kemdrum yoga effects: ज्योतिष मान्यता के अनुसार जिस किसी की भी कुंडली में केमद्रुम योग होता है तो यह जातक को दरिद्र बना देता है। जातक भले ही मेहनत करके पैसा कमाल ले लेकिन एकदिन ऐसा आता है जबकि सबकुछ चला जाता है। ज्योतिष के कई विद्वानों द्वारा केमद्रुम योग को दुर्भाग्य का प्रतीक कहा गया है। आओ जानते हैं किसे कहते हैं केंमद्रुम योग और क्या है इसका उपाय।
कुंडली में कैसे बनता है केमद्रुम योग?
यदि कुंडली में चन्द्रमा किसी भी भाव में बिल्कुल अकेला बैठा है तथा उसके अगल-बगल के दोनों अन्य भावों में कोई ग्रह नहीं है और इसी के साथ ही चंद्रमा पर किसी भी ग्रह की कोई दृष्टि नहीं है तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है। कुंडली में जब चन्द्रमा द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चन्द्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।
जब कुंडल में चन्द्र से द्वितीय व द्वादश स्थान में कोई ग्रह न हो, चन्द्र की किसी ग्रह से युति न हो, चन्द्र से दशम स्थान में कोई ग्रह स्थित नहीं हो एवं चन्द्र जन्म पत्रिका के केन्द्र स्थानों में भी स्थित न हो तो दरिद्रतादायक केमद्रुम योग बनता है।
इन स्थिति में नहीं होता अशुभ प्रभाव : लेकिन ऐसी स्थिति में यह देखना आवश्यक है कि चंद्रमा किस राशि में स्थित है और उसके अंश क्या हैं। यदि चंद्रमा की स्थिति कमजोर है तो ऐसी स्थिति में केमद्रुम का प्रभाव अशुभ नहीं होता है। किसी कि कुंडली में जब गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति हो तो केमद्रुम योग से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता, यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति हो सकती है।
क्या होता है केमद्रुम योग का प्रभाव?
''केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्र हीनो देशान्तरे ब्रजती दुःखसमाभितप्तः.
ज्ञाति प्रमोद निरतो मुखरो कुचैलो नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु।''
अर्थात जिस भी जातक की कुंडली में केमद्रुम योग होता है वह पुत्र कलत्र से हीन इधर-उधर भटकने वाला, दुख से अति पीड़ित, बुद्धि और सुख से हीन, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, नीच और कम उम्र वाला होता है।
इससे मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती है। व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार पड़ सकता है। साथ ही व्यक्ति को हमेशा अज्ञात भय सताता है। इस योग के चलते जातक जीवनभर धन की कमी, रोग, संकट, वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाई आदि समस्याओं से जूझता रहता है।
केमद्रुम योग के उपाय :
1. सोमवार, एकादशी, प्रदोष और पूर्णिमा का व्रत रखने से इसका प्रभाव कम होता है। पूर्णिमा का व्रत कम से कम 4 साल रखें।
2. सोमवार के दिन शिवजी का पूजन और रुद्राभिषेक करना चाहिए।
3. शनिवार को शाम में पीपल वृक्ष के पास सरसों तेल का दीप जलाएं।
4. इस योग के निदान हेतु प्रति शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से गणेश और महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं।
5. चन्द्र से संबंधित वस्तुओं का दान करते रहें।