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अमीर मीनाई की ग़ज़लें
1.
है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद काहोली का रंग जिस को लहू है शहीद कादुनिया परस्त क्या रहे उक़बा करेंगे तैनिकलेगा ख़ाक घर से क़दम ज़न मुरीद काहोने न पाए ग़ैर बग़लगीर यार सेअल्लाह यूँ ही रोज़ गुज़र जाए ईद कासारा हिसाब ख़त्म हुआ हश्र हो चुकापूछा गया न हाल तुम्हारे शहीद काजाके सफ़र में भूल गए हमको वो अमीर याँ और दोस्तों ने लिखा ख़त रसीद का 2.
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझको रात भर रक्खाकभी तकया इधर रक्खा, कभी तकया उधर रक्खाबराबर आईने के भी न समझे क़द्र वो दिल की इसे ज़ेर-ए-क़दम रक्खा उसे पेश-ए-नज़र रक्खातुम्हारे संग-ए-दर का एक टुकड़ा भी जो हाथ आयाअज़ीज़ ऐसा किया कि मर कर उसे छाती पे धर रक्खाजिनाँ में साथ अपने क्यों न ले जाऊँ मैं नासेह को सुलूक ऐसा ही मेरे साथ है हज़रत ने कर रक्खा बड़ा एहसाँ है मेरे सर पे उसकी लग़ज़िश-ए-पा का कि उसने बेतहाशा हाथ मेरे दोश पर रक्खातेरे हर नक़्श-ए-पा को रेहगुज़र में सजदा कर बैठे जहाँ तूने क़दम रक्खा वहाँ हमने भी सर रक्खा अमीर अच्छा शगून-ए-मय किया साक़ी की फ़ुरक़त में जो बरसा अब्र-ए-रेहमत जा-ए-मय शीशे में भर रक्खा