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ग़ज़लें : सैफ़ुद्दीन सैफ़
1.
क़रीब मौत खड़ी है, ज़रा ठहर जाओ क़ज़ा से आँख लड़ी है, ज़रा ठहर जाओथकी थकी सी फ़िज़ाएँ, बुझे बुझे तारे बड़ी उदास घड़ी है, ज़रा ठहर जाओनहीं उम्मीद के हम आज की सहर देखें ये रात हम पे कड़ी है, ज़रा ठहर जाओ अभी न जाओ कि तारों का दिल धड़कता है तमाम रात पड़ी है, ज़रा ठहर जाओफिर इसके बाद कभी हम न तुम को रोकेंगेलबों पे सांस अड़ी है ज़रा, ज़रा ठहर जाओदम-ए-फ़िराक़ में जी भर के तुमको देख तो लें ये फ़ैसले की घड़ी है, ज़रा ठहर जाओ2.
राह आसान हो गई होगी जान पहचान हो गई होगीफिर पलट कर निगाह न आईतुझ पे क़ुरबान हो गई होगी तेरी ज़ुल्फ़ों को छेड़ती थी सबा खुद पशेमान हो गई होगीउनसे भी छीन लोगे याद अपनी जिनका ईमान होगी होगीमरने वालों पे 'सैफ़' हैरत क्योंमौत आसान हो गई होगी3.
दरपरदा जफ़ाओं को अगर जान गए हम तुम ये ना समझना कि बुरा मान गए हम अब और ही आलम है जहाँ का दिल-ए-नादाँ जब होश में आऎं तो मेरी जान गए हम पलकों पे लरज़ते हुए तारे से ये आँसू ऎ हुन-ए-पशेमाँ तेरे क़ुरबान गए हम बदला है मगर भेस ग़म-ए-इश्क़ का तूनेबस ऎ ग़म-ए-दौराँ तुझे पहचान गए हम हम और तेरे हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल से बिगड़ते जब तूने कहा मान गए, मान गए हम है सैफ़ बस इतना ही सा अफ़साना-ए-हस्तीआए थे परेशान, परेशान गए हम