम (धर्म, यश, प्रतिष्ठा, पिता भाव) के साथ-साथ द्वादश (बाहरी मामलों) का स्वामी होगा। इस प्रभाव से सभी उपरोक्त भावों से संबंधित फल को शुभता प्रदान करेगा। वहीं ऐसा जातक धनी होने के साथ-साथ प्रशासनिक सेवाओं में भी सफल हो सकता है।

वृषभ लग्न व राशि वालों के लिए गुरु-सूर्य की युति चतुर्थेश सूर्य, अष्टमेश व एकादशेश गुरु के द्वादश भाव में होने से माता को कष्ट व आय के मामलों में कठिनाई से सफलता मिलेगी। बाहरी संबंधों से लाभ की आशा कर सकते हैं।

मिथुन लग्न व राशि वालों के लिए तृतीयेश व सप्तमेश (पत्नी), दशम (पिता-नौकरी-राज्य भाव) का स्वामी होकर एकादश (आय भाव) में होने से आय के मामलों में सफलता पाएंगे। राज्य पक्ष से लाभ मिलेगा। पिता का सहयोग, व्यापार में सफलता मिलेगी। पराक्रम में वृद्धि होगी।

कर्क लग्न व राशि वालों के लिए द्वितीयेश सूर्य (धन, कुटुंब, वाणी भाव) व गुरु भाग्येश होकर दशम में भ्रमण करने से धन की बचत, प्रशासनिक कार्य में सफलता देगा। भाग्यबल में वृद्धि होगी।

सिंह लग्न व राशि वालों के लिए लग्नेश स्वयं व गुरु पंचमेश होकर अष्टमेश का भ्रमण, नवम भाव यानी भाग्य भाव से होने से भाग्य में वृद्धि, यश लाभ, धर्म-कर्म में आस्था बढ़ेगी। साथ ही प्रभाव भी बढ़ेगा। स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

कन्या लग्न व राशि वालों के लिए सूर्य द्वादशेश व गुरु चतुर्थ भाव (सुख) व सप्तम (पत्नी) का स्वामी होकर अष्टम से भ्रमण करने से बाहरी मामलों में सावधानी रखना होगी। वहीं दैनिक व्यवसाय, पत्नी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी।

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तुला लग्न व राशि वालों के लिए सूर्य एकादशेश (आय भाव) का स्वामी व गुरु तृतीय (पराक्रम) व षष्ट भाव का स्वामी होकर सप्तम से भ्रमण करने से पत्नी के मामलों में लाभ व शत्रु पक्ष पर प्रभाव रहेगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा।

वृश्चिक लग्न व राशि वालों के लिए द्वितीयेश (वाणी, धन की बचत, कुटुंब) व पंचम (विद्या, संतान भाव) का स्वामी गुरु व दशमेश सूर्य का भ्रमण षष्ट भाव से होने से प्रतियोगी परीक्षाओं में सावधानी बरतना होगी। संतान को कष्ट, बचत में कमी संभावित है। वाणी में सतर्कता रखनी होगी।

धनु लग्न व राशि वालों के लिए लग्नस्थ व चतुर्थ (सुख भाव) का स्वामी गुरु भाग्येश होकर पंचम से भ्रमण करेगा। यह अनुकूल होकर सुखद रहेगा। भाग्य में वृद्धि होकर प्रभाव बढ़ेगा। सुख-सुविधा के साधन बढ़ेंगे। माता से लाभ होगा। जिस कार्य में हाथ डालेंगे उसमें सफलता मिलेगी।

मकर लग्न व राशि वालों के लिए सूर्य अष्टमेश, गुरु द्वादशेश व तृतीयेश होकर चतुर्थ से भ्रमण करने से माता को कष्ट रहेगा। स्थानीय राजनीति में बाधा, मकान, भूमि के मामलों में रूकावट। स्वास्थ्य के मामलों में सावधानी रखना होगी।

कुंभ लग्न व राशि वालों के लिए सप्तमेश सूर्य व एकादशेश गुरु का भ्रमण तृतीय भाव से होने से दैनिक व्यवसाय, पत्नी के मामलों में सावधानी रखें। बाहरी मामलों में व आर्थिक मामलों में सतर्कता रखनी होगी।

मीन लग्न व राशि वालों के लिए लग्नस्थ व दशमेश गुरु व सूर्य षष्ट भाव का स्वामी होकर द्वितीय भाव से भ्रमण करने से धन, कुटुंब से सहयोग वाला रहेगा। शत्रु पक्ष प्रभावहीन होंगे। पिता से लाभ मिलेगा तथा व्यापार में उन्नति होगी।

इस दौरान मेष, सिंह, धनु, मीन राशिवाले पुखराज पहन सकते हैं एवं मेष, सिंह, धनु, वृश्चिक लग्न व राशि वाले माणिक पहन सकते हैं, लाभ होगा। गुरु व सूर्य की स्थिति पर शुभ-अशुभ निर्भर करता है। यदि गुरु की महादशा या सूर्य की महादशा में इनमें से किसी एक का भी अंतर चलता होगा तब लाभ की प्रबल संभावना होगी।