युवा शक्ति के प्रेरणा स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के बाद दूसरा सबसे अधिक समय छत्तीसगढ़ में बिताए थे। छत्तीसगढ़ में बिताए गए उनके दो साल की गौरवगाधा को राजधानी के एक लोक संगीतज्ञ ने छत्तीसगढ़ की तंमूरा भजन के माध्यम से तैयार किया है। इसका ऑडियो गुरुवार इंटरनेट पर अपलोड किया गया।
लोक संगीतज्ञ एवं संस्कृति विभाग में कार्यक्रम संयोजक के रूप में पदस्थ राकेश तिवारी ने स्वामी विवेकानंद की छत्तीसगढ़ यात्रा को लोकधुन तमूरा भजन तैयार किया है। इस लोकगीत को अकलतरा डाट ब्लागस्पाट डाट कॉम में सिंहावलोकन में सुना जा सकेगा। तमूरा भजन विधा के माध्यम से ग्रामीण अंचल में किसी महापुरुष की जीवनी का वर्णन किया जाता है। इसे स्वारांजली स्टुडियों के भोलाराम ने संगीत दिया है। इस लोकगीत में वर्णन है कि सन् 1877 में स्वामी विवेकानंद नागपुर रेलवे स्टेशन से उतरे यहाँ से वे छकला(छोटी) बैलगाड़ी से रायपुर आए। उनके साथ उनकी माता भुनेश्वरी, बहन जोगेन्द्र बाला एवं छोटे भाई महेन्द्र भी थे। उनके पिता वकील विश्वनाथ बाबू रायपुर कोर्ट में वकालत कर रहे थे। वे सभी बूढ़ापारा में सपरिवार रहते थे।
लोकगीत में बालक नरेन्द्र बूढ़ापारा की गलियों में खेलकूद और बूढ़ा तालाब में नहाने का भी वर्णन किया गया है। साथ ही न्यायालय से लौटने के बाद उनके पिता उन्हें रोजाना पढ़ाया करते थे, क्योंकि उस समय उनके लिए कोई बेहतर स्कूल नहीं था। स्वामी जी 14 वर्ष के उम्र में रायपुर आए थे और 16 वर्ष के उम्र में 1879 में वे सपरिवार लौट गए।