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क्या सिर्फ रंग, रूप और सेक्स का प्रतीक हैं अप्सराएं

क्या सिर्फ रंग, रूप और सेक्स का प्रतीक हैं अप्सराएं - Who is Apsara
भारतीय संस्कृति में अप्सरा एक जाना-पहचाना नाम है,यह नाम वैदिक युग से ही विभिन्न कारणों से जाना जाता है। तंत्र जगत में कई धर्मों-सम्प्रदायों में विभिन्न नामों से अप्सरा की साधना की जाती है। अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। 
 
उनमें अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है। अप्सराओं को इस्लाम में हूर अथवा परी कहा गया है। भारतीय पुराणों में यक्षों, गंधर्वों और अप्सराओं का जिक्र आता रहा है। यक्ष, गंधर्व और अप्सराएं देवताओं की इतर श्रेणी में माने गए हैं। कहते हैं कि इन्द्र ने 108 ऋचाओं की रचना कर अप्सराओं को प्रकट किया। मंदिरों के कोने-कोने में आकर्षक मुद्रा में अंकित अप्सराओं की मूर्तियां सुंदर देहयष्टि और भाव-भंगिमाओं से ध्यान खींच लेती हैं।
वेद और पुराणों की गाथाओं में उर्वशी, मेनका, रम्भा, घृताची, तिलोत्तमा, कुंडा आदि नाम की अप्सराओं का जिक्र होता रहा है। सभी अप्सराओं की विचित्र कहानियां हैं। माना जाता है कि ये अप्सराएं गंधर्व लोक में रहती थीं। ये देवलोक में नृत्य और संगीत के माध्यम से देवताओं का मनोरंजन करती थीं।

 
पुराणों के अनुसार देवताओं के राजा इन्द्र ने सिंहासन की रक्षा के लिए अनेक बार संत-तपस्वियों के कठोर तप को भंग करने के लिए अप्सराओं का इस्तेमाल किया है। वेद-पुराण में कई स्थानों में इन अप्सराओं के नाम आए हैं, जहां इन्होंने घोर तपस्या में लीन ऋषियों के तप को भंग किया।
 
अपनी व्युत्पति (अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा:) के अनुसार ही अप्सरा जल में रहने वाली मानी जाती है। अथर्ववेद तथा यजुर्वेद के अनुसार ये पानी में रहती हैं। अथर्ववेद के अनुसार ये अश्वत्थ तथा न्यग्रोध वृक्षों पर रहती हैं, जहां ये झूले में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों (कर्करी) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच-गान तथा खेलकूद में निरत होकर अपना मनोविनोद करती हैं।
 
अप्सराओं की कोई उम्र निर्धारित नहीं है। ये सभी अजर-अमर हैं। शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं-कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी। अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है।
 
अप्सराएं देवलोक से इतर योनी की हैं अर्थात देवता या देवी नहीं है,मनुष्य यह हैं नहीं। इस प्रकार यह बीच की योनी है जो देवताओं की इच्छा से और मनुष्यों की आराधना से कार्य सम्पादन करती हैं। इस तात्विक दृष्टि से देखें तो इनका स्थान बीच का आता है। अर्थात पृथ्वी से ऊपर और देव लोक से नीचे। पृथ्वी की सतह पर नैसर्गिक नकारात्मक शक्तियां रहती हैं यथा पिशाच-पिशाचिनी आदि किन्तु अप्सरा नकारात्मक शक्तियां नहीं हैं इसलिए इनका स्थान सतह से कुछ ऊपर होता है और मूलतः इन्हें ऋणात्मक शक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। अप्सराएं सहायिका की भूमिका निभाती है और भौतिक सुख-समृद्धि दे सकती हैं, चुंकि इनमें विलक्षण जादुई या अलौकिक शक्तियां होती हैं अतः साधकों या मनुष्यों के लिए बहुत प्रकार से लाभदायक होती हैं।

इसी कारण बहुत से साधक इनकी साधना कर इन्हें अपने वशीभूत कर लेते हैं जिससे उन्हें अपनी उच्च साधनाएं निर्विघ्न से संपन्न करने में सहायता मिले। यद्यपि इनकी साधना बेहद कठिन होती है किन्तु देव-देवी जितनी नहीं। यह ऋणात्मक शक्तियां हैं अतः सामान्य रूप से तामसिक प्रवृत्ति की और शीघ्र आकृष्ट होती हैं और नियंत्रित हो सकती हैं। इनकी शक्ति अ‍परिमित है लेकिन यह प्रचलित भ्रांति के अनुसार केवल रंग, रूप और सेक्स का प्रतीक भर नहीं है, इनसे कई आगे यह वरदान देने में सक्षम हैं।