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Written By WD Feature Desk

Budh Pradosh 2024 : बुध प्रदोष व्रत, जानें महत्व, मुहूर्त, मंत्र और कथा

Budh Pradosh 2024 : बुध प्रदोष व्रत, जानें महत्व, मुहूर्त, मंत्र और कथा - Budh Pradosh 2024 Date
Budh Pradosh 2024 
 
Budh Pradosh 2024 : वर्ष 2024 में 07 फरवरी, दिन बुधवार को प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक माह में दो प्रदोष होते हैं। यदि यह प्रदोष अलग-अलग दिन पड़ते हैं तो उनकी महिमा भी भिन्न-भिन्न हो जाती है। मान्यतानुसार बुध प्रदोष व्रत करने से मनुष्य की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बता दें कि फरवरी माह में दो बुध प्रदोष व्रत होंगे, जिसमें पहला 7 फरवरी को तथा दूसरा 21 फरवरी 2024, बुधवार को रखा जाएगा। 
 
आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में खास जानकारी। व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त, महत्व, कथा और मंत्र आदि... 
 
बुध प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त 2024 : 
 
7 फरवरी 2024, बुधवार को बुध प्रदोष व्रत
माघ कृष्ण त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ- 7 फरवरी को 05.32 ए एम से,
माघ कृष्ण त्रयोदशी का समापन- 8 फरवरी को 02.47 ए एम पर। 
 
त्रयोदशी तिथि पर पूजन का सबसे शुभ समय- 05.57 पी एम से 08.15 पी एम तक।
कुल अवधि : 02 घंटे 18 मिनट्स
 
फरवरी 7, दिन का चौघड़िया
लाभ - 05.29 ए एम से 07.03 ए एम
अमृत - 07.03 ए एम से 08.36 ए एम
शुभ - 10.10 ए एम से 11.43 ए एम
चर - 02.50 पी एम से 04.23 पी एम
लाभ - 04.23 पी एम से 05.57 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया
 
शुभ - 07.23 पी एम से 08.50 पी एम
अमृत - 08.50 पी एम से 10.17 पी एम
चर - 10.17 पी एम से 11.43 पी एम
लाभ - 02.36 ए एम से 8 फरवरी 04.03 ए एम
 
बुध प्रदोष व्रत का महत्व : हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार माघ मास का बहुत धार्मिक महत्व माना गया है। आपको बता दें कि प्रदोष व्रत हर महीने कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। इस दिन सायंकाल प्रदोष समय में सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा-आराधना करने से समस्त कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यतानुसार बुधवार को आने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है तथा इस व्रत से ज्ञान, शिक्षा की प्राप्ति होकर हर मनोकामना पूर्ण होती है। 
 
इस दिन भगवान शिव जी की धूप, बेल पत्र आदि से पूजा-आराधना करनी चाहिए। प्रदोष/ त्रयोदशी व्रत मनुष्य को संतोषी एवं सुखी बनाने वाला माना गया है। इस दिन हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। जिस वार के अनुसार जो प्रदोष व्रत किया जाता है, वैसे ही उसका फल प्राप्त होता है। त्रयोदशी के दिन गाय का कच्चा दूध तथा शुद्ध जल शिव जी को अर्पित करने से वे शीघ्र ही प्रसन्न होते है तथा चंद्र ग्रह भी शांत होकर मन में शांति का अनुभव कराते है। प्रदोष व्रत करने वाले को सौ गाय दान करने का फल प्राप्त होता है। 
 
बुध प्रदोष कथा : 
 
बुध प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार- एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ। विवाह के 2 दिनों बाद उसकी पत्‍नी मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्‍नी को लेने उसके यहां गया। बुधवार को जब वह पत्‍नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्‍न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता। लेकिन वह नहीं माना और पत्‍नी के साथ चल पड़ा। नगर के बाहर पहुंचने पर पत्‍नी को प्यास लगी। पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा। 
 
पत्‍नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्‍नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है। उसको क्रोध आ गया। वह निकट पहुंचा तो उसके आश्‍चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी। 
 
पत्‍नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। भीड़ इकट्ठी हो गई। सिपाही आ गए। हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्‍चर्य में पड़ गए। उन्होंने स्त्री से पूछा 'उसका पति कौन है?' वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- 'हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्‍नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।' 
 
जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। पति-पत्‍नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्‍नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे। अत: बुध त्रयोदशी व्रत से भगवान शिव जी तथा श्री गणेश और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। इस कारण हर मनुष्य को यह व्रत अवश्‍य करना चाहिए।
 
बुध प्रदोष व्रत के मंत्र :
 
1. 'ॐ गं गणपतये नम:।'
2. ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ। 
3. ॐ शिवाय नम:
4. 'ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
5. 'श्री गणेशाय नम:'।
6. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
 
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